Saturday, September 29, 2012

गडकरी जो चाहे कर लें, माफी नहीं मांगूंगी: अंजलि

इंडिया अगेन्स्ट करप्शन की सदस्य अंजलि दमानिया ने कहा है कि वो बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से माफी नहीं मांगेंगी, गडकरी जो करना चाहें वो कर सकते हैं। दरअसल अंजलि ने बुधवार को दावा किया था कि महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाले के सिलसिले में जब वो गडकरी से मिलीं और कहा कि वे इस घोटाले को उठाएं क्योंकि इसमें एनसीपी के बड़े नेताओं का हाथ है तो गडकरी ने मदद करने से साफ इनकार कर दिया था।
अंजलि के इस दावे के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उनको कानूनी नोटिस भेजा है। अंजलि ने कहा कि गडकरी जो करना चाहें, कर सकते है लेकिन मैं माफी नहीं मांगूंगी। गौरतलब है कि अंजलि को नोटिस भेजने की खबर आने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने इसे ‘चोरी और सीनाजोरी’ बताया था।
 उधर बीजेपी ने अंजलि के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ये कांग्रेस की गंदी चाल है ताकि वो बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से लोगों को ध्यान हटा सके। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने अंजलि के आरोपों को बकवास बताया।

अमेरिका ने ईरानी ग्रुप को आतंकवादी लिस्ट से हटा

अमेरिकी सरकार ने शुक्रवार को इराक में एक निर्वासित ईरानी समूह को विदेशी आतंकवादी संगठनों की अपनी लिस्ट से हटा दिया है।
सिन्हुआ ने अमेरिकी विदेश विभाग के हवाले से यह जानकारी दी। विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने मुजाहिद्दीन खल्क (एमईके) को आतंकवादी संगठनों की लिस्ट से हटा दिया है। इस संगठन को ‘पीपुल्स मुजाहिद्दीन ऑफ ईरान’ भी कहा जाता है। संगठन की अमेरिका में रोकी गई सम्पत्ति जारी कर दी गई है और उसे अमेरिकी संस्थाओं के साथ बिजनेस की इजाजत दे दी गई है।
संगठन की ओर से सालों से जारी हिंसा बंद करने व कैम्प अशरफ को शांतिपूर्ण तरीके से बंद करने के निर्णय के बाद अमेरिका ने यह फैसला लिया। इस मुद्दे की वजह से इराकी सुरक्षा बलों के साथ खतरनाक मुठभेड़ें हुई थीं। अमेरिका का यह फैसला शुक्रवार से प्रभावी होगा।

जालंधर में बैन हुई अक्षय की फिल्म ‘ओह माई गॉड’

अक्षय कुमार और परेश रावल की फिल्म ओह माई गॉड जालंधर में नहीं देखी जा सकेगी। पंजाब के जालंधर में लोगों के विरोध के बाद इस फिल्म पर रोक लगा दी गई है।
पीवीआर मॉल के बाहर फिल्म के पोस्टर जलाकर लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। फिल्म पर गुस्साए लोगों ने फिल्म के पोस्टर फाड़े और उनमें आग लगा दी। इन लोगों के मुताबिक फिल्म में भगवान के लिए सही शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसके बाद प्रशासन ने फिल्म पर रोक लगा दी।
अक्षय कुमार और परेश रावल की फिल्म ओह माय गॉड मशहूर गुजराती नाटक 'कुंजी विरुद्ध कुंजी' पर आधारित है। उधर फिल्म पर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाते हुए लखनऊ के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में याचिका भी दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

Friday, September 28, 2012

विवादित फिल्म 'द इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' का निर्माता अरेस्ट

अमेरिका में कथित इस्लाम विरोधी फिल्म बनाने वाले नाकोउला बैसले नाकोउला को लास एंजेलिस की अदालत के आदेश के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन उसे फिल्म के सिलसिले में नहीं, बल्कि एक अन्य मामले में मिली जमानत की शर्तो के उल्लंघन के लिए गिरफ्तार किया गया है। गौरतलब है कि नाकोउला (55) की फिल्म 'द इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' की वजह से दुनियाभर के मुस्लिम देशों में विरोध प्रदर्शन हुए।
'बीबीसी' के अनुसार, नाकोउला को साल 2010 में बैंक धोखाधड़ी का दोषी ठहराते हुए अदालत ने 21 महीने के कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन साल 2011 में उसे जमानत दे दी गई। पर इसके साथ शर्त लगाई गई कि वह अगले पांच साल तक अधिकारियों की अनुमति के बगैर कम्प्यूटर या इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करेगा। अधिकारियों की नजर उस पर थी कि वह जमानत की शर्तो का पालन कर रहा है या नहीं?

...कुछ यूं शुरू हुई थी हिना खार-बिलावल की इश्‍क ए दास्तां!

पाकिस्‍तान की विदेश मंत्री हिना रब्‍बानी खार और पाक के राष्‍ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बेटे बिलावल भुट्टो की प्रेम कहानी में एक नया खुलासा हुआ है। इसमें बताया गया है कि हिना और बिलावल कैसे करीब आए ? बांग्‍लादेश के टेब्‍लॉयड ‘द ब्लिट्ज’ के मुताबिक, हिना के पति फिरोज गुलजार का उनकी एक स्‍टाफ के साथ रिलेशन था। यहीं से दोनों के रिश्‍ते में अविश्‍वास पैदा हुआ। हिना ने अपने पति को रंग रलियां मनाते पकड़ लिया था और वह इस सदमे को बर्दाश्‍त नहीं कर पाईं। उन्‍होंने स्‍लीपिंग पिल्‍स खाकर आत्‍महत्‍या करने की कोशिश की। इसी दौरान वह बिलावल से बातें करने लगीं। धीरे-धीरे दोनों करीब आने लगे। हिना जब विदेश दौरे पर जातीं तो बिलावल के लिए खूब सारे तोहफे खरीद कर लातीं। ईद पर हिना ने बिलावल को कार्ड भेजकर लिखा, ‘अब इंतजार बर्दाश्‍त नहीं होता।’दोनों घंटों चैट करते थे और एक दिन फिरोज को शक हुआ। इसके बाद ‘द ब्लिट्ज’के खुलासे ने तो उनकी नींद ही उड़ा दी।
‘द ब्लिट्ज’ के मुताबिक, बिलावल के बर्थ डे पर हिना की तरफ से भेजे गए ग्रीटिंग कार्ड को जरदारी ने पढ़ लिया था। उन्‍होंने हिना से इस बारे में सीधे सवाल किया। जरदारी आगबबूला थे, उन्‍होंने हिना से कहा कि तुम शादीशुदा होकर मेरे मासूम बेटे के साथ संबंध कैसे रख सकती हो। इस पर हिना ने जरदारी को करार जवाब दिया और कहा कि यह उनका पर्सनल अफेयर और इसमें वह दखल नहीं दे सकते हैं।


बिलावल को जब पता चला कि उनके पिता ने हिना के साथ तल्‍ख लहजे में बात की है तो उन्‍होंने कहा कि अगर जरदारी ने अपना रवैया नहीं बदला तो वह साल अंत तक देश और पाकिस्‍तान पीपुल्‍स पार्टी का अध्‍यक्ष पद दोनों छोड़कर स्विटजरलैंड चले जाएंगे।
हिना रब्बानी और बिलावल भुट्टो जरदारी के बीच के प्रेम प्रसंग से बौखलाए हिना के पति फिरोज गुलजार ने कथित तौर पर उन्हें संयुक्त राष्ट्र के 67वें अधिवेशन को बीच में ही छोड़कर देश वापस आने और अपनी सफाई पेश करने का बुलावा भेजा है। इस प्रेम प्रसंग का खुलासा करने वाले बंगलादेश के वीकली टेब्‍लायड ‘द ब्लिट्ज’ने अब एक नया खुलासा करते हुए दावा किया है कि बिलावल के पिता और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ महासभा के 67वें अधिवेशन में हिस्सा लेने न्यूयार्क गई हिना को उनके पति ने पाकिस्तान वापस आकर इस पूरे प्रकरण पर अपनी सफाई पेश करने को कहा है। ब्लिट्ज का दावा है कि जब फिरोज ने हिना को इस सारे प्रकरण की जानकारी दी तो हिना ने उन्हें इस मीडिया रिपोर्ट का हायपरलिंक भेजने को कहा। फिरोज ने हायपरलिंक भेजने के बाद जब दोबारा हिना को फोन किया तो हिना ने उन्हें झिड़कते हुए कहा कि तुम इस तरह की बकवास पर विश्वास भी कैसे कर सकते हो। हिना ने इसके बाद फिरोज का जवाब सुने बगैर ही फोन काट दिया।

Thursday, September 27, 2012

1967 में भारत से मिली शिकस्त को भूला नहीं है चीन

1962 में चीन से मिली शिकस्त की टीस आज भी भारतीयों के दिल में बरकरार है, पर इतिहास इसका भी गवाह है कि इस घटना के पांच साल बाद 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन को जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी नहीं भुला पायेगा। यह सबक भी उन कारणों में से एक है जो चीन को भारत के खिलाफ किसी दुस्साहस से रोकता है।
1962 की घटना को भारत-चीन रणनीतिक एवं राजनयिक रिश्ते में एक बड़े प्रस्थान बिंदु के तौर पर देखा जाता है, पर साल 1967 को ऐसे साल के तौर पर याद किया जाता रहेगा जब हमारे सैनिकों ने चीनी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देते हुए सैकड़ों चीनी सैनिकों को न सिर्फ मार गिराया था, बल्कि उनके कई बंकरों को ध्वस्त कर दिया था। रणनीतिक स्थिति वाले नाथु ला दर्रे में हुई उस भिड़ंत की कहानी हमारे सैनिकों की जांबाजी की मिसाल है। 
14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है, जिससे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है। यूं तो सिक्किम-तिब्बत सीमा निर्धारण स्पष्ट ढंग से किया जा चुका है, पर चीन ने कभी भी सिक्किम को भारत का हिस्सा नहीं माना। 1965 के भारत-पाक युद्घ के दौरान चीन ने भारत को नाथु ला एवं जेलेप ला दर्रे खाली करने को कहा। भारत के 17 माउंटेन डिविजन ने जेलेप ला को तो खाली कर दिया, लेकिन नाथु ला पर भारत का आधिपत्य जारी रहा। आज भी जेलेप ला चीन के कब्जे में है।
नाथू ला दोनों देशों के बीच टकराव का बिंदु बन गया। 1967 के टकराव के दौरान भारत की 2 ग्रेनेडियर्स बटालियन के जिम्मे नाथु ला की सुरक्षा थी। इस बटालियन की कमान तब ल़े कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) राय सिंह के हाथों में थी। इस बटालियन की कमान तब ब्रिगेडियर एम़ एम़ एस़ बक्शी, एमवीसी, की कमान वाले माउंटेन बिग्रेड के अधीन थी।
भारतीय सेना के एक सूत्र के मुताबिक नाथु ला दर्रे पर सैन्य गश्त के दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच अक्सर जुबानी जंग का माहौल बना रहता था जो शीघ्र ही धक्कामुक्की में तब्दील हो गया। तब चीन पक्ष में टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने वाला एक मात्र शख्स उसका पॉलिटिकल कमीसार (राजनीतिक प्रतिनिधि) था, जिसकी भाषा भारतीय सैनिकों को समझ में आती थी।
6 सितंबर, 1967 को धक्कामुक्की की एक घटना का संज्ञान लेते हुए भारतीय सेना ने तनाव दूर करने के लिए नाथु ला से लेकर सेबू ला तक के दर्रे के बीच में तार बिछाने का फैसला किया। यह जिम्मा 70 फील्ड कंपनी ऑफ इंजीनियर्स एवं 18 राजपूत की एक टुकड़ी को सौंपा गया। जब बाड़बंदी शुरू हुई तो चीन के पॉलिटिकल कमीसार ने राय सिंह से फौरन यह काम रोकने को कहा। दोनों ओर से कहासुनी शुरू हुई और चीनी अधिकारी के साथ धक्कामुक्की से तनाव बढ़ गया। चीनी सैनिक तुरंत अपने बंकर में लौट गए और भारतीय इंजीनियरों ने तार डालना जारी रखा।
चंद मिनटों के अंदर चीनी सीमा से ह्न्सिल की तेज आवाज आने लगी और फिर चीनियों ने मिडियम मशीन गनों से गोलियां बरसानी शुरू कीं। भारतीय सैनिकों को शुरू में भारी नुकसान झेलना पड़ा, क्योंकि उन्हें चीन से इस तरह के कदम का अंदेशा नहीं था। राय सिंह खुद जख्मी हो गए, वहीं दो जांबाज अधिकारियों 2 ग्रेनेडियर्स के कैप्टन डागर एवं 18 राजपूत के मेजर हरभजन सिंह के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों के एक छोटे दल ने चीनी सैनिकों का मुकाबला करने की भरपूर कोशिश की और इस प्रयास में दोनों अधिकारी शहीद हो गए।
पहले 10 मिनट के अंदर करीब 70 सैनिक मारे जा चुके थे और कई घायल हुए। इसके बाद भारत की ओर से जो जवाबी हमला हुआ उसने चीन का इरादा चकनाचूर कर दिया। सेबू ला एवं कैमल्स बैक से अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत ने जमकर आर्टिलरी पावर का प्रदर्शन किया। कई चीनी बंकर ध्वस्त हो गए और खुद चीनी आकलन के अनुसार भारतीय सैनिकों के हाथों उनके 400 से अधिक सैनिक मारे गए।
भारत की ओर से लगातार तीन दिनों तक दिन-रात फायरिंग जारी रही। चीन को सबक सिखाया जा चुका था। 14 सितंबर को चीनियों ने धमकी दी कि अगर भारत की ओर से फायरिंग बंद नहीं हुई तो वह हवाई हमला करेगा। तब तक चीन को सबक मिल चुका था और फायरिंग रुक गई।
रात में चीनी सैनिक अपने मारे गए साथियों की लाशें उठाकर ले गए और भारत पर सीमा का उल्लंघन करने का आरोप गढ़ा गया। 15 सितंबर को जगजीत अरोरा एवं ले.ज. सैम मानेकशॉ समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में शवों की अदला-बदली हुई।
1 अक्टूबर, 1967 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने चाओ ला इलाके में फिर से भारत के सब्र की परीक्षा लेने का दुस्साहस किया, पर वहां मुस्तैद 7/11 गुरखा राइफल्स एवं 10 जैक राइफल्स नामक भारतीय बटालियनों ने इस दुस्साहस को नाकाम कर चीन को फिर से सबक सिखाया।
ये दोनों सबक चीन को आज तक सीमा पर गोली बरसाने से रोकते हैं। तब से आज तक एक भी गोली सीमा पर नहीं चली है, भले ही दोनों देशों की फौज एक-दूसरे की आंखों में आंखें डालकर सीमा का गश्त लगाने में लगी रहती है। आज दोनों देशों की फौज के बीच यदा-कदा सद्भाव प्रदर्शन की खबरें भी आती हैं। क्या ऐसे सबक के बाद भी चीन भारत के खिलाफ दुस्साहस करेगा?
(मोहन गुरुस्वामी ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विशिष्ट फेलो एवं नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द पॉलिसी अल्टरनेटिव्स नामक थिंक टैंक के प्रमुख हैं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं हैं। उनकी ताजा पुस्तक है 'चेजिंग ड्रैगन : विल इंडिया कैच-अप विद चायना?)


