Thursday, June 15, 2017

चलता-फिरता चुंबक है ये आदमी, सिर से पिलाता है पानी, लेकिन कमाता है हजारों डॉलर!

अमेरिका के शिकागो में रहने वाले इस शख्स का नाम है 'जेमी कीटोन'. इन्हें त्वचा से संबंधित एक दुर्लभ बीमारी जिसके चलते इनका शरीर चीजों को खुद से चिपका लेता है. अपनी इस असाधारण क्षमता के कारण जेमी 'Can Head' नाम से भी मशहूर हैं. जेमी अपने शरीर पर बोतल और कैन जैसी चीजे चिपका लेते हैं. इतना ही नहीं जेमी अपनी इस दुर्लभ क्षमता का लाइव वीडियो पर डेमो भी दे चुके हैं. अपनी इसी अनोखी शक्ति के कारण वो समाज सेवा भी करते हैं. समाजसेवा का उन्होंने एक अनोखा तरीका निकाला है. अपने सिर पर पानी की बोतल चिपकाकर बिना हाथ लगाए लोगों को पानी पिलाते हैं.

जेमी ने एक बार अपने सिर पर पानी की बोतल चिपकाकर एक महिला को बिना हाथ लगाए पानी पिलाया जिसे देखकर लोग हैरत में पड़ गए. जेमी ने वहां खड़े कई लोगों को इसी तरीके से पानी पिलाकर दिखाया. इसके बाद जेमी ने एक शख्स को कोल्ड ड्रिंक की कैन दी और कहा उसे सही से चेक कर ले ताकि लोगों के मन में कोई शंका ना रहे फिर जेमी ने सभी लोगों के सामने उस केन को अपनी हथेली पर चिपकाकर दिखाया ये देखकर वहां खड़े सभी लोग हैरत में पड़ गए.

त्वचा विशेषज्ञों का कहना है कि जेमी के शरीर का तापमान सामान्य शारीरिक तामपान से अधिक है जिसके कारण उनका सिर सक्शन कप की तरह कार्य करता है. एक साक्षात्कार के दौरान शिकागो ने अपने सिर पर पानी की बोतल चिपकाकर एक गिलास में पानी भरकर दिखाया था. जेमी का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गया है.

जेमी का कहना है, "मेरी डॉक्टर ने मुझे बताया था कि मेरा त्वचा सक्शन कप की तरह कार्य करती है इसलिए चीजें मुझसे चिपक जाती हैं." उन्होंने आगे बताया था, "मुझे पहली बार अपनी इस अद्भुत क्षमता के बारे में तब पता चला था जब मैं सात वर्ष का था. मैंने शुरू में इस बारे में किसी को ज्यादा नहीं बताया. मैं डरता था कि कहीं लोग मुझे सनकी न समझने लगे."  

बड़े ब्रांड ने अपनी विज्ञापन को डिस्प्ले करने के लिए एक नया अवसर खोज लिया है. जेमी से उन्होंने अपने प्रोडक्ट का विज्ञापन के लिए संपर्क किया है. और इस तरह से जेमी आज हजारों डॉलर कमाते हैं

ये कौन सा अनोखा जीव है जो 'हलवा' की तरह खाता है पत्ते, 4 दिन में 23 लाख बार देखा गया वीडियो

ये कौन सा अनोखा जीव है जो 'हलवा' की तरह खाता है पत्ते, 4 दिन में 23 लाख बार देखा गया वीडियो
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है यह अनोखा जीव.

खास बातें

  1. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा अनोखे जीव का वीडियो
  2. पत्तों को फटाफट खा रहा है यह अनोखा जीव
  3. गैब्रिओला द्वीप पर शूट किया गया है यह वीडियो
नई दिल्ली: भारतीय खान-पान में हलवा शायद ऐसा स्वादिष्ट व्यंजन है जिसे खाना सबसे आसान होता है. लोग हलवा को बड़े चाव से बिना दांत की मदद लिए फटाफट खा लेते है. इन दिनों सोशल मीडिया पर एक जीव का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह घास को पौधों के पत्तों को ऐसे खा रहा हो जैसे कोई इंसान हलवा खा रहा हो. शूटरजीत (Shutterjet) के फेसबुक अकाउंट से 10 जून को पोस्ट किए गए इस वीडियो को अब तक 2.3 मिलियन (23 लाख) से ज्यादा बार देखा जा चुका है. इतना ही नहीं, इसे 26,593 लोगों ने शेयर भी किया है. इस वीडियो को पोस्ट करते हुए आर जीनेट मार्टिन ने लिखा है, मैंने इस वीडियो को गैब्रिओला द्वीप पर शूट किया है. वहां मैंने देखा कि यह जीव बड़ी तेजी से पौधों के पत्तों को खाए जा रहा था, इसे देखना एक नया अनुभव था. उसे पत्तों को खाते देखना काफी अच्छा लग रहा था.'


