सोशल
मीडिया एक ऐसी आधुनिक तकनीक है जिसने लोगों को एक जगह ला खड़ा किया है. इस
तकनीक से दूर बैठे किसी व्यक्ति से हम आसानी से अपने मन की बात कह सकते
हैं, उससे अपने अनुभव बांट सकते हैं. इस तकनीक ने जहां भ्रष्टाचार और
कुशासन के खिलाफ लोगों की सोच को एक आम सोच बनाया वहीं दूसरी ओर इस तकनीक
का फायदा उठाते हुए कुछ अराजक लोगों ने भड़काऊ कंटेंट और तस्वीरें डालकर
देश की अखंडता पर ही चोट करने की कोशिश की. आजकल सोशल मीडिया एक ऐसे सूखे
जंगल की तरह हो चुकी है जिसमें थोड़ी चिंगारी लगने की देर है आग अपने आप
पूरे जंगल में फैल जाएगी. असम में दो समुदायों के बीच झड़पों की घटनाओं की
गूंज इन्हीं सोशल मीडिया वेबसाइटों पर भी दिखाई दी जिसकी लपट आगे चलकर
मुंबई, बंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद में भी दिखी. जिस तरह से बहुत बड़ी
मात्रा में आपत्तिजनक तस्वीरें और कंटेंट सोशल मीडिया पर जारी किए गए उससे
तो इसके अस्तिव पर ही सवाल खड़े हो चुके हैं.
सोशल
मीडिया के इस्तेमाल पर कुछ लोगों का कहना है कि लोग अपने फायदे के लिए
इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. उननी भड़काऊ तस्वीरें लोगों को विचिलित कर रही
हैं. यह सोशल मीडिया का ही नतीजा है कि बंगलुरू से भारी संख्या में
पूर्वोत्तर के लोगों का पलायन हुआ. एसएमएस के जरिए लोगों को धमकियां दी जा
रही हैं ताकि अफरातफरी का माहौल पैदा किया जा सके. सरकार द्वारा बहुत देर
बाद आंख खोली गई और जांच की जाने लगी तब ऐसी खबरें आने लगीं कि इनके
इस्तेमाल में पाकिस्तान के कुछ शरारती तत्वों का हाथ है. इसलिए देश की एकता
और अखंडता को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाना या फिर कानून के
दायरे में लाना बहुत ही जरूरी है.
वहीं
दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया पर नियंत्रण लोगों के
अभिव्यक्ति के अधिकारों के साथ खिलवाड़ है. उनका मानना है कि यह वही माध्यम
है जिसने मिस्र, लीबिया में अराजकता और कुशासन के खिलाफ लोगों को एकजुट
किया और सालों की तानाशाही या अधिनायकवाद शासन-प्रणाली को उखाड़ फेंका. यह
सोशल मीडिया ही था जिसने भारत में अन्ना के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के
खिलाफ जनांदोलन खड़ा किया इसलिए सरकार को अपनी खुफिया एजेंसियों की नाकामी
का ठीकरा सोशल मीडिया पर नहीं फोड़ना चाहिए. यदि इन पर आपत्तिजनक तस्वीरें
और कंटेंट डाले जा रहे हैं तो सरकार को ऐसा तरीका इजाद करना चाहिए जिससे इस
पर रोक भी लगाई जा सके और लोगों के अधिकारों पर आंच भी न आए.
सोशल
मीडिया के उपयोग और उसके लाभ-हानि की चर्चा के बाद कुछ ऐसे जरूरी सवाल
सामने आते हैं जिन पर गंभीर बहस की महती आवश्यकता है, जैसे:
1. क्या वर्तमान घटनाक्रम के कारण सोशल मीडिया का अस्तिव खतरे में है?
2. क्या सोशल मीडिया से देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता वाकई खतरे में है?
3. कहीं सोशल मीडिया सरकार के लिए एक बड़ा खतरा तो नहीं बनने जा रही है जिससे डर कर सरकार उस पर काबू करने के बहाने तलाश रही है?
आप उपरोक्त सवालों पर अपने विचार टिप्पणी या स्वतंत्र ब्लॉग लिख कर जारी कर सकते हैं.
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