रामदेव का बेसन और सरसों का तेल, लैब टेस्ट में फेल

योग गुरु बाबा रामदेव एक और मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। उनका दिव्य योग मंदिर जिन प्रोडक्ट को अपना उत्पाद बनाकर बेच रहा है उनमें से कई दरअसल कहीं और बन रहे हैं और बाबा का दिव्य योग मंदिर सिर्फ उसपर अपनी पैकिंग कर जनता को गुमराह कर रहा है। खाद्य सुरक्षा विभाग की रिपोर्ट में ये धांधली उजागर हुई है और अब मंदिर को नोटिस जारी कर उससे तीन दिन में जवाब मांगा गया है।
गौरतलब है कि 16 अगस्त को दादूबाग कनखल स्थित दिव्य योग मंदिर में खाद्य विभाग की टीम पहुंची। नगर निगम क्षेत्र के फूड सेफ्टी अफसर के नेतृत्व में टीम ने आरोग्य सरसों के तेल, बेसन, नमक, काली मिर्च, जैम और शहद के चार-चार सैंपल भरे। सील किए नमूनों को जांच के लिए रुद्रपुर स्थित विभाग की लैब में भेजा।

संदीप पाटिल बने चीफ सेलेक्टर, अमरनाथ बर्खास्त!

टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर और कोच संदीप पाटिल बीसीसीआई की मुख्य चयन समिति के चेयरमैन होंगे। वे इस पद से रिटायर हुए कृष्णामाचारी श्रीकांत की जगह लेंगे। चयन समिति में पाटिल सहित पांच नए चयनकर्ता शामिल किए गए हैं जिनमें विक्रम राठौड़, रोजर बिन्नी, सबा करीम, राजिंदर हंस भी शामिल हैं। विक्रम नॉर्थ जोन से, रोजर बिन्नी साउथ जोन से, सबा करीम ईस्ट जोन से और राजिंदर हंस सेंट्रल जोन से चयन समिति में शामिल किए गए हैं। चयन समिति में हुए इस बदलाव की औपचारिक घोषणा अभी नहीं की गई है।
भारतीय क्रिकेट टीम के सेलेक्टर पद से मोहिंदर अमरनाथ को हटा दिया गया है। नार्थ जोन से कम से कम दो एसोसिएशन अमरनाथ के नाम का विरोध कर रही थीं। अमरनाथ इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया सीरीज में टीम के बुरे प्रदर्शन के बाद से ही धोनी को टेस्ट क्रिकेट में कप्तान बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। बताया जा रहा है कि इसी विरोध की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी।
 बता दें कि अमरनाथ सीनियर खिलाड़ी होने के बावजूद अपने से जूनियर रहे श्रीकांत के अंडर में काम कर रहे थे। श्रीकांत टीम के चीफ सिलेक्टर थे जबकि अमरनाथ सिलेक्टर के पद पर थे। ऐसा कहा जाता है कि अमरनाथ को बीते साल बीसीसीआई चीफ सेलेक्टर बनाने का वादा भी कर चुकी थी लेकिन धोनी के विरोध में उतरने के बाद से ही उनको पद से हटाए जाने की आशंका बढ़ गई थी।

Monday, September 24, 2012

'भारत के लिए 360 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य कठिन

उत्तर अमेरिकी व यूरोपीय बाजारों में भारतीय सामानों की कमजोर मांग और उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण भारत के लिए मौजूदा वित्त वर्ष में 360 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य हासिल कर पाना कठिन लगता है। यह खुलासा एक औद्योगिक सर्वेक्षण में हुआ है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, मौजूदा निर्यात हालात बदतर हैं और 2012 का उत्तरार्ध अंधकारमय दिखता है। सर्वेक्षण में शामिल 63 प्रतिशत लोगों का मानना है कि 2012-13 के उत्तरार्ध में निर्यात की स्थिति और बिगड़ेगी।
अगस्त 2012 में भारत का निर्यात एक वर्ष पहले की इसी अवधि की तुलना में 9.7 प्रतिशत नीचे चला गया। फिक्की के सर्वेक्षण में कहा गया है प्रथम पांच महीनों के आंकड़ों को देखते हुए मौजूदा वित्त वर्ष (2012-13) में 360 अरब डॉलर का सरकार का निर्यात लक्ष्य हासिल हो पाना कठिन लगता है।
कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि और विदेशों में कमजोर मांग ऐसे प्राथमिक कारण है, जो भारतीय निर्यातक समुदाय के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। लगभग 89 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कच्चे माल की बढ़ रही कीमतों की ओर ध्यान खीचा है। मिली प्रतिक्रियाओं के अनुसार, पिछले तीन वर्षो में कच्चे माल की कीमतों में 20-30 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
अधिकांश प्रतिभागियों को अगली दो तिमाहियों में निर्यात हालात में किसी महत्वपूर्ण सुधार की आशा नहीं है। भारत का निर्यात 31 मार्च, 2012 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में 20.94 प्रतिशत बढ़कर 303.71 अरब डॉलर हो गया था, जबकि सरकार का लक्ष्य 300 अरब डॉलर का ही था। सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए निर्यात में 20 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा था।

सरकार ने काफी हद तक खत्म कर दी घरों की प्रॉब्लम





शहरों में आवास की समस्या से निपटने में सरकार काफी हद तक कामयाब रही है। आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में 2012 तक घरों की कमी सिर्फ 23 फीसदी रह गई है। वहीं 2007 में ये आंकड़ा 37 फीसदी पर था।
आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के मुताबिक चुनौतियां अभी बाकी है और आने वाले 5 सालों में करीब करीब 2 करोड़ घरों की कमी होगी। इस में सबसे ज्यादा घरों की जरूरत बहुत कम आय वाले लोगों के लिए होगी। रिपोर्ट के मुताबिक अगर हाउसिंग को इंफ्रास्ट्रक्चर या इंडस्ट्री का दर्जा दिया जाए तो काफी हद तक इस परेशानी से निपटा जा सकता है। आवास मंत्री कुमारी शैलजा ने इसके लिए पीपीपी मॉडल की वकालत की है।

अब महंगी होगी चीनी! कैबिनेट कमेटी की अहम बैठक आज

वैसे चीनी की कीमतें पहले ही आसमान छू रही हैं, उस पर अंदेशा यह है कि राशन की चीनी भी महंगी हो सकती है। यानी आम आदमी की थाली से सब्जी की तरह चाय में से शक्कर गायब होने की नौबत आ सकती है। कुल मिलाकर महंगाई विकराल रूप धारण करने को है!
सरकार अब राशन की दुकानों पर मिलने वाली सस्ती चीने के दाम भी बढ़ाने की तैयारी कर रही है। सरकार के मुताबिक शक्कर की कीमत 13.20 रु से बढ़ाकर 25 रु किलो करने का प्रस्ताव है।
सोमवार को होने वाली केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कायापलट हो सकती है। सू्त्रों के मुताबिक मौजूदा वितरण प्रणाली में लगभग 62 प्रतिशत का रिसाव है। चीनी के तेज़ी से बढ़ते दामों की जांच करने के लिए अब सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 42,000 करोड़ रुपए खर्च करेगी। नई प्रणाली में उपभोक्ताओं को एसएमएस के द्बारा राशन स्टाक की जानकारी दी जाएगी।
चीनी के बढ़ते हुए दामों पर चिंता व्यक्त करते हुए अंतर मंत्रालयी समूह ने कहा कि खाद्य मंत्रालय को चीनी को अधिक मात्रा में खुले बाजार में लाना चाहिए। साथ ही इसका आवंटन का कोटा तीन महीने से बढ़ाकर छह महीने कर देना चाहिए।
चीनी उद्योग भारत सरकार के अधीन है। खाद्य मंत्रालय चीनी मिलों को खुले बाजार में और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा बेचे जाने वाली चीनी का मात्रा निर्धारित करती है। संसद के मानसून सत्र में खाद्य मंत्री के.वी थॉमस ने यह कहा था कि जून,2012 तक चीनी के दाम में स्थिरता थी। लेकिन इसके बाद चीनी के दाम तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
पिछले तीन महीनो में चीनी के दामों में लगभग 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है लेकिन वैश्विक बाजार में चीनी की कीमत स्थिर है, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एक बड़े घालमेल की ओर इशारा करती है।
इसके अलावा सरकार एकीकृत बाल विकास योजना में भी सात लाख आंगनवाड़ी के लिए 1.25 लाख करोड़ का प्रस्ताव रख सकती है।

S&P का अनुमान, 5.5 फीसदी ही रहेगी भारत की जीडीपी

साख निर्धारण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स ने मौजूदा वर्ष के भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुमान को पहले के 6.5 प्रतिशत की तुलना में एक प्रतिशत घटाकर साढ़े पांच प्रतिशत कर दिया है।
संस्था ने सोमवार को अपने बयान में कहा है कि हालांकि साल के दौरान एशिया प्रशांत के क्षेत्र में विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में मजबूत रफ्तार रहेगी। स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स ने इसी साल अप्रैल में भारत की साख को स्थिर से घटाकर नकारात्मक किया था।



गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में एक तिमाही पहले के 5.3 प्रतिशत की तुलना में थोड़ा सुधार नजर आया था और यह 5.5 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी थी। संस्था ने चीन की जीडीपी को भी आधा प्रतिशत घटाकर 7.5 प्रतिशत और जापान की दो प्रतिशत की है। दक्षिण कोरिया की जीडीपी ढाई प्रतिशत, सिंगापुर की 2.1 प्रतिशत और ताईवान की 1.9 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
क्रिसिल पहले ही भारत के जीडीपी अनुमान को 6.5 प्रतिशत से घटाकर 5.5 प्रतिशत कर चुका है। एचएसबीसी ने भी जीडीपी अनुमान कम किया है। योजना आयोग ने हाल में संपन्न अपनी पूर्ण बैठक में 12 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान जीडीपी के अनुमान को पहले के नौ प्रतिशत की तुलना में कम कर 8.2 प्रतिशत किया है।

22 हजार कर्मचारियों की भर्ती करेगा बैंक ऑफ बड़ौदा






बैंक ऑफ बड़ौदा अपनी शाखाओं की बढ़ती संख्या के साथ ही कर्मचारियों की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए अगले चार साल में 22,000 नए कर्मचारियों की भर्ती करना चाहता है। बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एमडी माल्या ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा कि अगले तीन से चार साल में हम हर साल लगभग 5,500 नए कर्मचारियों की भर्ती करेंगे।

माल्या तमिलनाडु और केरल के लिए जोनल कार्यालय शहर में एक शाखा और छह एटीएम केंद्रों को उद्घाटन करने के लिए पहुंचे थे। माल्या ने कहा कि अगले कुछ सालों में बड़ी संख्या में कर्मचारी सेवानिवृत्त भी हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगले कुछ साल तक हर साल लगभग 3,500 कर्मचारी सेवानिवृत्त होंगे। 
माल्या ने बताया कि मौजूदा कारोबारी साल के आखिर तक देश और विदेश में बैंक की 500 नई शाखाएं और एटीएम केंद्र खुलेंगे। अभी बैंक की शाखाओं की संख्या 4,000 और एटीएम केंद्रों की संख्या 2,000 है। 

UPA-2 फाइनल राउंड में मोर्चा संभालेगी मंत्रियों की नई ब्रिगेड

साल 2014 के पहले होने जा रहे सबसे बड़े कैबिनेट फैरबदल की तैयारी शुरू हो चुकी है। सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर इसी सिलसिले में अहम बैठक बुलाई गई है जिसमें सोनिया पार्टी के तमाम नेताओं के साथ साथ सहयोगियों के साथ भी इसपर बात कर रही हैं। बता दें कि टीएमसी के मुकुल रॉय की विदाई के बाद सीपी जोशी को पहले ही रेलवे का अतिरिक्त भार दे दिया गया है लेकिन अब यूपीए मंत्रीमंडल से कई मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। इनमें सुबोधकांत सहाय का नाम भी लिया जा रहा है।
माना जा रहा है कि पुराने लोगों को भी फिर से मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। इस मंत्रिमंडल में 15 नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है जिसमें मनीष तिवारी, तारिक अनवर, फिल्म स्टार चिरंजीवी का भी नाम है। जिनमें अगाथा संगमा के स्थान पर एनसीपी का कोटा भरने के लिए तारिक अनवर के नाम पर मुहर लग सकती है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि आगामी 28 सितंबर को कैबिनेट में फेरबदल होना तय है।