मार्टिन लंबे समय से फोटोग्राफी कर रही हैं. कुछ साल पहले वह गैब्रिओला द्वीप की सैर पर गई थीं, तभी वहां उनके कुत्ते की वजह से इस जीव पर पड़ी. वह करीब 30 मिनट तक इस जीव को यूं ही पत्तों का खाते देखा. हालांकि उन्होंने उस पल के 30 सेंकेंड को फेसबुक पर शेयर किया है. उन्होंने अपने पोस्ट में इस जीव का नाम नहीं बताया है.


वीडियो में दिख रहा है कि छोटा जीव रेंगते हुए आता है और पौधों के पत्ते खाना शुरू कर देता है. वह पत्तों को ऐसे खाता है जैसे उसके मुंह में मशीन लगी हो और पत्त खुद ही उसमें पीसते जा रहे हों. वह सिंहपर्णी के पौधे को खाए जा रहा था. यह दृश्य बेहद आश्चर्य में डालने वाला है. इस पर करीब 2500 कमेंट आ चुके हैं.

पाकिस्तान की इस महिला पत्रकार के साथ हर खिलाड़ी फोटो खिंचवाने से डरता है, जानें क्यों

सेल्फी भी खतरा हो सकती है. एक महिला पत्रकार के मामले में तो यह बात साबित होती दिख रही है. यूं तो इस तरह की बात पर यकीन होना मुश्किल है, लेकिन यह खबर वायरल हो रही है.  एक ऐसी पत्रकार हैं, जिनके साथ कोई खिलाड़ी भी सेल्फी नहीं खिंचवाना चाहता. वजह है कि जिस भी खिलाड़ी के साथ उन्होंने सेल्फी ली, उसका दिन बुरा हो जाता है. इस महिला पत्रकार का नाम है जैनब अब्बास. वैसे, मैदान पर पाकिस्तान की टीम कमाल कर रही है, लेकिन मैदान के बाहर भी टीम का कोई साथ दे रहा है. दरअसल, महिला पत्रकार ज़ैनब अब्बास मैच से पहले जिस भी खिलाड़ी के साथ सेल्फी ले लेती हैं, उसके लिए वह दिन बुरा जाता है. जैनब ने श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच मैच के दिन एंजेलो मथ्यूस के साथ सेल्फ़ी ली और ट्वीटर पर लिखा कि जनता की मांग पर मैंने अपना काम कर दिया. अब मैदान पर जाओ और जीतो. ऐसा ही जैनब एबी डिविलियर्स के साथ कर चुकी हैं. भारत-श्रीलंका मैच से पहले जैनब विराट कोहली के साथ भी सेल्फ़ी लेने में कामयाब हो गई थीं. नतीजा क्या रहा ये सबके सामने था. टीम मैच हार गई थी. टीम इंडिया के लिए रन बनाने की गारंटी बन चुके विराट कोहली चैंपियंस ट्रॉफी में श्रीलंका के खिलाफ बिना खाता खोले ही आउट हो गए. हालांकि भारत ने जीत के 300 से ज्यादा रनों का लक्ष्य दिया था लेकिन श्रीलंका के बल्लेबाजों ने उसे आसानी से पा लिया. भारत की हार पर पहले तो सोशल मीडिया पर लोगों ने इस हार के पीछे विराट कोहली के अति आत्मविश्वास को दोषी ठहराया. लोगों का मानना है कि विराट ने श्रीलंका को काफी हल्के में ले लिया था.

