उत्तर अमेरिकी व यूरोपीय बाजारों में
भारतीय सामानों की कमजोर मांग और उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण भारत के
लिए मौजूदा वित्त वर्ष में 360 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य हासिल कर पाना
कठिन लगता है। यह खुलासा एक औद्योगिक सर्वेक्षण में हुआ है।
फेडरेशन
ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा किए गए एक
सर्वेक्षण के अनुसार, मौजूदा निर्यात हालात बदतर हैं और 2012 का उत्तरार्ध
अंधकारमय दिखता है। सर्वेक्षण में शामिल 63 प्रतिशत लोगों का मानना है कि
2012-13 के उत्तरार्ध में निर्यात की स्थिति और बिगड़ेगी।
अगस्त
2012 में भारत का निर्यात एक वर्ष पहले की इसी अवधि की तुलना में 9.7
प्रतिशत नीचे चला गया। फिक्की के सर्वेक्षण में कहा गया है प्रथम पांच
महीनों के आंकड़ों को देखते हुए मौजूदा वित्त वर्ष (2012-13) में 360 अरब
डॉलर का सरकार का निर्यात लक्ष्य हासिल हो पाना कठिन लगता है।
कच्चे
माल की कीमतों में वृद्धि और विदेशों में कमजोर मांग ऐसे प्राथमिक कारण
है, जो भारतीय निर्यातक समुदाय के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। लगभग 89
प्रतिशत प्रतिभागियों ने कच्चे माल की बढ़ रही कीमतों की ओर ध्यान खीचा है।
मिली प्रतिक्रियाओं के अनुसार, पिछले तीन वर्षो में कच्चे माल की कीमतों
में 20-30 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
अधिकांश
प्रतिभागियों को अगली दो तिमाहियों में निर्यात हालात में किसी महत्वपूर्ण
सुधार की आशा नहीं है। भारत का निर्यात 31 मार्च, 2012 को समाप्त हुए
वित्त वर्ष में 20.94 प्रतिशत बढ़कर 303.71 अरब डॉलर हो गया था, जबकि सरकार
का लक्ष्य 300 अरब डॉलर का ही था। सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए
निर्यात में 20 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा था।
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