राज्यों की बात करें तो पश्चिम बंगाल से कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य और दीपा दासमुंशी, महाराष्ट्र से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गुरुदास कामत और विलासराव मुठेमवार, आईपीएल विवाद के बाद 2009 में कैबिनेट से बाहर किए गए केरल से कांग्रेस सांसद शशि थरुर, राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन, कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी को पद दिया जा सकता है।
कैबिनेट फेरबदल में जिन मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है उनमें कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के बाद घेरे में आए सुबोध कांत सहाय, राष्ट्रपति चुनाव में पिता पीए संगमा के एनसीपी से अलग होने पर उनका साथ दे चुकीं अगाथा संगमा शामिल हैं। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। इसके साथ ही मुकुल वासनिक, बेनी प्रसाद वर्मा पर भी गाज गिर सकती है।
प्रधानमंत्री ऐसे मंत्रियों का बोझ कम करने के पक्षधर बताए जा रहे हैं जिनके ऊपर एक से अधिक मंत्रालयों की जिम्मेदारी है। इनमें कपिल सिब्बल (मानव संसाधन विकास मंत्रालय, टेलीकॉम), वीरप्पा मोइली (पावर, कॉरपोरेट अफेयर्स), सलमान खुर्शीद (लॉ, जस्टिस और माइनॉरिटी अफेयर्स), आनंद शर्मा (कॉमर्स, टैक्सटाइल्स), व्यालर रवि (ओवरसीज अफेयर्स, साइंस एंड टैक्नोलॉजी, माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज), पवन बंसल (संसदीय कार्यमंत्री, जल संसाधन), सीपी जोशी (रेल मंत्रालय, सड़क परिवहन और राजमार्ग) शामिल हैं।




शादी महज औपचारिकता, हनीमून तो कई बार..: करीना

भले ही बेबो शादी की बात नहीं करती हैं, लेकिन शादी से पहले हनीमून के बारे में बेबो बिंदास बोल बोलती हैं। शादी के बाद लोगबाग एक बार हनीमून पर जाते हैं। लेकिन बॉलीवुड की ‘हीरोइन’ शादी के पहले ही सैफ के साथ 249 बार हनीमून मना चुकी हैं। और अक्टूबर में शादी के बाद करीना, सैफ के साथ 250वें हनीमून पर दिसंबर में जाएंगी।
इसे कबूलने में बेबो ने एक पल की देरी नहीं की। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में करीना ने साफ साफ कहा कि हम वैसे ही पहले बहुत बार हनीमून पर जा चुके हैं। मेरे दोस्त अर्जुन कपूर जो बोनी कपूर के बेटे हैं। उन्होंने मुझे बताया कि अगर मैं सैफ के साथ छुट्टियों पर गई तो वो मेरा 250वां हनीमून होगा। क्या फर्क पड़ता है हम तो दिसंबर में फिर से दिसंबर महीने में हनीमून पर जा ही रहे हैं। 
सैफ के साथ करीना पिछले पांच साल से रह रही हैं। दोनों इसी साल अक्टूबर में शादी भी करने वाले हैं। और करीना इस बात को लेकर भी काफी खुश हैं। मालूम हो कि करीना ने हाल ही में ये बयान दिया था कि उनकी और सैफ की शादी काफी पहले हो चुकी है और अक्टूबर में तो बस कानून वो पति पत्नी बन जाएंगे। 
करीना के मुताबिक सैफ और वो तो तकरीबन पांच साल से एक साथ रह रहे हैं। अपना घर भी खरीद लिया है और अपने मन मुताबिक डिजाइन भी करवा लिया है। ऐसे में इस शादी से हमारी जिंदगी में कुछ बदलने वाला नहीं है। 

नेताओं पर करोड़ों बकाया, जनता को कनेक्शन कट की धमकी







देश की राजधानी में दिल्ली में रह रहे सांसद और पूर्व सांसदों ने बिजली और पानी तो इस्तेमाल किया है लेकिन बिल का भुगतान नहीं किया। इनके पास बकाया करीब 5 करोड़ रुपए हैं। बकायेदारों की सूची में 28 मौजूदा सांसद जबकि 700 से ज्यादा पूर्व सांसद हैं। इस सूची में गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे, स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज सिंह चौहान, असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी सहित कई पार्टियों के बड़े नेता हैं।

एनडीएमसी ने बकाएदारों की सूची दिल्ली हाईकोर्ट में सौंपी है। ये हाल तब का है जब ऐसी ही एक सूची एमटीएनएल ने अदालत को सौंपी है। जिसमें माननीयों का बकाया 7 करोड़ से भी ज्यादा है।
एनडीएमसी का इन माननीयों पर तकरीबन पौने पांच करोड़ रुपया बकाया है। ये खुलासा तब हुआ जब दिल्ली हाईकोर्ट ने एनडीएमसी यानि नई दिल्ली नगरपालिका परिषद से उसके बकाएदारों की लिस्ट मांगी। इस लिस्ट में कई बड़े नाम हैं। इन्हें एनडीएमसी का टैक्स चुकाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हालात ये है कि इनकी देनदारी बढ़ती जा रही है। लेकिन सख्त कार्रवाई का दावा करने वाली एनडीएमसी इनके सामने मजबूर नजर आ रही है।  
याचिकाकर्ता ए.के.सिंह के मुताबिक करोड़ों का बकाया इन लोगों पर है। खुद एनडीएमसी ने हलफनामा हाईकोर्ट में सौंपा है। एनडीएमसी की तरफ से बकाएदारों की सौंपी इस लिस्ट में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पर 1996 से 3,319 रुपए बकाया है। स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद पर 2005 से 4,047 रुपए बकाया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण पर 2004 से 8,762 रुपए बकाया है।
इस लिस्ट में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का भी नाम है जिनपर सितंबर 2003 से 29,524 रुपए बकाया है। कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी पर दिसंबर 1998 से 33,980 रुपए बकाया है। इसके अलावा पूर्व सांसद पप्पू यादव पर दिसंबर 2008 से 3,44,275 रुपए। बीजेपी सांसद हरिलाल पटेल पर 1996 से 64,942 रुपए और बीजेपी सांसद गिरधारी लाल भार्गव पर 2004 से 46,825 रुपए बकाया है।
एनडीएमसी इस सूची में मौजूदा और पूर्व सांसदों को मिलाकर 811 लोगों का नाम है। और इनपर बकाया राशि चार करोड़ 88 लाख आठ हजार 531 रुपए हैं।
ऐसे में सवाल ये कि क्या अब ये सांसद या पूर्व सांसद बकाए की रकम वापस करेंगे? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आईबीएन7 की टीम पहुंची केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमलनाथ के पास। एनडीएमसी इन्हीं मंत्रालय में आता है। तो शहरी विकास मंत्री का कहना था कि आप खुद सांसदों से पूछ लीजिए।
अगर आम आदमी का एक रुपया भी बकाया हो तो कुर्की तक हो जाती है। लेकिन माननीय सांसदों पर बकाए पैसे का हिसाब लेने वाला कोई नहीं है। उल्टे मंत्री ऐसी नसीहत दे रहे हैं। एनडीएमसी ने भी इन माननीयों से अपना बकाया वसूलने की कोई कोशिश नहीं की। रकम भले ही छोटी या बड़ी हो। लेकिन सवाल नियमों का है। जो नियम आम जनता के लिए है भला वो नियम इन माननीयों के लिए क्यों नहीं है?

मधुबनी: शिक्षकों ने नीतीश को दिखाई चप्पल







सुशासन का नारा लगाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आज मधुबनी में लोगों ने चप्पल दिखाई। नीतीश रविवार को अधिकार यात्रा के दौरान मधुबनी में थे। यहां एक कार्यक्रम के दौरान अस्थाई शिक्षक हंगामा करने लगे। गुस्साए लोगों ने मुख्यमंत्री को चप्पल भी दिखा दी।

ये देखकर सूबे के मुखिया को भी ताव आ गया। मंच से ही उन्होंने कहा कि मैं अभी गुस्सा नहीं कर रहा हूं, लेकिन अगर कोई फैसला ले लिया तो मुश्किल आ जाएगी। यानि इशारों-ही इशारों में नीतीश ने शिक्षकों को शांत रहने की धमकी भी दे डाली।
अस्थाई शिक्षक नीतीश की सभा में इस मांग पर हंगामा कर रहे थे कि उनको भी स्थाई किया जाए। समान वेतनमान दिए जाएं। इस पर नीतीश ने शिक्षकों से कहा कि वो वॉटसन मैदान से बाहर चले जाए। उन्होंने कहा कि हम गुस्साएंगे नहीं, हम अगर फैसला ले लें तो दिक्कत होगी। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को लेकर उनको आलोचना झेलना पड़ा है।

सचिन के घर पहुंचकर लारा ने दिया ‘सरप्राइज’






मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर उस समय आश्चर्यचकित रह गए जब दुनिया के महानतम बल्लेबाजों में शुमार और वेस्टइंडीज के पूर्व कप्तान ब्रायन लारा ने अचानक उनके घर पहुंचकर उन्हें सरप्राइज दिया।

सचिन ने रविवार सुबह सोशल नेटवर्किंग साइटों फेसबुक और टिवटर पर लारा के साथ अपनी फोटो भी अपलोड की। उन्होंने टिवटर पर लारा के बारे में लिखा कि देखिए, मेरे घर कौन आया। एक अद्भुत खिलाड़ी और एक बहुत अच्छा दोस्त। सचिन के संन्यास पर चर्चा करते हुए लारा ने हाल ही में कहा था कि वह दो साल और क्रिकेट खेल सकते हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में सचिन के खराब प्रदर्शन के बाद उनके संन्यास पर चर्चा एक बार फिर गर्मा गई है।
लारा ने इस बारे में कहा था कि मैं जानता हूं कि वह ट्वेंटी-20 क्रिकेट से पहले ही संन्यास ले चुके हैं। मुझे इस बारे में पक्की तौर पर नहीं पता कि वह अभी वनडे खेल रहे हैं या नहीं लेकिन वह एक, दो साल और टेस्ट क्रिकेट खेल सकते हैं। लारा ने कहा कि मुझे लगता है कि सचिन ने बेहतरीन काम किया है। उन्होंने 15 या 16 साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू किया और वह अब भी खेल रहे हैं। उन्होंने मुझसे एक या दो साल पहले खेलना शुरू किया था और मेरे संन्यास लेने के पांच साल बाद भी वह खेल रहे हैं। वह लाजवाब खिलाड़ी हैं।

राजनीतिक संकट पर चर्चा के लिए CWC की बैठक जारी

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की अहम बैठक जारी है। बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता शामिल हैं। इस बैठक का मुख्य एजेंडा मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा करना है। आर्थिक सुधारों को लिए गए फैसलों और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के बाहर होने के बाद बने हालात पर पार्टी चर्चा कर रही है। इसके अलावा इस बैठक में कैबिनेट में फेरबदल को लेकर चर्चा की उम्मीद है। सवा दस बजे कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी बयान देंगे।
साल 2014 आम चुनाव से पहले छवि सुधारने की कोशिश में जुटी कांग्रेस पार्टी इस बैठक में कैबिनेट फेरबदल से लेकर हाल ही के आर्थिक सुधारों के बाद सरकार की दिशा तय कर सकती है। डीजल कीमत में बढ़ोतरी, सब्सिडी के तहत मिलने वाले सिलेंडरों की सीमा तय किए जाने और रिटेल में एफडीआई जैसे मुद्दों पर चौतरफा घिरी सरकार को आज अपना भविष्य भी तय करना होगा। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक सुबह लगभग 9 बजे शुरू हुई।




सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हो रही है इस अहम बैठक में लंबे वक्त से तेलंगाना राज्य की मांग पर चल रहे आंदोलन का हल भी निकाला जा सकता है। टीआरएस चीफ के चंद्रशेखर राव इसी सिलसिले में दिल्ली के अंदर ही डेरा जमाकर केंद्र से फैसले की उम्मीद लगाए बैठे हैं। वहीं महाराष्ट्र, दिल्ली की राजनीति के भी बैठक में छाए रहने की संभावना है।
बैठक में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के बड़े रोल को लेकर भी बात किए जाने की संभावना है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हो रही इस बैठक में प्रधानमंत्री के अलावा जनार्दन द्विवेदी, अहमद पटेल, ऑस्कर फर्नांडीस, शीला दीक्षित, गुलाम नबीं आजाद, राहुल गांधी एके एंटनी के साथ साथ तमाम नेता मौजूद हैं।


Thursday, September 13, 2012

चीनी उपराष्ट्रपति शि के लापता होने पर अफवाहें गर्म

बीजिंग। चीन के उपराष्ट्रपति शि जिनपिंग हाल के दिनों में कई अहम बैठकों से नदारद रहे और उनकी कई महत्वपूर्ण मुलाकातें रद्द कर दी गईं। ऐसी घटनाओं के बाद जिनपिंग को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैल रही हैं। इन अफवाहों में कहा जा रहा है कि कहीं वह बीमार तो नहीं हैं या फिर सत्ता संघर्ष के शिकार हो गए हैं। जिनपिंग का देश का अगला राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। वह राष्ट्रपति हु जिताओ का स्थान लेंगे।
एक हफ्ते के दौरान शि की अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सेन लूंग सहित कई विदेशी नेताओं के साथ प्रस्तावित कई मुलाकातें रद्द करनी पड़ीं। सोमवार को डेनमार्क की प्रधानमंत्री हेले थार्निग-स्मिड्ट के साथ प्रस्तावित मुलाकात रद्द हुई। यद्यपि चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों नेताओं की मुलाकात प्रस्तावित ही नहीं थी। 





शि के लापता होने पर तरह-तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। इंडियाना विश्वविद्यालय के चीनी मामलों के विशेषज्ञ स्कॉट केनेडी ने कहा कि यह प्रथा लम्बे समय से चली आ रही है कि प्रमुख नेताओं की बीमारी या अन्य समस्याओं के विषय में जानकारी सार्वजनिक न की जाए।

बीबीसी के अनुसार शि के गायब होने पर आशंका जाहिर की जा रही है कि कहीं वह पार्टी की अंदरुनी राजनीति के शिकार तो नहीं हो गए। अभी तक चीनी उप राष्ट्रपति की गुमशुदगी पर कोई चीनी कम्युनिस्ट पार्टी या सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।