अब पाकिस्तान का मुकाबला सेमीफ़ाइनल में इंग्लैंड से है और कप्तान ऑएन मॉर्गन अगर अख़बार पढ़ते है तो उन्हें पता लग गया होगा कि उन्हें क्या नहीं करना है.

वह 41 साल बाद अपनी मां से मिली, नहीं थम रहे थे दोनों की आंखों से आंसू..

इस खबर को पढ़ने से पहले जरा उस पल को याद कीजिए जब आप पहली बार अपने परिवार से अलग किसी दूसरे शहर में रहने आए होंगे. आप हर पल मां की पिता को याद करते होंगे, ऐसा लगता होगा कि कब मौका मिले और दौड़कर मां के पास चला जाऊं. इन दिनों स्वीडन से भारत आईं एक महिला चर्चा का विषय हैं. दरअसल, भारत में जन्मी स्वीडिश नागरिक नीलाक्षी एलिजाबेथ जोरेंडल 41 साल बाद अपनी मां से मिली हैं. मां-बेटी की यह मुलाकात का पल बेहद भावुक करने वाला रहा. महाराष्ट्र के यवतमाल में रहने वाली महिला ने गरीबी के चलते अपनी बेटी को नीलाक्षी को स्वीडन की दंपत्ति को गोद दे दिया था. उस दौरान नीलाक्षी महज तीन साल की थी.

नीलाक्षी ने जब होश संभाला तो उसकी इच्छा हुई की वह जन्म देने वाली मां से मिले. पुणे की एक स्वंय सेवी संस्था की मदद से नीलाक्षी 41 साल बाद यवतमाल पहुंची और अपनी मां से मिल पाईं. यहां आकर नीलाक्षी को पता चला कि उसकी मां गंभीर बीमारियों से ग्रसित है और वह इन दिनों यवतमाल के अस्पताल में भर्ती हैं. स्वंय सेवी संस्था की अंजलि पवार ने बताया कि 41 साल बाद मां-बेटी की भेंट का पल भावुक करने वाला था. दोनों एक-दूसरे के गले लगकर रो रहे थे. ये भले ही खुशी के आंसू थे, लेकिन थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

नीलाक्षी को जन्म देने वाले पिता खेतों में मजदूरी करते थे. उन्होंने 1973 में खुदकुशी कर ली थी. 1973 में ही ही जोरेंडल का जन्म पुणे के करीब केडगांव में पंडित रामाबाई मुक्ति मिशन की पनाहगार में हुआ. मां ने नीलाक्षी को पंडित रामाबाई मुक्ति मिशन की पनाहगार में छोड़ दिया और बाद में दूसरी शादी कर ली. पंडित रामाबाई मुक्ति मिशन की पनाहगार से 1976 में जोरेंडल को एक स्वीडिश कपल ने गोद ले लिया था. अंजलि ने बताया कि नीलाक्षी अपनी मां की तलाश में 1990 से भारत आ रही थीं. इस दौरान उन्होंने छह बार भारत का दौरा किया

सुरेश प्रभु की महत्वाकांक्षी योजना के तहत 40 हजार पुराने कोचों का कायाकल्प किया जाएगा

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने आम जनता की रेल यात्रा को और सुखद बनाने के लिए एक मेगा प्रॉजेक्ट लॉन्च किया है. इसके तहत करीब 40 हजार पुराने कोचों का कायाकल्प किया जाएगा. सरकार के इस मिशन रेट्रो फिटमेंट प्रॉजेक्ट (Mission Retro-Fitment) के तहत भारतीय रेलवे अपनी रेलों के कोचों का न सिर्फ इंटीरियर बदलेंगी बल्कि कई प्रकार के सेफ्टी फीचर्स भी प्रोवाइड करवाएंगी. साथ ही एलईडी लाइट्स, ब्रैंडेड फिटिंग्स, धुएं से ही बज उठने वाले अलार्म इसके मिशन के तहत लगाए जाएंगे.

भारतीय रेलवे दरअसल 40 हजार कोचों के इंटीरियर को साल 2022- 23 तक अपग्रेड करने की योजना बना रही है. स कार्ययोजना को लागू करने पर प्रति कोच 30 लाख रुपये का खर्च अनुमानत: आएगा.

