नई दिल्ली। कोल ब्लॉक आवंटन में
इस्तीफे की मांग के बीच आज संसद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बयान देकर
अपनी ओर से सफाई देने की कोशिश की लेकिन बीजेपी को उनकी ये सफाई रास नहीं
आई है। उसने पीएम का इस्तीफा मांगते हुए आरोप लगाया है कि कोल ब्लॉक आवंटन
में देश को नुकसान हुआ है। कांग्रेस को ‘मोटा माल’ मिला है।
पीएम
के बयान पर प्रतिक्रिया देने प्रेसवार्ता में खुद नेता प्रतिपक्ष सुषमा
स्वराज और अरुण जेटली आए और उन्होंने पीएम के बयान को खारिज करते हुए सरकार
और कांग्रेस पर हमला बोला। सुषमा स्वराज ने कहा कि संसद में पीएम के बयान
के कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर हमारे आरोप और पुख्ता हुए हैं। पीएम ने अपने
बयान में बार-बार ये श्रेय लिया कि उन्होंने ही कोल ब्लॉक का आवंटन करने की
बजाय उनकी नीलामी की नीति बनाई। सुषमा ने कहा कि पीएम ने नीति जरूर बनाई
लेकिन उसपर इतनी धीमी गति से काम हुआ कि आठ साल बीतने के बावजूद वे उसे
लागू नहीं करवा पाए। आज भी सरकार ये बिल लटकाए हुए है।
सुषमा ने कहा कि कोल ब्लॉक का आवंटन में
सरकार को कितनी आपाधापी थी इसका पता इसी से चल जाता है कि 1993 से 2005 तक
कुल 70 कोल ब्लॉक आवंटित हुए तो 2006 से 2010 तक इससे दुगुने यानी 142 कोल
ब्लॉक आवंटित कर दिए गए। पीएम कहते हैं कि ऐसा तेज ग्रोथ और राजस्व के लिए
किया गया। अगर ऐसा है तो कहां है ग्रोथ? कहां है राजस्व। उन्होंने आरोप
लगाया कि राजस्व तो आया लेकिन सरकार या देश के पास नहीं बल्कि कांग्रेस के
खजाने में। कांग्रेस को इस आवंटन में मोटा माल मिला है।
सुषमा ने कहा कि पीएम महज जुबानी जमाखर्च न
करें। हमारी मांग है कि कोल ब्लॉक का आवंटन कैंसिल हो और दोबारा नीलामी हो।
सुषमा ने कहा कि पीएम कहते हैं कि हजार जवाबों से अच्छी मेरी खामोशी है
क्योंकि इससे सवालों की आबरू बच गई लेकिन हम कहते हैं कि जो सवाल उठे हैं
अगर उनके जवाब दिए जाते तो प्रधानमंत्री बेआबरू हो जाते।
सुषमा
के साथ मौजूद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने कहा कि पीएम का
जवाब संविधान और सांविधानिक संस्था पर प्रहार है। यूपीए सरकार संवैधानिक
संस्थाओं पर प्रहार कर उन्हें कमजोर करती रही है। पीएम ने अपने बयान में
नैतिकता की जरूरत के साथ भी अन्याय किया है। उन्होंने बयान की शुरुआत में
खुद सारी जिम्मेदारी ली लेकिन उसके बाद वे दूसरों पर ठीकरा फोड़ते रहे।
जेटली
ने कहा कि पीएम ने अपने बचाव में पांच तर्क दिए हैं। पहला-संसदीय व्यवस्था
में नीलामी का कानून बनने में बहुत वक्त लगता। दूसरा-संघीय व्यवस्था के
चलते राज्यों के सीएम की सिफारिश के आगे वे मजबूर थे। तीसरा-कानून मंत्रालय
बार-बार इसपर अपनी राय बदलता रहा। चौथा-कैग के आकलन में ही खामियां हैं और
पांचवां जीडीपी ग्रोथ की चिंता के चलते जल्द हुआ आवंटन।
जेटली
ने कहा कि पीएम का कोई भी तर्क मंजूर नहीं किया जा सकता। 28 जून 2004 को
नीलामी की बात पहली बार उठी लेकिन पीएमओ ने ही इसका विरोध किया था। पीएमओ
ने सितंबर 2004 में नीलामी से नुकसान की पूरी लिस्ट जारी कर दी। जेटली ने
कहा कि आवंटन में आपाधापी जीडीपी ग्रोथ के लिए नहीं बल्कि कंपनियों को
नीलामी से बचाने के लिए थी। पीएम को दूसरों के सिर ठीकरा फोड़ना शोभा नहीं
देता।
जेटली
ने कहा कि 2जी के वक्त भी कैग के आकलन को गलत बताया गया था लेकिन अब जब
नीलामी हो रही है तो बेस प्राइस ही 14 हजार करोड़ रुपये रखा गया है। अगर
इसी मूल्य पर स्पैक्ट्रम बिके तो भी सरकार को एक लाख चालीस हजार करोड़ का
फायदा होगा। कोल ब्लॉक का आवंटन भी कैंसिल कर उनकी नीलामी की जाए अपने आप
पता चल जाएगा कि नुकसान हुआ है अथवा नहीं। जेटली ने कहा कि अगर कोल ब्लॉक
की नीलामी की जाए तो नुकसान का आंकड़ा एक लाख 80 हजार करोड़ को भी पार कर
जाएगा।
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