रूस के कामचात्का में विमान हादसे में 10 की मौत

मास्को। रूस के सुदूर पूर्वी कामचत्का प्रायद्वीप में बुधवार को एक विमान हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई। यह जानकारी एक अधिकारी ने दी। समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती के अनुसार जांचकर्ताओं ने बताया कि दो इंजन वाले अंतोनोव एन-28 विमान में 12 यात्री और चालक दल के दो सदस्य सवार थें। उन्होंने क्षेत्रीय राजधानी पेत्रोपावलोवस्क-कामचतस्की से उड़ान भरी थी।
अधिकारी ने कहा कि दुर्घटना में घायल चार लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उतरने से कुछ समय पहले विमान का ट्रैफिक कंट्रोल से रेडियो सम्पर्क टूट गया था। कामचत्का के स्पेशल प्रोग्राम मंत्री सर्गेई खाबानोव ने कहा कि पायलट आपातकालीन लैंडिंग की कोशिश कर रहे थे तभी विमान पालाना से 10 किलोमीटर दूर वन क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

अमेरिका की आबादी के 15 पर्सेंट लोग गरीबी रेखा के नीचे

वाशिंगटन। अमेरिका में पिछले साल करीब चार करोड़ 46 लाख लोग गरीबी में जीवन बिताने के लिए विवश रहे जो वहां की आबादी का 15 पर्सेंट है। यह घोषणा बुधवार को अमेरिका के जनगणना ब्यूरो ने की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक गरीबी की यह दर उससे पिछले साल के मुकाबले सांख्यिकीय तौर पर अलग नहीं थी।
जनगणना के मुताबिक साल 2011 के मध्य में परिवारों की इन्कम 50,054 डॉलर थी जो 2010 के मध्य के मुकाबले 1.5 पर्सेंट कम था । साथ ही यह लगातार दूसरी वार्षिक गिरावट थी।
अमेरिका में स्वास्थ्य बीमे के दायरे में न आने वाले लोगों की संख्या साल 2010 में जहां पांच करोड़ थी वहीं 2011 में घटकर यह 4.86 करोड़ हो गई। यानी साल 2010 के 16.3 पर्सेंट के मुकाबले 2011 में घटकर 15.7 पर्सेंट हो गई थी।
'न्यू अमेरिका फाउंडेशन' में असेट बिल्डिंग प्रोग्राम के निदेशक रीड क्रैमर का कहना है कि मंदी के बाद गरीबी की दर में आई तेजी समाप्त होने के बावजूद गरीबी ऐतिहासिक और अवांछित स्तर पर पहुंच गई है।
उन्होंने कहा कि नया आंकड़ा यह संकेत दे रहा है कि कैसी व्यापक आर्थिक कठिनाई पैदा हो गई है। इसने व्यवहार्य और मजबूत सामाजिक सुरक्षा को बनाए रखने के महत्व को भी रेखांकित किया है।

मंत्री की गाड़ी रोकी तो गार्ड ने ट्रैफिक कांस्टेबल को धुना

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण मंत्री ताज मोउनुद्दीन की गाड़ी रोकना ट्र्रैफिक पुलिस के सिपाही को भारी पड़ा। मंत्री की सुरक्षा में तैनात गार्ड ने सड़क पर ही उसकी धुनाई कर दी। मामले की शिकायत मिलने के बाद गार्ड को सस्पेंड कर दिया गया है। वहीं खुद मोउनुद्दीन में कहा कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है और ना ही वो इस घटना के चश्मदीद हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि दो फोर्स के लोग सड़क पर एक-दूसरे से लड़ पड़ें। मुझे नहीं पता वहां पर क्या हुआ, कानून को अपना काम करने दीजिए।
राज्य सरकार ने ट्रैफिक पुलिसवाले की पिटाई के मामले में मंत्री की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी को सस्पेंड कर दिया है। वहीं राज्य के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने मंगलवार सुबह इस मामले पर ट्वीट करते हुए लिखा कि घटना में शामिल सुरक्षाकर्मी को गिरफ्तार कर लिया है। मैंने इस मामले में कानून के तहत कड़ी कार्रवाई करने की सिफारिश की है।


दरअसल सोमवार को राज्य के सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण मंत्री ताज मोउनुद्दीन की गाड़ी जब श्रीनगर के लाल चौक के पास रेडलाइट क्रॉस कर रही थी, तभी ट्रैफिक पुलिस के सिपाही मोहनलाल ने उसे रोकने की कोशिश की। मंत्री की गाड़ी रोके जाने पर उनकी सुरक्षा में तैनात गार्ड ने उसकी पिटाई कर दी। घटना के बाद मोहनलाल को अस्पताल में भर्ती कराया गया।
बाद में मोहनलाल ने बताया कि मैंने उनसे कहा कि नियम सबके लिए हैं, यहां पर तो मुख्यमंत्री भी रुकते हैं। लेकिन जब मैं उनसे बात करने लगा तो उन्होंने मेरे साथ तैनात मेरे जूनियर की पिटाई शुरू कर दी। इसके बाद मंत्री की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी ने बंदूक की बट से मेरी आंख पर वार कर मुझे जख्मी कर दिया।

बोली बिपाशा, कोई भी दूसरी बिपाशा नहीं बन सकता

बॉलीवुड में भले ही आए दिन नए चेहरे प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद अभिनेत्री बिपाशा बसु फिल्म उद्योग में अपनी जगह को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है कि कोई भी बिपाशा नहीं बन सकती।
बिपाशा ने एफएम रेडियो चैनल 'ओए! 104.8' पर कहा कि केवल एक ही बिपाशा, कैटरीना कैफ और करीना कपूर है। कोई भी दूसरा बिपाशा, कैटरीना और करीना नहीं बन सकती। आप अपनी पहचान के साथ जीते हैं।





बीते शुक्रवार को प्रदर्शित बिपाशा की फिल्म 'राज 3' को बॉक्स ऑफिस पर अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। वहीं अभिनेत्री जल्द ही अपनी दूसरी फिटनेस डीवीडी भी लांच करने वाली हैं। 

मानवता हुई शर्मसार, पति के सामने पत्नी से गैंगरेप

पश्चिम बंगाल के बर्धवान जिले के दुर्गापुर शहर में एक महिला के साथ गैंग रेप करने और उसके पति पर हमला करने के आरोप में 10 लोगों को अरेस्ट किया गया। पुलिस ने यह जानकारी दी।
आसनसोल-दुर्गापुर के पुलिस आयुक्त अजय कुमार नंद ने कहा कि हमने 10 लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें से पांच लोगों पर सामूहिक बलात्कार का आरोप है। हम लोग पांच से छह और संदिग्धों की तलाश कर रहे हैं। उन्हें अदालत में पेश किया जाएगा जहां हम उनकी हिरासत मांगेंगे।

सभी आरोपी प्रिंटिंग प्रेस में काम करते हैं जहां पर मार्क्सेवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का मुखपत्र गणशक्ति समेत कई बांग्लाभाषी अखबार छपते हैं। नंद ने कहा कि सभी आरोपियों को रातभर चले अभियान के दौरान गिरफ्तार किया गया और ये सभी संविदा पर थे और इनका किसी भी समाचार पत्र से कोई सम्बंध नहीं है।
आसनसोल में पैथोलोजिकल लेबोरेटरी चलाने वाली एक महिला को सुबह कुछ लोगों ने उठा लिया और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। महिला के पति के विरोध करने पर बलात्कारियों ने उसके साथ मारपीट की। नंद ने कहा कि महिला की चिकित्सा जांच कराई गई है जिसकी रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है।

AI विमान अपहरण कांड में शामिल आतंकी गिरफ्तार






भारतीय विमान एयर इंडिया IC-814 को अगवा करके कंधार ले जाने और अपहरण व आतंकवादी हमलों की कई अन्य घटनाओं के सिलसिले में वांछित आतंकवादी मेहराज-उद-दीन डांड को जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस को मेहराज की लम्बे समय से तलाश थी। यह जानकारी एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने गुरुवार को दी।

मेहराज-उद-दीन उर्फ जावेद नाम का ये संदिग्ध आतंकी कश्मीर का ही रहने वाला है और युनाइटेड जेहाद काउन्सिल का फंड ऑर्गेनाइजर है। लश्कर का सक्रिय मिलिटेंट रह चुका मेहराज-उद-दीन 1992 में कश्मीर से पाकिस्तान गया था और ये मौलाना मसूद अजहर का दायां हाथ भी रह चुका है। यह बुधवार देर रात ही नेपाल के रास्ते जम्मू पहुंचा था। पुलिस को पहले ही मेहराजुद्दीन के आने की खुफिया जानकारी मिल चुकी थी। 
भारत व कई अन्य देशों में हुई आतंकवादी घटनाओं में उसका हाथ होने का संदेह है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि मेहराज को बुधवार रात जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक अज्ञात स्थान से गिरफ्तार किया गया।
खबर है कि मेहराजुद्दीन लश्कर में नई भर्तियां करने के लिए भारत आया था। विमान अपहरण कांड के बाद वह नेपाल के रास्ते पाक चला गया था जिसके बाद पुनः उसने नेपाल में अपना ठिकाना बनाया था। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आतंकी 1993 से ही कई घटनाओं को ऑपरेट कर रहा था। फिलहाल वह नेपाल में हिंदू नाम के साथ रह रहा था, जहां उसने शादी भी की थी।
गौरतलब है कि 24 दिसम्बर, 1999 को पांच पाकिस्तानी आतंकवादियों ने एयर इंडिया के एक विमान का अपहरण कर लिया था और उसे कंधार ले जाने से पहले अमृतसर, लाहौर और दुबई के तीन अलग-अलग हवाईअड्डों पर उतारने के लिए दबाव बनाया था। विमान में उस वक्त उड़ान संख्या आईसी-814 में 176 यात्री सवार थे। दुबई में अपहर्ताओं ने विमान में सवार रुपिन कत्याल नाम के यात्री की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी थी।
बंधकों को मुक्त कराने के लिए आतंकवादियों की रिहाई की गई थी। विमान को एक हफ्ते तक विमान कंधार में खड़ा रहना पड़ा था।

विलय के बाद पहली बार एयर इंडिया की नकदी बढ़ी


सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कम्पनी एयर इंडिया ने बुधवार को कहा कि अप्रैल-जुलाई 2012 की अवधि में उसने 48 करोड़ रुपये का नकदी आधिक्य बनाया है और उसका शुद्ध नुकसान घटा है। पिछले साल की समान अवधि में कम्पनी का नकदी घाटा 586 करोड़ रुपये था।
कम्पनी के विमान बेड़े में पहले बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान शामिल किए जाने के कार्यक्रम के मौके पर नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह ने कहा कि 2007 में विलय के बाद पहली बार एयर इंडिया ने अप्रैल-जुलाई में 48 करोड़ रुपये का नकदी आधिक्य बनाया है। एयर इंडिया का शुद्ध घाटा अप्रैल-जुलाई 2012 अवधि में 557 करोड़ कम दर्ज किया गया।

4 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक भी SC/ST प्रोफेसर नहीं





केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था होने के बावजूद ऐसे चार प्रमुख विश्वविद्यालयों में इन वर्गों का एक भी व्यक्ति प्रोफेसर नहीं है। 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अध्यापक के पेशे में एससी/एसटी के लिए कुल आरक्षित सीटों में से एससी की सिर्फ 32 प्रतिशत और एसटी की सिर्फ 41.8 प्रतिशत सीटें ही भरी जा सकीं है।

महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से आरटीआई के जरिये मांगी सूचना में पता लगा है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), दिल्ली विश्वविद्यालय(डीयू), बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक भी एससी/एसटी प्रोफेसर नहीं है। जेएनयू और डीयू में इस वर्ग का कोई एसोसिएट प्रोफेसर तक नहीं है।

पाकिस्तानी हिंदुओं को शरण मिली, नागरिकता नहीं

पाकिस्तान से करीब बीस साल पहले अपना घर-परिवार और सब कुछ छोड़कर भारत आए हिंदुओं को यहां शरण तो मिल गई लेकिन उन्हें नागरिकता अब तक नहीं मिली है। किसी तरह मजदूरी करके अपने पेट पाल रहे इन लोगों ने अपने बच्चों की शादी यही पर कर दी। कई बच्चे यही पर पढा़ई कर रहे है लेकिन उन्हें भी पता नहीं कि भारत की नागरिकता उन्हें कैसे और कहां मिलेगी।
हरियाणा के ऐलनाबाद में रह रहे यह लोग भारतीय नागरिकता की आस में गंगानगर पहुंचे लेकिन उनकी उम्मीद अभी भी पूरी होती नहीं दिखाई दे रही। हरियाणा के सिरसा जिले में ऐलनाबाद, नीमला और हरीपुरा में रहने वाले पाकिस्तानी हिंदू 1992 से 1994 के दौरान पासपोर्ट और वीजा लेकर भारत आए थे। पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों से भयभीत यह लोग वापस वहां जाने का साहस नहीं कर पाए और यहीं के होकर रह गए। 
कुछ परिवार गंगानगर जिले के अलग अलग गांवों में रहने लगे तो कुछ लोग हरियाणा चले गए। गुजारे के लिए छोटे-मोटे धंधे शुरू किए। बच्चों को किसी तरह से पढ़ाया और फिर बच्चों की शादी भी की। भारतीय नागरिकता नहीं मिलने की वजह से ना तो वो घर, दुकान खरीद पाए और न ही राशन कार्ड तक बना सके।
करीब सात साल पहले फरवरी 2005 में केंन्द्र सरकार ने पाकिस्तानी विस्थापितों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के आदेश दिए तो हरियाणा में रहने वाले इन लोगों ने गंगानगर की पंचायत समिति में डेरा लगा लिया और गंगानगर के जिला कलेक्टर से नागरिकता दिये जाने की मांग की। पाक विस्थापित माणिकराम ने कहा कि गंगानगर के जिला कलेक्टर ने हमारे प्रार्थना पत्र को सिरसा के उपायुक्त के पास भेज दिया।
वहां के उपायुक्त ने एक-एक व्यक्ति की गतिविधियों के बारे में पुलिस और गुप्तचर पुलिस से जांच कराई, पूछा गया कि इनमें से कोई व्यक्ति राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में तो शामिल नहीं रहा। यह सारी रिपोर्ट अनुकूल पाई गई। इसके बाद नागरिकता मिलती तो उससे पहले ही केंन्द्र सरकार ने निचले स्तर पर दी गई शक्तियां वापस ले ली और इन विस्थापितों को नागरिकता देने से संबंधित प्रक्रिया भी लटक गई।
एक अन्य विस्थापित मानाराम ने कहा कि हाल ही में एक बार फिर केंन्द्र सरकार के 31 दिसंबर 2004 से पहले से भारत में बसे पाकिस्तानी हिंदुओं से अपनी पाक नागरिकता त्यागने का शपथ पत्र लेने और यहां की नागरिकता के आवेदन ऑनलाइन लेने के आदेश की जानकारी मिलने के बाद वे फिर गंगानगर पहुंचे है। उन्हें उम्मीद है कि गंगानगर के जिला अधिकारी उनके आवेदन स्वीकार कर कोई न कोई रास्ता निकालेंगे।
इन लोगों ने कहा कि बीस साल से यहां रहने के बावजूद नागरिकता नहीं मिलने की वजह से उन्हें कई तरह की आधारभूत और मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड रहा है। अब भी नागरिकता नहीं मिली तो वे कहीं के भी नही रहेंगे और बच्चों का भी भविष्य चौपट हो जाएगा। इस संबंध में अतिरिक्त जिला कलेक्टर प्रशासन अशोक यादव ने कहा कि हरियाणा से आए इन लोगों ने नागरिकता के लिए ज्ञापन दिया है उस पर विचार किया जा रहा है।