रेलवे का कहना है कि कोच रिहेबिलिटेशन वर्कशॉप (भोपाल) के तहत 57 कोचों का पहले ही नवीनीकरण किया जा चुका है. ये नए कोच वाराणसी-नई दिल्ली महामना एक्सप्रेस में चल रहे हैं. इन्हें 22 जनवरी 2016 को इस ट्रेन में फिट कर दिया गया है.

इस प्रॉजेक्ट के तहत एलईडी लाइटें, मॉड्यूलर टॉयलेट, ब्रैंडेड फिटिंग, खिड़कियों की बेहतरीन झिल्लियां भी लगाए जाएंगे. सेफ्टी फीचर्स भी बेहतर किए जाएंगे. धुएं और आग को 'सूंघ' लेने वाले उपकरण लगाए जाएंगे, हालांकि ये केवल नए बनाए जाने वाले एसी कोच में होंगे.

नवीनीकृत कोचों में बॉयो टॉयलेट होंगे. पैसेंजर्स का पता-सूनचा सिस्टम होगा, ब्रेल लिपि में साइबोर्ड होंगे, लैपटॉप और मोबाइल चार्जिंग के पॉइंट बढ़ाए जाएंगे. चों के नवीनीकरण के लिए बेहतरीन कच्चे माल का प्रयोग किया जाएगा जैसे कि पॉलीकार्बोनेट एबीएस, ग्लास फाइबर जिस पर प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील होगा. ऐसे की कुछ और फीचर्स होंगे.

Saturday, June 3, 2017

महाराष्ट्र के बाद गुजरात में फूटा किसानों का गुस्सा, सड़कों पर फेंके आलू

महाराष्ट्र में किसानों को हड़ताल पर गए 24 घंटे भी नहीं बीते कि गुजरात में भी किसानों का गुस्‍सा फूट रहा है. राज्य के बनासकांठा जिले में नाराज किसानों ने डिसा-राधनपुर हाइवे पर चक्का-जाम कर दिया. किसानों ने सड़कों पर आलू की फसल फेंककर अपना विरोध जताया. साथ ही सरकार के विरोध में जमकर नारेबाजी भी की.

ये किसान आलू की फसल का उचित मूल्य नहीं मिलने और खेती के काम के लिए पानी उपलब्ध न होने के कारण नाराज हैं. किसानों ने यह धमकी भी दी कि अगर उनकी मांगों की जल्द सुनवाई नहीं की गयी तो वे आत्महत्या कर लेंगे.

बीते कुछ वर्षों में आलू की फसल पर अच्छा रिटर्न मिलने के कारण गुजरात में किसानों ने आलू की बुवाई का रकबा बढ़ा दिया है. लेकिन कृषि उत्‍पादन में आ रही परेशानियों से किसान खफा हैं.

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस वर्ष गुजरात में 12 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर आलू की खेती की गयी है. पिछले वर्ष यह 10 लाख हेक्टेयर के करीब थी. आलू उत्पादन में गुजरात देश में पांचवे नंबर पर है. बंपर पैदावार ने कीमतों को भी प्रभावित किया है, इससे भी किसानों को घाटा हो रहा है.

गौरतलब है कि गुरुवार को महाराष्ट्र में किसानों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की शुरुआत की थी. यह हड़ताल पहले ही दिन हिंसक हो गयी. किसानों ने हड़ताल में शामिल न होकर सब्जियां ढो रहे ट्रकों में तोडफ़ोड़ की और दूध के टैंकर उलट दिये.

महाराष्ट्र के किसान कर्जमाफी और मुफ्त बिजली के संबंध में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ बातचीत विफल होने के बाद हड़ताल पर हैं. उनकी हड़ताल का आज दूसरा दिन है. इस हड़ताल से फलों-सब्जियों और दूध आदि की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका है.

टेरर फंडिंग मामले में गिलानी, नईम और हाफिज सईद के खिलाफ केस दर्ज

नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी ने शनिवार को अलगाववादी नेता एसएएस गिलानी के खिलाफ टेरर फंडिंग में कनेक्शन को लेकर मामला दर्ज किया है. गिलानी के साथ ही नईम खान, फारुख अहमद डार और 26/11 हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ है.

