अन्ना
की गैरमौजूदगी के बावजूद उनकी टीम ने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में
रविवार को दिल्ली में अपनी धमक दिखाई। कांग्रेस और बीजेपी को एक ही सिक्के
के दो पहलू बताते हुए अरविंद ने जो मुहिम छेड़ी है, इसका असर कार्यकर्ताओं
के जोश में देखा जा सकता था। लेकिन इस प्रदर्शन में टीम अन्ना का चेहरा बन
चुकीं किरण बेदी कहीं नहीं थीं। क्या ये भंग हो चुकी टीम अन्ना की
संभावनाओं में पड़ी किसी दरार का संकेत है।
ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि खुद अन्ना हजारे ने सोमवार को इलाज के लिए
बंगलौर जाने से पहले कहा कि वे गैरमौजूदगी को लेकर किरण से पूछताछ करेंगे।
अन्ना हजारे ने कहा कि किरण बेदी क्यों नहीं गई इसके बारे में उनसे पूछा
जाएगा।
एक सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या किरण बेदी
सिर्फ कांग्रेस को निशाना बनाकर बीजेपी को मदद करना चाहती हैं। किरण इससे
इंकार करती हैं। उनका कहना है कि एक साथ सभी मोर्चे नहीं खोले जा सकते।
सत्ता पक्ष को ही निशाना बनाना चाहिए। जाहिर है, किरण की समझ न अरविंद
केजरीवाल से मेल खाती है और न अन्ना से। अन्ना भी जो कथित कोयला घोटाले के
लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों को जिम्मेदार बता रहे हैं।
हालांकि
अन्ना हजारे बुजुर्ग की तरह ये भी कह रहे हैं कि उनके कुनबे में कोई बड़ा
मतभेद नहीं है। लेकिन उनकी सदिच्छा पर राजनीति की कड़वी सच्चाइयां भारी पड़
रही हैं। चुनाव करीब आने के साथ-साथ ये सिलसिला और बढ़ेगा ये तय है।
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