डेढ़ साल बाद मैदान पर फिर दहाड़ा भारत का शेर

वही अंदाज, वही कवर ड्राइव, वही जबरदस्त शॉट, टीम इंडिया का फाइटर लौट आया है। चेन्नई के एम ए चिदंबरम स्टेडियम में टीम इंडिया के युवराज का अपने उसी पुराने रंग में फिर से अवतार हुआ। वाइजेक में बारिश ने युवराज की वापसी पर भले ही ब्रेक लगा दिया था लेकिन चेन्नई का ये एतिहासिक स्टेडियम जिंदगी की लड़ाई जीतकर वापस लौटे इस लड़ाके के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार था।
नैटवेस्ट ट्रॉफी, 2007 टी-20 वर्ल्ड कप से लेकर वर्ल्ड कप 2011, युवराज सिंह न जाने कितने हारे हुए मैचों को जीतकर टीम को मंजिल तक पहुंचाने में कामयाब रहे लेकिन इस बार तो वो मौत को हराकर आए थे। नीली जर्सी में क्रिकेट का ये फाइटर दोबारा कैसे दिखेगा, इसको लेकर सारे संशय 40 ओवर के खेल में पूरी तरह से खत्म हो गए।
युवराज प्लेइंग 11 में शामिल हुए, फील्ड में वही चुस्ती दिखी। आखिरकार कप्तान का भरोसा बढ़ा और बाएं हाथ के इस ऑलराउंडर को गेंद भी थमा दिया। युवराज ने 2 ओवर की गेंदबाजी में 14 रन दिए, हालांकि विकेट का कॉलम खाली रहा।
युवी की पहचान फील्ड में चुस्त टाइगर की रही है। बालाजी की गेंद में फ्रैंकलीन का कैच हालांकि युवराज के स्टैंडर्ड से आसान माना जाएगा लेकिन क्रिकेट मैदान पर पुनर्जन्म के बाद ये उनका पहला कैच था। प्रशंसकों को ना जाने इस जबरदस्त फील्डर के कितने यादगार कैचों की दोबारा याद आ गई।
विराट कोहली और सुरेश रैना जब बल्लेबाजी कर रहा था, तो कैमरा बार बार पवेलियन में बैठे युवराज को दिखा रहा था। हर किसी की एक ही चाहत थी कि युवी कब मैदान में उतरें। पहली बार टीम इंडिया की जीत के बजाए युवराज के मैदान पर उतरने की बेताबी साफ नजर आ रही थी।  
दर्शक टाइगर को मैदान पर देखने के लिए बेसब्र हो रहे थे। आखिरकार रैना आउट हुए और युवराज बल्लेबाजी करने के लिए मैदान पर उतरे। युवी के पहले रन ने हर किसी को राहत दी, तो पहले चौके ने खुशी। जैसे ही बल्ले से छक्का लगा, ये साफ संदेश गया कि पंजाब के पुत्तर में वही माद्दा है, वही दमखम है।
उनके लय में कहीं कोई कमी नहीं आई है। आखिरकार युवराज ने 26 गेंदों में 34 रन बनाए जिसमें एक चौका और दो छक्का शामिल था। युवराज ने वापसी कर टीम को मैच तो नहीं जिता सके, लेकिन टी-20 वर्ल्ड कप से पहले साफ संदेश दे गए कि वो करियर में तीसरे T-20 वर्ल्ड कप में हीरो बनने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

इंटरनेट पर पर्सनल इंफोर्मेशन शेयर करने से पहले इसे पढ़ें

साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ रक्षित टंडन ने इन्टरनेट साइट पर व्यक्तिगत जानकारियां शेयर करने से पहले सुरक्षा उपाय को जरूरी बताते हुए कहा कि सोशल साइट्स के बढ़ते चलन और कामकाज में ऑनलाइन होने की आवश्यकता के चलते इन्टरनेट की साइट्स पर व्यक्गित डेटा फीड कर देने से साइबर क्राइम तेजी से बढ़ा है।
टंडन आज मीडिया सेंटर में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा शुरू की गई विचार गोष्ठी श्रृंखला मंथन के तत्वावधन में साइबर सिक्योरिटी और आपकी सुरक्षा विषय पर आयोजित पहली विचार गोष्ठी में बोल रहे थे।
 उन्होंने कहा कि इन्टरनेट का इस्तेमाल अब दैनिक जीवन की सबसे जरूरी आवश्यकता होती जा रही है। ऐसे में विभिन्न प्रकार की साइट्स पर अपनी व्यक्तिगत जानकारियां शेयर करने से पहले चाहे ई-मेल हो या कोई अन्य साइट, उसके सिक्योरिटी सिस्टम को समझना और उसी के अनुरूप पासवर्ड डेटा आदि को सुरक्षित रखना चाहिए।

एप्पल iphone 5 लॉन्च, 10 खूबियां, फोटो

अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में एप्पल के उपाध्यक्ष फिल शिलर ने जब अपने अत्याधुनिक स्मार्ट फोन यानी आईफोन 5 को लॉन्च किया। पूरी तरह से शीशे और अल्यूमीनियम से बना ये आईफोन एप्पल का सबसे बेहतरीन प्रोडक्ट है। स्मार्टफोन की दुनिया में तहलका मचा चुके एप्पल का ये नया फोन पुराने सभी आईफोन से सुविधाओं और सुंदरता के लिहाज से बेहतरीन है। इसमें कई ऐसे फीचर्स डाले गए हैं जिसमें आम लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखा गया है। एप्पल के मुताबिक कंपनी ने इससे पहले इतना बेहतरीन प्रोडक्ट कभी नहीं बनाया।
 आईफोन 5 को कई महीने की मशक्कत के बाद एप्पल की एक बड़ी टीम ने तैयार किया है। पहले के आईफोन के मुकाबले इसमें हर चीज को कॉम्पैक्ट करने की कोशिश की गई है। इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी चौड़ाई और वजन है। आईफोन 4 के मुकाबले ये फोन 20 फीसदी हल्का है और 18 फीसदी पतला है। जबकि इसका वजन सिर्फ 112 ग्राम है। इसके अलावा इसकी स्क्रीन 4 इंच की है जबकि लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 19:9 रखा गया है।

आईफोन 5 का लुक ही नया नहीं है, बल्कि इसके सभी सॉफ्टवेयर्स अपडेट किए गए हैं और हर तरह की कनेक्टिविटी को सपोर्ट किया गया है। इस फोन की एक बहुत बड़ी खासियत ये है कि इसमें एप्पल की डिजाइन की हुई एक A-6 चिप लगी हुई है। इस चिप की वजह से न सिर्फ इसकी स्पीड काफी बढ़ गई है बल्कि इसे आईफोन के पिछले मॉडलों से दोगुना शक्तिशाली बनाती है। गेम के शौकिया लोगों को भी ये आईफोन खासा पसंद आएगा।
दरअसल इसमें न सिर्फ कई फीचर्स शामिल किए गए हैं बल्कि ग्राफिक्स और साउंड की क्वालिटी भी बेहतरीन बनाई गई है। इस फोन की एक कमजोरी ये है कि इसमें आईफोन 4 की तरह 8 मेगापिक्सल का ही कैमरा है लेकिन एप्पल का दावा है कि इसमें आधुनिक सॉफ्टवेअर और सेंसर की वजह से कम प्रकाश में ही इससे ज्यादा अच्छी तस्वीर खींची जा सकेगी। इसके अलावा इसमें फेस डिटेक्शन फीचर भी जोड़ा गया है।
एप्पल ने भले ही आईफोन के नए अवतार को पेश कर दिया गया है लेकिन इसे खरीदने वालों के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी इसकी कीमत है। कई नए फीचर्स और सुविधाएं बढ़ाने के बावजूद इसकी कीमत आईफोन 4S के बराबर ही रखा गया है। 16जीबी का आईफोन-5 199 डॉलर यानी करीब 11 हजार रुपये में होगा। जबकि 32 जीबी का फोन 299 डॉलर यानी 16500 रुपये और 64 जीबी का फोन 399 डॉलर यानी करीब 22 हजार रुपये में मिलेगा। ये कीमत फिलहाल सिर्फ अमेरिका के लिए है। बाकी देशों के लिए कीमत कंपनी बाद में तय करेगी।
अमेरिका में आईफोन 5 की बुकिंग 14 सितंबर से शुरू होगी जबकि 21 सितंबर से ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस ऑस्ट्रेलिया, जापान, हांगकांग और सिंगापुर समेत 20 देशों में बुकिंग शुरू होगी। माना जा रहा है कि भारत में इसकी बुकिंग नवंबर के पहले हफ्ते में शुरू होगी।

Tuesday, September 11, 2012

‘राहुल के खिलाफ बलात्कार के आरोप के पीछे अखिलेश'

नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के खिलाफ बलात्कार और लड़की को बंधक बनाकर रखने के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में दी गई चुनौती के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने एक ऐसा खुलासा किया जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
वकील ने सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि साल 2011 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ बलात्कार और लड़की को बंधक बनाकर रखने के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जो मामला दाखिल किया गया था वह समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव के इशारे पर हुआ था, जो कि अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।


न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ को अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने यह बात बताई। अदालत मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक किशोर समरीते की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने समरीते के खिलाफ सीबीआई जांच शुरू करने का निर्देश दिया था और साथ ही उन पर 50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। समरीते की वकील जायसवाल ने अदालत से कहा कि उन्हें पंडारा रोड से निर्देश मिला था कि वह राहुल गांधी के खिलाफ उच्च न्यायालय जाएं। न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने पंडारा रोड के जिक्र पर स्पष्टीकरण मांगा तो जायसवाल ने कहा कि निर्देश उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री की ओर से मिले थे।
उन्होंने कहा कि उन्हें (समरीते) पंडारा रोड से याचिका दायर करने का निर्देश मिला था। न्यायमूर्ति कुमार ने पूछा कि आप पहचान क्यों नहीं जाहिर कर रही हो। जायसवाल ने कहा कि वर्तमान मुख्यमंत्री और पार्टी के नेता। मैंने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के सामने भी यही बयान दिया है।
जायसवाल ने जैसे ही अखिलेश यादव का नाम लिया, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से नियुक्त वकील रत्नाकर दाश ने इस मामले में अखिलेश यादव की संलिप्तता का विरोध किया। दाश ने कहा कि आरोपों का जवाब देने के लिए दायर किए जाने वाले शपथ पत्र के लिए उन्हें निर्देश लेने पड़ेंगे।
इसके बाद अदालत ने कार्यवाही 17 सितम्बर तक के लिए स्थगित कर दी। इससे पहले राहुल गांधी ने एक शपथ पत्र दायर कर आरोपों का खंडन किया था। उन्होंने याचिका खारिज किए जाने की भी मांग की थी।

जब एस एम कृष्णा पर भारी पड़ीं हिना रब्बानी खार


इस्लामाबाद। विदेश मंत्री एस एम कृष्णा 80 साल से अधिक उम्र के और अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं, वहीं उनकी पाकिस्तानी समकक्ष हिना रब्बानी खार सिर्फ 34 साल की हैं और उनका राजनीतिक अनुभव भी कृष्णा के मुकाबले कहीं कम है। लेकिन जब मौका मीडिया से आमना-सामना का आया तो खार कृष्णा पर कहीं अधिक भारी पड़ीं।
कृष्णा और खार शनिवार को विदेश मंत्री स्तर की वार्ता के बाद मीडिया से रूबरू हुए। खार कई मुद्दों पर बोलीं और उन्होंने अपने देश का पक्ष मजबूती से रखा। इस क्रम में उन्होंने एक बार भी अपने लिखित बयान का सहारा नहीं लिया, बल्कि इसके बगैर ही अपनी बात रखी।
 वहीं, कृष्णा ने अपना लिखित बयान पढ़ा। इस दौरान उनका प्रभाव अपनी युवा पाकिस्तानी समकक्ष की तुलना में फीका रहा। एक पाकिस्तानी पत्रकार के कृष्णा से पूछे गए सवाल के दौरान भी खार उनके बचाव में आईं।
यहां तक कि एक भारतीय महिला पत्रकार ने भी जब उनसे सवाल किया तब भी उनका रवैया बहुत ढीला-ढाला था। उन्होंने पहले तो सवाल सुना और फिर जवाब देने के लिए तैयार हुए, लेकिन अगले ही पल फिर पूछ लिया, सवाल क्या था?