कश्मीर में अलगाववादी नेता नईम खान पर आतंकवादियों और पत्थरबाजों को फंडिंग करने का आरोप लगा है. नईम के घर एनआईए छापा मार रही है. दिल्ली से एनआईए की 12 टीमें श्रीनगर पहुंची हैं. उन पर आतंकियों को फंडिंग का आरोप लगाया गया है. नईम के खिलाफ छापेमारी दिल्ली और हरियाणा के 8 ठिकानों और कश्मीर के 14 ठिकानों पर जारी हैं.

एनआईए हवाला आॅपरेटर्स के खिलाफ लगातार शिकंजा कस रही है. ये माना जा रहा है कि कश्मीर में हवाला आॅपरेटरों के एक्टिव रहने के कारण ही पत्थरबाज हावी हो रहे हैं और सेना व सरकार के हर फैसले के खिलाफ सड़कों पर छात्रों को उतरने के लिए उकसा रहे हैं. आज एनआईए इसी कड़ी में अलगाववादी नेता नईम के घर, आॅफिस और कॉमर्शियल ठिकानों पर छापेमारी कर रही है.

गौरतलब हो कि वरिष्ठ अलगाववादी नेता एंव नेशनल फ्रंट के प्रमुख नईम खान पर कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए पाकिस्तान से फंडिंग के आरोप हैं. इस सिलसिले में एनआईए ने नई दिल्ली में तीन दिनों तक उनसे पूछताछ की. एनआईए इस मामले में नेशनल फ्रंट के प्रमुख नईम खान के अलावा फारुख अहमद उर्फ बिट्टा कराटे, जावेद अहमद बाबा उर्फ गाजी से भी पूछताछ कर रही है.

मिसाइल टेस्ट सफल हुआ तो यूं खिलखिलाकर हंस पड़ा तानाशाह किम जोंग

तमाम तरह के प्रतिबंधों के बावजूद लगातार मिसाइस टेस्‍ट करने वाले उत्‍तर कोरिया ने हाल ही में 22 मई को बैलेस्‍टिक मिसाइल का सफल टेस्‍ट किया. मिसाइल टेस्‍टिंग का उत्‍तर कोरिया की मीडिया में लाइव प्रसारण किया गया. हालांकि उत्‍तर कोरिया में मिसाइल टेस्‍ट कहां किया गया इसकी सूचना किसी को नहीं दी गई और स्‍वतंत्र पत्रकारों को भी नहीं बताया गया. मिसाइल

Friday, June 2, 2017

RSS नेता का विवादित बयान, कहा- वैलेंटाइंस डे की वजह से होते हैं रेप

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि बलात्‍कार और महिलाओं पर हिंसा के मामलों के लिए वैलेंटाइंस डे जिम्‍मेदार है. उन्‍होंने जयपुर में आरएसएस कार्यकर्ताओं के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान शुक्रवार को यह बात कही.

उन्होंने कहा कि भारत में प्रेम पवित्र और शुद्ध होता है लेकिन पश्चिम ने इसका बाजारीकरण कर दिया है. आरएसएस नेता ने कहा, 'भारत में प्रेम पवित्र और शुद्ध रहा है. यह राधा-कृष्‍ण, लैला-मजनूं और हीर-रांझा की कहानियों के रूप में सुनाया जाता है, लेकिन पाश्‍चात्‍य सभ्‍यता ने प्रेम का बाजारीकरण कर दिया. इसने वैलेंटाइंस डे जैसे पर्वों को जन्‍म दिया है जो कि अब बलात्‍कार, नाजायज बच्‍चों और महिलाओं पर हिंसा जैसी समस्‍याओं के लिए जिम्‍मेदार है.'

उन्‍होंने आगे कहा कि केवल भारत में नहीं पूरी दुनिया इस समस्‍या का सामना कर रही है. इंद्रेश कुमार ने कहा कि आरएसएस आत्‍मा और चरित्र की शुद्धि करता है. उन्‍होंने कहा, 'लोगों की आत्‍मा की शुद्धि के लिए एक आंदोलन चलाया जाना चाहिए जिससे कि समाज और देश विकास कर सके.'

