Saturday, November 10, 2012

दुनिया के अचरज: बीजापुर का बेमिसाल गोल गुंबद

नई दिल्ली। प्राचीन भारत की ‘भवन-निर्माण कला’ बड़ी ही उच्च कोटि की है। आगरा के ताजमहल, फतेहपुर-सीकरी के बुलंद दरवाजे और बीजापुर के गोल गुंबद का आजकल के कलाकार भी लोहा मानते हैं। इतने भारी-भारी पत्थर बिना किसी मशीन की सहायता के इतनी ऊंचाई तक कैसे पहुंचाए गए यह सोचकर आजकल के कारीगर भी दंग रह जाते हैं। भारत की भवन निर्माण कला का एक बहुत ही सुंदर नमूना बीजापुर का गोल गुंबद है।
इस गुंबद को बीजापुर के शासक मुहम्मद आदिलशाह ने बनवाया था। इस विशाल समाधि के आगे इसके चारों ओर की सभी चीजें तुच्छ लगती हैं। अठारह हजार एक सौ दस वर्गफुट क्षेत्रफल का फर्श ऐसी छत से ढका हुआ है, जिसके सहारे के लिए भी खंभा नहीं है। संसार में अकेला कोई भी गुंबद इतना बड़ा नहीं। रोम नगर के विश्वविख्यात देव-मंदिर का फर्श भी केवल 15833 वर्गफुट छत से पटा हुआ है।
इस समाधि का भवन वर्गाकार है। यह बड़ी ऊंची चारदीवारी से घिरा हुआ है। ये चारों दीवारें चारों कोनों की आठभुजी मीनारों से मिला दी गई हैं। इन्हीं सबके ऊपर यह विशाल अर्धगोलाकार गुंबद बना है। दीवारों के ऊपरी सिरों से गुबंद के आर-पार मेहराब बनाए गए हैं। इन्हीं मेहराबों के सहारे इतनी बड़ी छत ठहरी हुई है।
इस इमारत की बनावट को देखकर अचरज होता है। समाधि के भीतर की चारों तरफ 11 फुट चौड़े बरामदे हैं। इन बरामदों की छतें भी 109 फुट 6 इंच की ऊंचाई पर मेहराबों के सहारे पाटी गई। मीनारों के ऊपर चढ़ाने के लिए उनमें जीने हैं। भवन के बीचों-बीच एक ऊंचे चबूतरे पर नकली समाधियां बनी हैं। असली कब्रें तो तहखाने के भीतर 205 वर्गफुट के विस्तार में हैं।
फर्श से गुंबद की चोटी की ऊंचाई 168 फुट 6 इंच है। गुंबद के भीतर का व्यास 124 फुट 5 इंच और बाहर का 144 फुट 5 इंच है। इस गुंबद की मोटाई 10 फुट है किंतु ऊपर जाकर 9 फुट रह गई है। सारी इमारत में ईंट, पत्थर, चुने और लकड़ी का ही प्रयोग किया गया है।
इस गुंबद की विशेषता इसका ‘ध्वनि-गुण’ है। प्रतिदिन हजारों दर्शक इस गुंबद को देखने आते हैं और इसकी जादूभरी ध्वनि सुनकर चकित रह जाते हैं। आप किसी भी जगह पर आवाज दीजिए तुरंत आपका स्वर बड़े वेग से दीवारों के सहारे दोनों ओर दौड़ेगा और उस स्थान के ठीक सामने से वही आवाज जोर से आएगी।
यह ध्वनि एक बार नहीं बल्कि कई बार सुनाई पड़ती है, परंतु धीरे-धीरे इसका वेग कम हो जाता है। आदमी के पैरों तक की आहट ऐसी सुनाई पड़ती है, मानो बहुत से लोग एक साथ चल रहे हैं। यदि आप कहीं जोर से हंस पड़े तो ऐसा सुनाई पड़ेगा मानो कोई बड़े जोर-जोर से शोर मचा रहा है, यहां तक कि कागज के टुकड़े को फाड़ने का शब्द भी बिजली की कड़क-सा सुनाई पड़ता है। इसलिए इस गुंबद के भीतर थोड़ी दूर पर खड़े होकर बातें करने में भी बड़ी कठिनाई पड़ती है, क्योंकि गूंज के कारण ध्वनि साफ-साफ सुनाई नहीं देती।
बहुत प्राचीन होने से इस गुंबद के धरातल में स्थान-स्थान पर टूट-फुट हो जाने के कारण ध्वनि-रोष होने लगा था, इसके बाद भारत सरकार ने लाखों रुपया खर्च कर इस स्मारक की मरम्मत करा दी है।

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