अगले कुछ घंटों में असीम से हट सकता है देशद्रोह मामला!





कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर लगा देशद्रोह का मामला वापस लिया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार इस मसले पर विचार कर रही है और अगले कुछ घंटों में इसका ऐलान किया जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार में गृहमंत्री आर आर पाटिल ने कहा कि असीम के कार्टून से राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान हुआ है, लेकिन असीम ने देशद्रोह के इरादे से इसे नहीं बनाया है। इसलिए सरकार देशद्रोह की धारा हटाने के बारे में सोच रही है।

दरअसल इंडिया अगेंस्ट करप्शन से जुड़े कानपुर के कार्टूनिस्ट असीम को मुंबई पुलिस ने रविवार को राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। असीम पर आरोप है कि उन्होंने आपत्तिजनक कार्टून बनाकर राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान किया। 
मालूम हो कि मुंबई में हुए अन्ना के आंदोलन के दौरान कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने एक कार्टून बनाया था। इस कार्टून में राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न में मौजूद तीन सिंहों की जगह भेड़िए का सिर और सत्यमेव जयते की जगह भ्रष्टमेव जयते लिखा गया। पुलिस ने असीम के खिलाफ राजद्रोह के अलावा आईटी एक्ट, राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न एक्ट और साइबर क्राइम एक्ट के तहत भी केस दर्ज किया है। 

बढ़ सकते हैं डीज़ल-एलपीजी के दाम















 
 लोगों पर महंगाई की एक और मार पड़ने वाली है. पेट्रोलियम मंत्रालय ने एलपीजी सिलेंडर के दामों में पचास से सौ रुपये और डीजल के दाम पर में चार से पांच रुपये बढ़ोतरी का सुझाव दिया है.
शाम को 5 बजे कैबिनेट की विशेष समिति की एक बैठक होने जा रही है जिसमें इसका फैसला लिया जा सकता है. हालांकि पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा है कि मीटिंग में इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की जानी है.
दरअसल तेल कंपनियां घाटे की दुहाई देते हुए लगातार कीमतों में बढ़ोतरी की मांग कर रही हैं. पेट्रोलियम मंत्रालय ने एक प्रस्ताव ये भी दिया है कि रियायती दाम पर साल भर में 6 एलपीजी सिलेंडर ही दिए जाएं, यानी 6 से ज्यादा सिलेंडर लेने पर सब्सिडी खत्म कर दी जाए.
फिलहाल सरकार डीजल पर 17 रुपये, केरोसिन तेल पर 32 रुपये और रसोई गैस पर 347 रुपये की सब्सिडी दे रही है.

Monday, September 10, 2012

सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना

अन्ना का नया आंदोलन फ्लॉप हो गया। अन्ना का जादू खत्म हो गया। ये कहने वालों की कमी नहीं है। अन्ना की टीम भी जंतर-मंतर पर ज्यादा भीड़ नहीं जुटने से परेशान नजर आई। किरण बेदी और प्रशांत भूषण ने मीडिया को कोसा। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि अन्ना के आंदोलन का भविष्य क्या है? और पिछले महीने अप्रैल से भ्रष्टाचार के खिलाफ जो ज्वार पैदा हुआ था उसकी परिणति क्या होगी? क्या वो पानी का एक बुलबुला था जो वक्त के साथ फट गया? क्या वो महज लहरें थीं जो समय के साथ किनारे से मिल गईं?
अन्ना आंदोलन पर अपनी किताब 'अन्ना - थर्टीन डेज दैट एवेकेंड इंडिय़ा' में मैंने लिखा था कि दिसंबर में मुंबई अनशन के बाद अन्ना और उनकी टीम एक चौराहे पर पहुंच गई है और आगे का रास्ता खोजने के लिए उसे नए सिरे से तैयारी करनी होगी। सिर्फ बार-बार अनशन और भूख हड़ताल से काम नहीं चलेगा। कुछ नया करना होगा। नई ऊर्जा का संचार करना होगा। क्या वो कर पाएंगे? इस सवाल के साथ किताब खत्म हो जाती है। आज भी ये सवाल जिंदा है। और जंतर-मंतर पर पहले तीन दिन नहीं जुटने वाली भीड़ ने इस सवाल को और पुख्ता कर दिया है। पिछले एक साल में अन्ना को जनमानस ने ऐतिहासिक समर्थन दिया। जो अन्ना ने कहा उसने किया, जहां बुलाया वो चला आया। ऐसे में सवाल ये है कि अब वो क्यों नहीं आ रहा है? या उसके समर्थन में वो ऊर्जा, वो सहजता, वो आकर्षण क्यों नहीं दिख रहा है? क्या जनमानस बदल गया है? क्या जनमानस का अन्ना और उनकी टीम पर से भरोसा उठ गया है?
पिछले साल अन्ना ने जब अप्रैल महीने में जनआह्वान किया था तब जनमानस की ताकत के सामने सरकार झुकी और उसने लोकपाल बनाने वाली कमेटी में अन्ना और उसकी टीम को जगह दी। यानी अन्ना ने जो मांगा वो मिला। इससे जनमानस को जीत का एहसास हुआ। उसे लगा कि सरकार को झुकाया जा सकता है। व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद जगी और पूरी होती नजर आई। कोई भी जनांदोलन उम्मीद की ऑक्सीजन पर चलता है। अप्रैल ने लोगों में आशा का भयानक संचार किया। ऐसे में जब अन्ना ने रामलीला मैदान में अनशन का ऐलान किया तो जीत की एक और उम्मीद से जनता फिर जुटी। और आजादी के बाद किसी गैर राजनीतिक प्लैटफॉर्म पर पहली बार इतनी बड़ी भीड़ लोगों ने देखी। और सरकार और संसद को एक बार फिर झुकना पड़ा। संसद और सरकार ने वायदा किया कि लोकपाल बिल बनेगा। और जल्दी ही पास भी हो जाएगा। लेकिन इसके बाद सरकार ने रंग बदला। वो अपने वायदे पर कायम नहीं रह पाई। दिसंबर महीने में लोकसभा में बिल पास तो किया लेकिन राज्यसभा में बिल लटक गया। अब सात महीने गुजर गए हैं, लोकपाल कानून बनेगा ये दावे से नहीं कहा जा सकता। उम्मीद धूमिल पड़ गई है।
2011 की शुरुआत उम्मीद को जीत में बदलते हुए देखने की थी। साल के अंत में जीत की उम्मीद खत्म होने लगी। लोग राजनीतिक पार्टियों से पहले ही उम्मीद खो चुके है। जनांदोलन ने उम्मीद बंधाई थी कि वो भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने में कामयाब होगी। जब सरकार और राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान ने अपनी चालबाजियों से इस भरोसे को भी तोड़ दिया है। लोग कहने लगे हैं कि बार-बार अनशन से क्या होगा? इस बार जब मैं जंतर-मंतर गया तो कई लोग मिले। इन लोगों ने साफ कहा कि अन्ना ने बड़ी गलती कि रामलीला मैदान से उन्हें उठना नहीं चाहिए था। वो सरकार के बहकावे में आ गए। लोकपाल बिल तब बन सकता था। अब नहीं। नेता लोग बड़ी मोटी चमड़ी के होते हैं। इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। और अब ये कानून नहीं बनाएंगे अन्ना कुछ भी कर लें, कितना ही अनशन क्यों न कर लें? यानी लोग एक बार फिर अप्रैल 2011 के पहले की स्थिति मे पहुंचते नजर आए। 'उम्मीद-की-टूटन' ही अन्ना के नए अनशन को वो आग नहीं दे पा रही है जो उसने रामलीला मैदान में दिखाई थी।
फिर अन्ना और उनकी टीम ने पिछले डेढ़ साल में अपनी शैली में कोई खास बदलाव भी नहीं किया। न तो उनकी 'स्ट्रेटजी' मे 'नयापन' दिख रहा है और न ही उनके 'मकसद' में। मंच से दिए गए भाषण भी अपनी 'नवीनता' खो चुके हैं। अन्ना हो या फिर अरविंद या फिर प्रशांत भूषण अपने आप को बार-बार दोहराते से दिखते हैं। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय समाज नए दौर में सांस ले रहा है। गांधी जी को अपना संदेश कश्मीर से कन्याकुमारी तक पहुंचाने में सालों लगे थे और जेपी को महीनों तो अन्ना को चंद घंटे या चंद दिन। यानी ये 'संचार-युग' है। संदेश जितनी तेजी से फैलता है उतनी ही तेजी से मरता भी है। संदेश की ये गति संजीवनी भी है और विष भी। संचार युग ने एक नई उपभोक्तावादी संस्कृति को भी जन्म दिया है। संचार की तेजी की वजह से नया से नया 'उत्पाद' कुछ दिनों में पुराना पड़ने लगता है। इसलिए उत्पाद को टिकाऊ बनाने के लिए उसे कुछ समय के बाद नई तरह से पेश करना होता है। उपभोक्ता को लगातार बताते रहने की जरूरत होती है कि उनकी तेजी से बदलती रुचि के हिसाब से उत्पाद भी बदल गया है। मार्केटिंग की इस 'ट्रिकबाजी' में अन्ना और टीम फिलहाल पिछड़ती दिखी। अन्ना आज भी वही भाषण दे रहे है कि 'वो मंदिर मे रहते हैं, उनके पास सोने को एक खाट है और खाने के लिये के एक प्लेट और उनका कोई बैंक बैलेंस नहीं है। देश के लिये जीना और देश के लिए मरना यही उनके जीवन का मकसद है'। अप्रैल में ये बात नई थी लोगों को अपील करती थी। एक डेढ़ साल बाद ये भाषण और नारे अपनी अपील खो चुके हैं। 'संचार-युग' और 'उपभोक्तावादी-संसार' में अन्ना नाम के 'उत्पाद' को भी अपने को टिकाऊ बनाये रखने के लिये नित 'नवीनता-का-आविष्कार' करते रहना होगा। सिर्फ मंदिर की बात कहने से काम नहीं चलेगा, मंदिर के आगे कहना पड़ेगा। कुछ नया बोलना होगा। कुछ नये सपने देकर जीत की उम्मीद बनाये रखनी होगी।
हालांकि अभी भी मेरा साफ मानना है कि अन्ना के आंदोलन को जो लोग चुका हुआ मान चुके हैं वो गलती कर रहे हैं। सड़क पर आकर लड़ने के जज्बे में थकान आ सकती है लेकिन समर्थन में कमी आई है ये मैं नहीं मानता। ऐसे में अन्ना के आंदोलन को बुलबुला मानने की गलती मैं नहीं करूंगा। ये देखना दिलचस्प होगा कि यहां से आगे का रास्ता वो क्या लेता है।