आरएसएस नेता ने कहा कि संघ छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ है. उन्‍होंने त्‍योहारों के दौरान चीनी सामान का बहिष्‍कार करने का आह्वान भी किया. कुमार ने कहा कि चीनी सामान की बिक्री से भारत में तीन करोड़ नौकरियां प्रभावित होती हैं.

अरुणाचल के सीएम ने कहा- मैं बीफ खाता हूं, बैन पर दोबारा सोचे मोदी सरकार

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता पेमा खांडू बीफ के सपोर्ट में आ गए हैं. मवेशियों की हत्या के मकसद से बेचने पर बैन के केंद्र के नोटिफिकेशन का उन्होंने विरोध किया है. बता दें कि मंत्रालय के नए नियम के मुताबिक अब कोई भी मवेशी को मारने के मकसद से उसे बेच नहीं सकता. मवेशी को बेचने से पहले उसे एक घोषणापत्र भी देना होगा.

सीएनएन न्यूज 18 के भूपेंद्र चौधरी से बातचीत के दौरान खांडू ने कहा, केंद्र सरकार को इस नोटिफिकेशन पर दोबारा सोचना चाहिए. उन्होंने कहा, मैं खुद बीफ खाता हू और इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

उन्होंने कहा, नरेंद्र मोदी सरकार काफी संवेदनशील है. बीजेपी नेता वैंकेया नायडू ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर राज्यों से बात करेंगे और मवेशियों के बेचने के मुद्दे पर दोबारा विचार करेंगे. खांडू ने कहा, सिर्फ अरुणाचल प्रदेश ही नहीं, पूरे नॉर्थ ईस्ट में अधिक संख्या में ट्राइबल रहते हैं और वे नॉन वेजेटेरियन हैं.

बता दें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पशु क्रूरता निवारण (पशुधन बाजार नियमन) नियम, 2017 के शीर्षक से राजपत्र में इसका उल्लेख किया गया है. इसमें लिखा है, कोई भी मवेशी को तब तक बाजार में नहीं लाया सकता जब तक कि वह यह लिखित घोषणापत्र नहीं देता कि मवेशी को मांस करोबार के लिए हत्या करने के मकसद से नहीं बेचा जा रहा है. उसे बताना होगा कि वह मवेशी को कृषि संबंधी उद्देश्य से ही बेच रहा है.

राज्य से बाहर के व्यक्ति को बेचने पर प्रतिबंध
गौशाला, पशु कल्याण संस्थाओं आदि को भी कोई मवेशी गोद देने के दौरान यह एफिडेविट देना होगा कि वह हत्या के लिए नहीं बल्कि कृषि उद्देश्य से इस्तेमाल किया जाएगा. इस नियम के तहत राज्य से बाहर के व्यक्ति को भी मवेशी बेचने पर रोक लगाइ गई है. राज्य सीमा के 25 किमी. के भीतर पशु बाजार को भी प्रतिबंधित किया गया है.

किसान के दस्तावेजों की होगी जांच
पशु बाजार में मौजूद अधिकारियों को दस्तावेजों की जरिए मवेशी के खरीदार की जांच करनी होगी कि वह किसान है. इस नोटिफिकेशन में मवेशी (कैटल) के तहत सांड, गाय, भैंस, बछड़े और ऊंट को रखा गया है. वहीं, बाजार को एक ऐसी जगह बताया गया है जहां अलग-अलग जगहों से जानवर बेचने या निलामी के लिए लाए जाते हैं.

माकपा सांसद जीते हैं 'आलीशान जीवनशैली', पार्टी ने किया निलंबित

माकपा के राज्यसभा सदस्य रीतब्रत बनर्जी को उनकी ‘आलीशान जीवनशैली’ को लेकर पार्टी से तीन महीने के लिए निलंबित किया गया है. माकपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं जाहिर होने की शर्त पर बताया कि रीतब्रत की जीवनशैली कम्युनिस्ट जैसी नहीं है. शिकायत मिलने के बाद उन्हें तीन महीने के लिए निलंबित कर दिया गया है.

रीतब्रत बनर्जी पर 'आलीशान जीवनशैली' जीने के आरोपों की जांच के लिए पार्टी ने तीन सदस्यीय आंतरिक समिति का गठन किया है. समिति अपनी रिपोर्ट आगामी तीन महीने में माकपा की प्रदेश समिति को सौंपेगी.

