नवीन जैन ने सिलिकॉन वैली में कई
सॉफ़्टवेयर कंपनियां खड़ी कीं और अरबों डॉलर भी कमाए हैं, लेकिन इन दिनों
वो धरती से दूर चांद पर व्यापार करने की कोशिश में हैं.
उनका कहना है
कि सिर्फ़ एक ग्रह के सहारे रह गए तो इंसानों की हालत डायनासोर जैसी होगी,
तो फिर क्यों न नए आसरे तलाश किए जाएं, नए भंडारों की खोज की जाए.पिछले महीने चांद पर ले जाने वाले उनके विमान ने सफल उड़ान भरी.
उत्तर प्रदेश में मेरठ के सामान्य से परिवार में जन्मे नवीन का इरादा चंद्रमा से हीलियम-3 लाने का है. कहानी का दूसरा हिस्सा.
पढ़ें पूरी कहानी
कैलिफ़ोर्निया के नासा रिसर्च सेंटर के कैंपस में एक उजाड़ से वेयरहाउस से उनकी नई कंपनी मून एक्सप्रेस इस ख़्वाब को हासिल करने की तैयारी में लगी है.मक़सद है चांद पर एक रोबोटिक मिशन भेजकर ये पता लगाया जाए कि वहां से संसाधनों को ज़मीन तक कैसे लाया जा सकता है.
पिछले महीने पहली बार वो अपना स्पेसक्राफ़्ट उड़ाने में कामयाब रहे.
उनका कहना है, “ये इतिहास में पहली बार था जब कोई प्राइवेट कंपनी ने अपना हार्डवेयर, अपना सॉफ़्टवेयर लगाकर एक स्पेसक्राफ़्ट उड़ाया जो चांद तक जाने की क्षमता रखता है.”
मून एक्सप्रेस चांद तक एक प्राइवेट रोबोटिक मिशन भेजने की रेस में सबसे आगे चल रही कंपनियों में से एक है.
चांद का सपना
एक मक़सद तो है दो करोड़ डॉलर की इनाम राशि जीतना जो गूगल और एक्स-प्राइज़ की तरफ़ से रखा गया है और विजेता को 2016 से पहले चांद पर अपना स्पेसक्राफ़्ट उतारना होगा.लेकिन नवीन जैन की नज़र इससे कहीं बड़े इनाम पर है.
उनके अनुसार चांद पर खरबों डॉलर का प्लैटिनम और हीलियम-3 मौजूद है और अगर हीलियम-3 का एक छोटा सा हिस्सा लाने में भी कामयाबी मिल गई तो पीढ़ियों की तो नहीं, लेकिन कई दशकों की ऊर्जा समस्या का हल निकल जाएगा और वो भी प्रदूषण रहित.
कहते हैं, “वो वक़्त ज़्यादा दूर नहीं है जब हनीमून का मतलब सही मायने में होगा कि आप अपनी हनी को मून पर ले जा सकेंगे.”
नई चुनौती
चांद तक की इस रेस में पिट्सबर्ग स्थित ऐस्ट्रोबॉटिक और भारत की एक कंपनी टीम इंडस से उनका कड़ा मुक़ाबला है.उनके स्पेसक्राफ़्ट के मॉडल को देखकर यक़ीन करना थोड़ा मुश्किल सा लगता है कि वो सचमुच चांद तक जा सकेगा.
उनकी अपनी ट्रेनिंग भी सॉफ़्टवेयर के क्षेत्र में है फिर वो स्पेस के क्षेत्र में इतनी दूर कैसे पहुंच पाए.
उनका जवाब है, “कोई भी व्यक्ति जो अपनी फ़ील्ड का माहिर हो वो उसी दायरे में रहकर शायद कुछ नई चीज़ें सोच सके. लेकिन सही मायने में क्रांतिकारी आइडियाज़ उन्हीं से आते हैं जो उस क्षेत्र के एक्सपर्ट नहीं होते. और मेरा पलड़ा स्पेस के मामले में इसलिए भारी है क्योंकि मुझे स्पेस के बारे में कुछ नहीं पता.”
नवीन जैन का कहना है कि वो मेरठ के एक बेहद साधारण परिवार में पैदा हुए जहां परिवार का भरण-पोषण के लिए पिता की सरकारी नौकरी की आय पूरी नहीं पड़ती थी और इसलिए उनकी मां को छोटे-मोटे काम करने पड़ते थे.
ख़्वाहिश पूरी हुई
वो कहते हैं कि उन दिनों को वो भूले नहीं हैं और इसलिए उनके अंदर की एक ख़्वाहिश ये भी है कि उनकी कामयाबी भारत में लोगों को प्रेरित करेगी.उन्होंने भारत में नए आविष्कारों और आइडियाज़ को बढ़ावा देने के लिए उद्योगपति रतन टाटा और एक्स-प्राइज़ के संस्थापक के साथ मिलकर एक इंसेटिव फ़ंड की भी शुरुआत की है.
उन्हें पूरा यक़ीन है कि अगला गूगल और फ़ेसबुक भारत से आ सकता है, लेकिन इसके लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होगी.
वो कहते हैं, “एक तो लोगों से कहना होगा कि इतना बड़ा ख़्वाब देखो कि लोग तुम्हें पागल समझें और दूसरा कि नाकामी से मत डरो.”
No comments:
Post a Comment