न निराश करो मन को

मौजूदा राजनीतिक माहौल से लोगों में काफी निराशा है। आम आदमी थका और ठगा हुआ महसूस कर रहा है। घोटाले उसके लिए नए नहीं हैं, लेकिन वे इस कदर और इतने बड़े स्तर पर होंगे, इसकी उम्मीद उसे नहीं थी। लोग कहते हैं कि नेताओं और राजनीतिक दलों से कुछ भी आशा बेकार है। पहले 64 करोड़ का घोटाला होता था। अब एक लाख छियासी हजार करोड़ का हो रहा है। क्या देश को लेनिन की 1917 की क्रांति की जरूरत है या फिर माओ की 1949 की क्रांति की या फिर गांधीजी को बुलाया जाए? मुझे लगता नहीं कि इतना निराश होने की आवश्यकता है। एक 'अदृश्य शांत-क्रांति' की हवा चल निकली है। देश बदल रहा है। मेरी बातें अंतर्विरोधी लग सकती हैं, लेकिन ध्यान से देखें, तो कुछ दिखाई भी देगा। गठबंधन दौर के बावजूद लोकतांत्रिक संस्थाएं पिछले 65 साल में न केवल मजबूत हुई हैं, बल्कि राजनीतिक जमातों को चपत भी लगा रही हैं। चुनाव आयोग हो या फिर कैग या न्यायपालिका या फिर आम आदमी, वह राजनीति को कह रहा है कि बदलो, नहीं तो बदल दूंगा।
टीएन शेषन के पहले चुनाव आयोग की कोई अहमियत नहीं थी। चुनावों में जमकर धांधली होती थी। मतपेटियां खुलेआम लूटी जाती थीं। लोगों को मतदान से रोका जाता था। डंडे के जोर पर एक ही पार्टी या नेता के पक्ष मे वोट डलवाए जाते थे। खून-खराबा होता था। चुनावी नतीजों पर हमेशा सवाल खड़ा रहता था। शेषन ने एक झटके में रोक लगाने का काम किया। चुनावी हिंसा कम होने लगी। वोटों की लूटपाट खत्म होने लगी और नेताओं के दिल में डर बैठने लगा। शेषन ने अकेले दम पर चुनावों को निष्पक्ष व हिंसा रहित कर दिया। नेताओं को यह पसंद नहीं आया। उनको रोकने की कोशिश नरसिंह राव सरकार ने की। शेषन को सनकी, डिक्टेटर और पागल करार दिया गया। उन पर लगाम लगाने के लिए मनोहर सिंह गिल व जीवीजी कृष्णमूर्ति को चुनाव आयुक्त बनाया गया। वरना पहले एकमात्र मुख्य चुनाव आयुक्त होते थे। लेकिन आयोग को अपनी ताकत का अहसास हो गया था। अब चुनाव साफ-सुथरे होते हैं, इसका क्रेडिट शेषन को जाता है।
शेषन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी अंगड़ाई लेनी शुरू की। हालांकि जगमोहन सिन्हा जैसे हाईकोर्ट के जज पहले भी रह चुके हैं, जिन्होंने इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी थी। पीएन भगवती भी थे, जिन्होंने पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी पीआईएल को एक आंदोलन का रूप देकर आम आदमी को ताकत दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता 90 और बाद के दशक में अपने चरम पर पहुंची। जो काम सरकार को करना चाहिए था, वह अदालतों को करना पड़ा। दिल्ली की मिसाल लें। दिल्ली का पर्यावरण खराब था, इसे दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर कहा जाता था। इस पर दिल्ली सरकार को अंकुश लगाना चाहिए था, लेकिन वह सोती रही। सुप्रीम कोर्ट आगे आया, सीसा मिला पेट्रोल बंद हुआ, सीएनजी की बसें चलने लगीं। यमुना साफ हो, नदियों को गंदा करने वाले उद्योग-धंधे और कारखाने बंद हों, इसकी कोशिश अदालत को करनी पड़ी। उसकी इसी सक्रियता के चलते नेता व अफसर जेल जाने लगे। हाल में 2-जी सबसे बड़ा उदाहरण है। सारे लाइसेंस रद्द हुए, कैबिनेट मंत्री, पेट्रोलियम सचिव और कई बड़ी कंपनियों के मालिक व आला मैनेजर जेल गए।
गुजरात दंगों की ठीक से जांच हो, अपराधियों को सजा मिले इस काम में भी सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा। गुजरात पुलिस ने तो सबको क्लीन चिट दे दी थी। नरोडा पाटिया दंगों की प्रमुख गुनहगार को नरेंद्र मोदी ने मंत्री बनाकर इज्जत बख्शी थी। जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई, तो माया जेल में हैं। इसी तरह देश में कैग यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जैसी कोई संस्था है, इसका पता लोगों को हाल-फिलहाल ही लगा। पहले कैग की रिपोर्ट को तवज्जो नहीं दी जाती थी। बोफोर्स मामले में तब के कैग टीएन चतुर्वेदी की रिपोर्ट ने जरूर राजीव गांधी की कुरसी हिलाई और बाद में कारगिल हमले के संदर्भ में सैनिकों के ताबूतों की खरीद में हुए घोटाले पर कैग की रिपोर्ट ने रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिस के होश उड़ा दिए थे।
विनोद राय के कार्यभार संभालने के बाद यह संस्था वैसे ही बदल गई, जैसे शेषन ने चुनाव आयोग को बदला था। पहले राजनीतिक दल माहौल गरमाते थे और कैग की रिपोर्ट का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया जाता था, सरकार पर हमले के लिए। लेकिन अब कैग की रिपोर्टे आती हैं, मीडिया में हंगामा होता है और राजनीतिक दल मुद्दा बनाने के लिए मजबूर होते हैं। 2-जी घोटाले में 1,76,000 करोड़ की संख्या इतनी बड़ी थी कि कोई कैग की रिपोर्ट को नकार नहीं पाया। और अब कोयले में 1,86,000 करोड़ के आंकड़े ने सरकार का चैन छीन लिया है। कैग पहले सिर्फ ऑडिट करता था,अब उसने देश को बताना शुरू किया है कि सरकार, मंत्री, नेता और बड़ी कंपनियां किस तरह से नियम-कानून की धज्जियां उड़ाते हुए बेशर्मी से अपनी जेबें भर रही हैं। कैग ने बताया कि दस रुपये का सामान दो रुपये में बेचा जा रहा है तथा दो रुपये की चीज दस रुपये में खरीदी जा रही है और इस बंदरबांट में ऊपर तक लोग शामिल हैं।
आम आदमी की नींद भी टूटी है। आरटीआई आंदोलन ने छोटे-बड़े शहरों में सरकारी बाबुओं की नाक में दम कर रखा है। निश्चित रूप से आरटीआई से मामला काफी आगे बढ़ा है। लोगों ने लोकपाल की मांग की और अन्ना हजारे व बाबा रामदेव की अगुवाई में वे सड़कों पर उतर आए। साल 2011 में सामाजिक आंदोलनों ने केंद्र सरकार को ऊपर से नीचे तक हिला दिया। फिर सोशल मीडिया पर लोगों की भागीदारी और हर मुद्दे पर बेझिझक अपनी राय रखने की आदत भी अब सरकारों के बेलगाम पैरों में बेड़ियां डालने का काम करने लगी हैं। मुख्यधारा मीडिया खासतौर से टीवी न्यूज चैनलों ने पहले ही सरकार की नाक में दम कर रखा है और इससे परेशान सरकार टीवी पर नियंत्रण की वकालत कर रही है। हालांकि नेता और मंत्री अब भी पूरी तरह से संभलने को तैयार नहीं दिख रहे। इसीलिए कभी कैग को गाली दी जाती है और कभी चुनाव आयोग पर हमले होते हैं। लेकिन जनता सब देख रही है। राजनीतिक पार्टियों को समझना पड़ेगा। ऐसे में, बेहतर हो कि राजनीतिक लोग बदलें, सरकार भी बदले, वरना देश उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में फेंक देगा। यह क्रांति अब रुकने वाली नहीं है।

आरक्षण और इतिहास विरोध की जंग

मंडल कमीशन की सिफारिशें जब वीपी सिंह ने लागू कीं तब मैं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में था। मंडल कमीशन ने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को अलग से 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी। जातिवादी राजनीति का जो नंगा नाच मैंने जेएनयू जैसे सैक्युलर, समतामूलक, वामपंथी रुझान के कैम्पस में देखा था वो झकझोर देने वाला था। मैं तब काफी सक्रिय था। मंडल और आरक्षण के खिलाफ। मेरे तर्क साफ थे। एक, आरक्षण से देश में जातिवाद बढ़ेगा। दो, समाज में विभाजन होगा। तीन, जातिवादी हिंसा को बढ़ावा मिलेगा। चार, प्रशासन कमजोर होगा। पांच, समाज में हमेशा के लिए एक 'परजीवी' वर्ग पैदा होगा जो मेहनत और मेधा की जगह कोटे से नौकरी पाने और आगे बढ़ने में यकीन रखेगा। छह, अगर आरक्षण से प्रशासन कमजोर नहीं होता है तो फिर सेना में आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता? इन तर्कों के समानांतर मेरा मानना था कि आरक्षण की जगह सभी पिछड़ों और दलितों को अगड़े वर्ग के बच्चों के बराबर आने के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए जैसे मुफ्त शिक्षा हो, शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिये स्कॉलरशिप दी जाए। रुचि के हिसाब से मेधावी छात्रों को सरकारी नौकरिय़ों की प्रतियागी परीक्षाओं के लिए मुफ्त तैयारी की सुविधा प्रदान की जाए। पिछड़ों को अगड़ों के बराबर लाकर उन्हें प्रतियोगिता में प्रतिस्पर्धा के लिये छोड़ देना चाहिए। यानी समानता के सिद्दांत के मुताबिक समान अवसर सबको मिलें और कोई वर्ग ये महसूस न करे कि उसका हक मारा गया।
लंबे समय तक मेरी ये सोच बदली नहीं। लेकिन जैसे-जैसे समाज को नजदीक से देखने का मौका मिला मेरी सोच बदलने लगी। आज मैं आरक्षण का पक्षधर हूं। पहले मेरे लिये आरक्षण सिर्फ नौकरियों में पिछड़ों और दलितों की हिस्सेदारी का मसला था। बाद में लगा, नहीं बात सिर्फ नौकरी में हिस्सेदारी की नहीं है। हर बहुलतावादी समाज में इस तरह की शिकायत रहती है। मसला कुछ और है। जाति के आधार पर मनुष्य का मूल्यांकन और उसके आधार पर समाज में व्यक्ति की हैसियत। सम्मान और हिकारत का हक। अग़ड़ी जाति को हमेशा सम्मान मिलेगा, समाज में हमेशा ऊंचा दर्जा होगा और पिछड़ी जातियों और दलितों को हमेशा ही हिकारत की नजर से देखा जाएगा। दलितों की हालत तो और भी बुरी। उन्हें समाज, समाज का हिस्सा ही नहीं समझता। यहां तक की इंसान मानने को भी ऊंची जातियां तैयार नहीं। महाकवि तुलसी दास तक कह गए हैं- ढोर, गंवार, शुद्र, पशु, नारी..ये सब ताड़न के अधिकारी। यानी तुलसी दास के मुताबिक समाज का दलित वर्ग जानवर के समान है और उसको प्रताडित करना चाहिए। मैंने सोचा जहां ये सोच हो वहां आरक्षण सिर्फ नौकरिय़ों में हिस्सेदारी का ही मसला नहीं हो सकता। मसला इंसान को इंसान समझने का है। जाति के आधार पर कोई प्रताड़ित न हो, हक न छीना जाए, ये असल मसला है।
मैं समझता था कि आरक्षण से समाज में जातिवाद बढ़ेगा। मेरी सोच गलत थी। समाज में जातिवाद हजारों साल से है वो आरक्षण से नहीं बढ़ा। आरक्षण ने दलितों और पिछड़ों में समानता का एहसास जगाया, उन्हें सिखाया कि संख्या में वो अगड़ी जातियो से ज्यादा हैं ऐसे में सत्ता और प्रशासन में सिर्फ अगड़ों का ही कब्जा क्यों हो? उनकी भी सत्ता और प्रशासन में संख्या के अनुपात में भागीदीरी हो। इस राजनीतिक चेतना ने समाज की उस प्रक्रिया को तेज किया जो उन्हें बराबरी का दर्जा देने के लिए उद्दत थी। बिहार और उत्तर प्रदेश इसकी मिसाल बने। जिन जातियों को ताड़न का अधिकारी माना जाता था वो सत्ता पर काबिज होने लगीं। बिहार में पिछड़ी जातियां लालू यादव की अगुआई में और यूपी में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम-मायावती के नेतृत्व में सत्ता के शीर्ष पर पहुंचीं। जिन जातियों को यूपी और बिहार की उच्च जातियां यानी बाबू साहब लोगों के सामने बोलने और बैठने का अधिकार नहीं था, वो खुलकर बोलने लगीं। समाज का पिरामिड उलट गया। अब किसी उच्च जाति के लिए पिछड़ों और दलितों पर अत्याचार करना आसान नहीं रह गया। पिछड़ों और दलितों की चेतना ने उन्हें न केवल राजनीतिक ताकत दी बल्कि सामाजिक स्तर पर भी उन्हें 'मजबूरी' में ही सही लेकिन स्वीकार्य बना दिया। मायावती ने 2007 में नया प्रयोग किया। दलितों के साथ ब्राह्मणों का चुनावी रसायन तैयार किया। वो अपने बल पर सरकार बनाने में कामयाब रहीं। इस प्रयोग में एक फर्क था। पहले अगड़ी जातियां नेतृत्व करती थीं और दलित सिर झुकाए उनके पीछे चलते थे। ये कांग्रेस का विजयी फॉर्मूला था। मायावती के शासन में दलित आगे थे और ब्राह्मण पीछे। ऐसा सदियों में कभी नहीं हुआ था। ये भारतीय संदर्भ में मामूली क्रांति नहीं है, अभूतपूर्व है। जातिवाद के जंगल में मायावती का मुख्यमंत्री बनना भारतीय लोकतंत्र और इस सामाजिक उत्थान की बहुत बड़ी उपलब्धि है। जिन लोगों ने करीब से जाति का दंश नही झेला या भोगा है वो इस बदलाव को समझ नहीं सकते।
इस तर्क में भी दम नहीं है कि आरक्षण से प्रशासन कमजोर होगा। लालू-मुलायम-माया के शासन में और उनके पहले उच्च जातियों के नेताओं के शासन में कोई खास फर्क नहीं है। क्या नारायण दत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह और बिहार में भगवत झा आजाद, जगन्नाथ मिश्र का शासन बेहतर था? जो प्रशासनिक कमजोरिय़ां और भ्रष्टाचार पहले था, वैसा ही भ्रष्टाचार और प्रशासनिक कमजोरियां बाद में भी नजर आईं। जगन्नाथ मिश्र और लालू यादव के शासन में मुझे कोई अंतर नहीं दिखता। अगर मायावती के शासन के भ्रष्टाचार को छोड़ दिया जाये तो प्रशासनिक क्षमता के सवाल पर वो अपने किसी भी पूर्ववर्ती अगड़े मुख्यमंत्री से बीस ही बैठेंगीं।
दरअसल अगड़ी जातियों के तर्क पुरानी 'ताड़नकारी' व्यवस्था को बनाए रखने का एक षड्यंत्र और इस आधार पर सदियों पुराने 'अवैध' सामाजिक-राजनीतिक कब्जे को बरकरार रखने का बेहूदा बहाना। फिर इस सवाल का जवाब कौन देगा कि मंडल कमीशन लागू होने के बाद जातिवादी हिंसा कैसे कम हो गई? यूपी और बिहार सत्तर और अस्सी के दशक में ऐसी जातिवादी हिंसा की खबरों से भरे रहते थे। एक बात और मंडल कमीशन के बाद देश ने आर्थिक तरक्की कैसे कर ली? क्योंकि अगड़े तर्क के मुताबिक पिछडे दलितों को न तो सत्ता चलाना आता है और न ही इनके पास प्रशासनिक कौशल है। और आज बिहार कैसे तरक्की कर रहा है जबकि वहां पिछले सात साल से एक पिछड़े नीतीश कुमार का शासन है? ऐसे में आज फिर प्रमोशन में कोटे का विरोध करने वाले विंस्टन चर्चिल की तरह हमें और आपको ये समझाना चाहते है कि अंग्रेज ही शासन कला में पारंगत हैं हिंदुस्तानी के हाथ में सत्ता का मतलब है देश के टुक़ड़े होना। आजादी के पहले चर्चिल गलत थे और आज ये तर्कवीर।

प्रधानमंत्री, सोनिया, ने कुरियन के निधन पर जताया शोक


नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन के निधन पर गहरा शोक जताया। भारत में श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन का लम्बी बीमारी के बाद नाडियाड के एक अस्पताल में शनिवार देर रात निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे।
कुरियन की विधवा मॉली कुरियन को भेजे सांत्वना संदेश में मनमोहन सिह ने कहा, "डॉक्टर कुरियन असाधारण एवं प्रगतिशील प्रबंधक तथा अद्वितीय इंसान थे। किसानों के कल्याण एवं कृषि उत्पादन तथा देश के विकास में उनका अथाह योगदान है।"
प्रधानमंत्री ने कहा, "अपने लम्बे व लब्ध प्रतिष्ठित करियर में डॉक्टर कुरियन ने आणंद को सहकारी डेयरी विकास में मॉडल के तौर पर स्थापित किया, श्वेत क्रांति को सफल बनाया और भारत को दुनिया में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाला देश बनाया।" मनमोहन सिंह ने कहा, "उनका सबसे बड़ा योगदान किसानों को सर्वश्रेष्ठ स्थिति प्रदान करना तथा मध्य वर्ग की तुलना में उनके हितों को अधिक तरजीह देना था।"
सोनिया गांधी ने कुरियन को ऐसा विशिष्ट दूरदर्शी बताया जिन्होंने डेयरी क्षेत्र में अपने योगदानों से हजारों किसानों को सशक्त बनाया और दूग्ध सहकारिता का ऐसा मॉडल विकसित किया जिसने लाखों को प्रेरित किया। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, "उनके द्वारा चलाया गया ऑपरेशन फ्लड आधुनिक भारत के इतिहास में मील का पत्थर है। विश्व भर में उनके चाहने वाले हैं।"
उन्होंने कहा, "हम हमेशा उनका सम्मान करते रहेंगे और उनकी जिंदगी से प्रेरणा लेते रहेंगे।" उपराष्ट्रपति ने अपने शोक संदेश में कहा, "वह देश में श्वेत क्रांति के अगुवा थे। उन्हीं की वजह से देश दुग्ध उत्पादन में विश्व का नम्बर एक देश बना। अमूल की सफलता की पीछे उन्हीं का योगदान रहा।"
आडवाणी ने कहा, "कुरियन के प्रयासों की बदौलत ही देश दुग्ध उत्पादन का विश्वभर में अगुवा बना। इसके अलावा उन्होंने कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया।"उन्होंने कहा कि कुरियन के निधन से जो क्षति हुई है उसे भरना मुश्किल होगा। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने भी उनके निधन पर शोक जताया।

'कोल ब्लॉक पाने को कंपनियों ने नियमों की धज्जियां उड़ाईं'!


