भारत
में 90 करोड़ लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। मोबाइल फोन सेट को
सिग्नल मुहैया कराने के लिए जगह-जगह मोबाइल टावर खड़े किए गए हैं। लेकिन
जानकारों का कहना है कि ये दोनों ही चीजें इंसान की सेहत के लिए खतरनाक
हैं। मोबाइल फोन और टावर से निकलने वाली तरंगों से कैंसर जैसी खतरनाक
बीमारी हो सकती है। इसलिए सरकार ने इन उपकरणों को चलाने के लिए नए नियम
बनाए हैं। नए कानून के मुताबिक
- हर मोबाइल फोन का एसएआर यानी स्पेसिफिक एब्जार्प्शन रेट लेवल 1.6 वाट प्रति किलोग्राम, प्रति एक ग्राम मानव टिशू होगा।
- पहले ये मानक 2 वाट प्रति किलोग्राम प्रति एक ग्राम मानव टिशू था।
- हर मोबाइल फोन पर ये मानक लिखा होगा।
- ये नियम एक सितंबर 2012 से लागू होगा।
- यानी एक सितंबर 2012 के बाद बनने वाले सभी मोबाइल हैंडसेटों के लिए ये मानक लागू होगा।
- इससे पहले के बने सभी मोबाइल हैंडसेट नए नियम से बरी होंगे।
- मोबाइल फोन कंपनियां एक साल के अंदर पुराने हैंडसेटों को खपा देंगी।
- जो उपभोक्ता पूराने फोन खरीद चुके हैं उन पर नया नियम लागू नहीं होगा।
कुछ ऐसा ही नियम मोबाइल टावर के लिए बनाया गया। नए नियम के मुताबिक
- मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडियेशन के मौजूदा मानक के दसवें हिस्से के बराबर कटौती और करनी होगी।
- नियम न मानने वालों पर 5 लाख रुपया प्रति टावर जुर्माना होगा।
- हालंकि सरकार का कहना है कि 95 फीसदी टावर नए मानक पर खरे उतरते हैं।
कानून
तो बना दिए गए। लेकिन सवाल ये भी है कि इस नियम को लागू करने के लिए क्या
सख्ती बरती जाती है। खुद सरकार का मानना है कि लाखों की तादाद में मौजूद
मोबाइल टावर की जांच करने के लिए संसाधन नहीं हैं। सरकार सिर्फ औचक जांच से
ही कर पाएगी। ऐसे में सवाल ये है कि नया नियम कितना कारगर होगा।
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