Wednesday, August 29, 2012

सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी कसाब की मौत की सजा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब की मौत की सजा को बरकरार रखा। मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हमला करने वाले 10 आतंकवादियों में से कसाब एकमात्र ऐसा आतंकवादी है, जिसे जिंदा पकड़ा गया था। इस हमले में 166 लोग मारे गए थे।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति सी.के. प्रसाद की पीठ ने कहा कि हम इस रुख को बरकरार रखने के लिए बाध्य हैं कि फांसी ही एकमात्र ऐसी सजा है, जिसे इस मामले की स्थितियों में दी जा सकती है। 
निचली अदालत ने कसाब को मौत की सजा सुनाई थी और बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी सजा को बरकरार रखा था। उसके बाद उसने सजा-ए-मौत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।  
न्यायालय ने कसाब के इस तर्क को खारिज कर दिया कि मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमला भारत सरकार के खिलाफ युद्ध था, न कि भारत या यहां के लोगों के खिलाफ। 
न्यायालय ने कहा कि भारत सरकार, देश का एकमात्र निर्वाचित अंग और सम्प्रभु सत्ता का केंद्र है। इसके बाद न्यायालय ने कहा कि आरोपी का प्राथमिक और मुख्य अपराध भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना ही था।
उच्च न्यायालय ने 21 फरवरी, 2011 को कसाब की मौत की सजा बरकरार रखी थी। इसके पहले मुंबई की एक अदालत ने छह मई, 2010 को उसे फांसी की सजा सुनाई थी। अन्य आरोपों के अलावा उसे राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी पाया गया था।  
सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने तक चली बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। मामले की सुनवाई 31 जनवरी से शुरू हुई थी।
कसाब और उसके नौ साथी कराची से समुद्र मार्ग से मुंबई पहुंचे थे। उसके बाद उन्होंने एक प्राइवेट बोट एम.बी. कुबेर को अगवा कर लिया था और उसके नाविक अमर चंद सोलंकी को मार डाला था।

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