कोल ब्लॉक आवंटन में सीबीआई को पता चला है कि आवंटन पाने के लिए निजी कंपनियों ने नियमों की धज्जियां उड़ा दी। झारखंड में जैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के करीबी ने कोल ब्लॉक खरीदा 6 महीने के भीतर उसे कोल ब्लॉक दे दिया गया। सोमवार से सीबीआई इस मामले की जांच तेज करने जा रही है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और उनके सहयोगियों पर सीबीआई एक और केस दर्ज कर सकती है। कोल ब्लॉक आवंटन में 5 कंपनियों के खिलाफ सीबीआई ने पहले ही केस दर्ज कर लिए हैं।
सीबीआई सूत्रों की मानें तो फर्जीवाड़े में सबसे आगे रही झारखंड की विन्नी आयरन एंड स्टील नाम की कंपनी। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर इस कंपनी को संरक्षण देने का आरोप है। कोल आवंटन मामले की जांच कर रही सीबीआई सूत्रों की मानें तो मधु कोड़ा की कंपनी मानी जाने वाली विन्नी आयरन एंड स्टील ने तो कोल ब्लॉक के लिए कागजातों की चोरी तक की और आपतियों के बाद भी कोल ब्लॉक लेने में सफल हो गई।

आपको बता दें कि विन्नी आयरन एंड स्टील कंपनी पर पहले मालिकाना हक वैभव तुलसियान नाम के कारोबारी का था। वैभव तुलसियान के स्वामित्व में जब कंपनी ने कोल ब्लॉक के लिए आवेदन किया तो झारखंड सरकार ने उसकी सिफारिश करने से इनकार कर दिया। इसके बाद अप्रैल 2008 में ये कंपनी मधु कोड़ा के करीबी और फ्रंट मैन कहे जाने वाले विजय जोशी ने खरीद ली। फिर विजय जोशी की कमान में कंपनी ने दोबारा कोल ब्लॉक लेने की कोशिश शुरू की। विन्नी आयरन एंड स्टील कंपनी ने अपने साथ 15 हिस्सेदार कंपनियों के कागज भी सरकार के पास जमा कराए।अब राज्य सरकार का रुख इस कंपनी के लिए बदल गया। अफसर विन्नी आयरन एंड स्टील को कोल ब्लॉक देने के लिए सिफारिश करने लगे। नतीजा ये कि मधु कोड़ा के करीबी विजय जोशी के मालिक बनने के सिर्फ 6 महीने बाद ही विन्नी आयरन एंड स्टील को कोल ब्लॉक मिल गया।
सीबीआई अब इस बात की जांच कर रही है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो राज्य सरकार के अफसरों ने एक ही कंपनी के लिए दोहरा रवैया अपनाया। सिर्फ मालिक बदलने पर कंपनी कोल ब्लॉक पाने के काबिल कैसे हो गई। जांच में सीबीआई को एक और अहम जानकारी हासिल हुई है। सीबीआई ने जब उन 15 कंपनियों से संपर्क साधा जिसे विन्नी ने अपना हिस्सेदार बताया था तो 9 कंपनियों ने विन्नी कंपनी से किसी भी तरह के रिश्ते होने से साफ इनकार कर दिया। यही नहीं इन 9 कंपनियों ने विन्नी आयरन एंड स्टील पर कागजात की चोरी का भी आरोप लगाया। बाकी 6 कंपनियों ने भी विन्नी आयरन एंड स्टील से किसी तरह के संबंध होने से इनकार किया है।
यही वजह है कि सीबीआई ने विन्नी के पूर्व मालिक वैभव तुलसियान से भी पूछताछ की है।
कोल ब्लॉक लेने के लिए चूंकि सालाना टर्न ओवर का अहम रोल था।इसलिए मधु कोड़ा की कथित कंपनी ने कागजात चोरी की। लेकिन दूसरी कंपनियों ने तो जिन बैंकों से लोन लिए थे, उनके टर्नओवर को भी अपना बताकर कोल ब्लॉक हासिल किए। आपको बता दें कि कोल ब्लॉक पाने के लिए अहम शर्त कोल ब्लॉक लेने के लिए स्टील, पावर और सीमेंट मंत्रालय से एनओसी लेनी जरूरी थी। उर्जा मंत्रालय ने एनओसी के लिए शर्त रख दी थी कि जो कंपनी 1 मेगावाट का पावर प्लांट लगाना चाहती है उसका सालाना टर्न ओवर 50 लाख होना चाहिए। यानि कोल ब्लॉक लेकर 500 मेगावाट बिजली बनाने का दावा करने वाली कंपनी का सालाना कारोबार 500 करोड़ का होना जरूरी था।
जेएलडी यवतमाल और जेएएस इंफ्रास्ट्रक्चर ने विदेशी बैंकों से लोन लिया। इन कंपनियों ने बैंक के कुल टर्नओवर को भी अपने सालाना टर्नओवर में जोड़ लिया। अब सीबीआई ये जांच कर रही है कि आखिर इतना बड़ा झूठ बोलने के बाद भी जेएलडी यवतमाल और जेएएस इंफ्रास्ट्रक्चर को कोल ब्लॉक का आवंटन कैसे हुआ।

अगला भारतीय चंद्र अभियान रूस पर निर्भर: इसरो प्रमुख

भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) प्रमुख ने रविवार को कहा कि चीन के साथ असफल अंतरग्रहीय अभियान के बाद देश का अगला चंद्र अभियान रूस के निर्णय पर निर्भर करेगा। आज ही इसरो ने अपने 100वें अभियान सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।
इसरो प्रमुख के. राधाकृष्णन ने कहा, "चीन के साथ अंतरग्रहीय अभियान विफल हो जाने के बाद रूस इसकी समीक्षा कर रहा है। चंद्रयान-2 के लिए रूस ही हमें लैंडर (चांद की सतह पर उतरने के लिए यान) उपलब्ध करा सकता है। उन्होंने कहा, "भारत लूनर आर्बिटर एवं रोवर का निर्माण करेगा। रूस कह चुका है कि वह समीक्षा के बाद निर्णय लेकर हमारा साथ देगा।"
श का चंद्रयान-2 अभियान 2014 में भूसमकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलएवी) द्वारा भेजना प्रस्तावित है। राधाकृष्णनन ने कहा कि इसरो रॉकेट के साथ लूनर आर्बिटर एवं रोवर तैयार करेगा।हालांकि राधाकृष्णनन ने चंद्रयान अभियान की देरी पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।
देश के 100वें अंतरिक्ष अभियान के तहत ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) फ्रांस एवं जापान के उपग्रहों को लेकर रविवार सुबह 9.51 बजे अंतरिक्ष के लिए रवाना हुआ। इस रॉकेट के साथ 715 किलोग्राम का फ्रांसीसी उपग्रह स्पॉट 6 जा रहा है जो पीएसएलवी से प्रक्षेपित किया जाने वाला अबतक का सबसे भारी विदेशी उपग्रह है। दूसरी तरफ जापानी उपग्रह का वजन 15 किलोग्राम है।
इसरो अब इस सफलता के बाद अगले साल जाने वाले मंगल अभियान के लिए तैयारी कर रहा है।
राधाकृष्णनन ने कहा कि अगस्त 2010 से इसरो मंगल अभियान का अध्ययन कर रहा है और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में इस अभियान को मंजूरी दी है।

जब एस एम कृष्णा पर भारी पड़ीं हिना रब्बानी खार

विदेश मंत्री एस एम कृष्णा 80 साल से अधिक उम्र के और अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं, वहीं उनकी पाकिस्तानी समकक्ष हिना रब्बानी खार सिर्फ 34 साल की हैं और उनका राजनीतिक अनुभव भी कृष्णा के मुकाबले कहीं कम है। लेकिन जब मौका मीडिया से आमना-सामना का आया तो खार कृष्णा पर कहीं अधिक भारी पड़ीं।
कृष्णा और खार शनिवार को विदेश मंत्री स्तर की वार्ता के बाद मीडिया से रूबरू हुए। खार कई मुद्दों पर बोलीं और उन्होंने अपने देश का पक्ष मजबूती से रखा। इस क्रम में उन्होंने एक बार भी अपने लिखित बयान का सहारा नहीं लिया, बल्कि इसके बगैर ही अपनी बात रखी।
वहीं, कृष्णा ने अपना लिखित बयान पढ़ा। इस दौरान उनका प्रभाव अपनी युवा पाकिस्तानी समकक्ष की तुलना में फीका रहा। एक पाकिस्तानी पत्रकार के कृष्णा से पूछे गए सवाल के दौरान भी खार उनके बचाव में आईं।
यहां तक कि एक भारतीय महिला पत्रकार ने भी जब उनसे सवाल किया तब भी उनका रवैया बहुत ढीला-ढाला था। उन्होंने पहले तो सवाल सुना और फिर जवाब देने के लिए तैयार हुए, लेकिन अगले ही पल फिर पूछ लिया, सवाल क्या था?


कार्टूनिस्ट केसः अंग्रेजों के बनाए कानून को कब तक ढोएंगे हम?

कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की देशद्रोह के आरोप में हुई गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजों के बनाए इस कानून पर बहस तेज हो गई है। इस कानून को आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने 1870 में लागू किया था। ब्रिटेन में भी 2009 में इस कानून को खत्म किया जा चुका है, लेकिन भारत में ये अब तक जारी है।
बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, डॉक्टर बिनायक सेन, अरुधंति रॉय और अब असीम त्रिवेदी...वैसे तो इस सूची में दर्ज नामों में विचारधारा का फर्क है, लेकिन एक गजब समानता भी है। इन सभी को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। गांधी और तिलक को गुलाम भारत में तो बाकी को आजाद भारत में। इन सबको देशद्रोही बताने के लिए प्रशासन ने एक ही कानून का सहारा लिया। वो कानून जिसे अंग्रेजों ने 1870 में आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए लागू किया था। इंग्लैंड में भी एक ऐसा ही कानून था जिसे जुलाई 2009 में रद्द कर दिया गया, लेकिन हिंदुस्तानी अंग्रेजों की दिलचस्पी इसे बनाए रखने में है। आरोप है कि सरकारें अपने खिलाफ चलने वाले आंदोलनों को कुचलने के लिए इस कानून का दुरुपयोग करती हैं। 
दरअसल भारतीय दंड विधान यानी आईपीसी की धारा 124 (ए) के मुताबिक कोई भी व्यक्ति जो अपने शब्दों, इशारों या किसी भी तरह से सरकार के खिलाफ नफरत या अवमानना फैलाएगा, उसे देशद्रोह का गुनहगार मानते हुए कार्रवाई की जा सकती है। इसके तहत उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। अंग्रेजों ने इस कानून को अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाने के लिए बनाया था। लेकिन वक्त बदलने के बावजूद हुक्मरानों का अंदाज नहीं बदला।
इन दिनों भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोग सड़कों पर आकर तरह-तरह से अपनी भावनाएं जाहिर कर रहे हैं। अगर इस कानून का सहारा लिया जाए, तो ऐसे सभी लोगों को जेल में डाला जा सकता है। कोल ब्लॉक आवंटन में तो सरकार के साथ साथ प्रधानमंत्री पर भी सीधे आरोप लग रहे हैं। ऐसे में अब इस कानून में बदलाव की जरूरत और ज्यादा हो जाती है।
कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी ने इस बहस को तेज कर दिया है। ये सीधे-सीधे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए बड़ी कुर्बानी देनी पड़ी थी, और अब साफ है कि आम हिंदुस्तानी को देशद्रोही बताने वाले उनके कानूनों को भी खत्म करने के लिए कम जोर नहीं लगाना पड़ेगा।
किसी भी कानून से अपेक्षा की जाती है कि वो मानव व्यवहार को नियंत्रित करे और समय के साथ लोगों की जरूरतों और समाज में हो रहे बदलाव के साथ खुद भी बदले। बदकिस्मती से ऐसा नहीं हो पाया। आजादी के साठ साल बाद भी हम अंग्रेजों के बनाए आईपीसी को ढो रहे हैं। सवाल है कि आखिर कब तक?