माकपा नेता ने कहा कि अगर आरोप सच साबित होते हैं तो आगे और कार्रवाई की जाएगी. यदि आरोप बेबुनियाद पाए गए तो तीन महीने बाद उनके निलंबन को समाप्त कर दिया जाएगा.

माकपा के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्रा ने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा,  'मैं अपनी पार्टी के आंतरिक मामलों के बारे में नहीं बोलूंगा. हम पार्टी के किसी भी नेता की सार्वजनिक निंदा या पार्टी से निकाले जाने पर ही बयान जारी करते हैं. 'अब इस पूरे मामले में रीतब्रत की प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है.

बता दें कि फरवरी में पार्टी के एक सदस्य ने रीतब्रत द्वारा एप्पल वॉच और मांट ब्लैंक की कलम जैसे महंगे सामान के इस्तेमाल को लेकर सवाल खड़े किए थे. खबरों के मुताबिक रीतब्रत ने सांसद के तौर पर अपने पद का इस्तेमाल करते हुए उस पार्टी सदस्य के नियोक्ता को पत्र लिखकर उनके खिलाफ शिकायत की थी.

कश्‍मीरी नेता नईम खान के 22 ठिकानों पर छापेमारी, आतंकियों को फंडिंग का आरोप

कश्मीर में अलगाववादी नेता नईम खान पर आतंकवादियों और पत्थरबाजों को फंडिंग करने का आरोप लगा है. नईम के घर एनआईए छापा मार रही है. दिल्ली से एनआईए की 12 टीमें श्रीनगर पहुंची हैं. उन पर आतंकियों को फंडिंग का आरोप लगाया गया है. नईम के खिलाफ छापेमारी दिल्ली और हरियाणा के 8 ठिकानों और कश्मीर के 14 ठिकानों पर जारी हैं.

एनआईए हवाला आॅपरेटर्स के खिलाफ लगातार शिकंजा कस रही है. ये माना जा रहा है कि कश्मीर में हवाला आॅपरेटरों के एक्टिव रहने के कारण ही पत्थरबाज हावी हो रहे हैं और सेना व सरकार के हर फैसले के खिलाफ सड़कों पर छात्रों को उतरने के लिए उकसा रहे हैं. आज एनआईए इसी कड़ी में अलगाववादी नेता नईम के घर, आॅफिस और कॉमर्शियल ठिकानों पर छापेमारी कर रही है.

गौरतलब हो कि वरिष्ठ अलगाववादी नेता एंव नेशनल फ्रंट के प्रमुख नईम खान पर कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए पाकिस्तान से फंडिंग के आरोप हैं. इस सिलसिले में एनआईए ने नई दिल्ली में तीन दिनों तक उनसे पूछताछ की. एनआईए इस मामले में नेशनल फ्रंट के प्रमुख नईम खान के अलावा फारुख अहमद उर्फ बिट्टा कराटे, जावेद अहमद बाबा उर्फ गाजी से भी पूछताछ कर रही है.

रामपुर टोनिया बिना बिजली का गांव

यहां मुसलमानों को रोजा रखने से रोका जा रहा है

चीन सरकार अपने मुख्य मुस्लिम प्रांत शिनजियांग में रमजान के महीने में सरकारी अधिकारियों, टीचर्स और स्टूडेंट्स को रोजा रखने पर बैन लगाने की कोशिश कर रही है.

वर्ल्ड उइगर कांग्रेस (डब्लूयूसी) के मुताबिक, अफसरों ने प्रांत में सभी रेस्टोरेंट को खोले रखने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही कुछ ऐसे निर्देश दिए गए हैं, जिससे लोगों को रोजा रखने से रोका जा सके. इस प्रांत में जातीय आधार पर अलग उइगर लोग बड़े पैमाने पर रहते हैं. यह ग्रुप वर्षों से बीजिंग में खुद की धार्मिक अभिव्यक्ति और कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से लगाए जा रहे आरोपों के खिलाफ संघर्ष कर रहा है.

आक्सू के इंडस्ट्रियल और कॉमर्शियल ब्यूरो की ओर से जारी निर्देश के मुताबिक, यह निर्देश स्थिरता के लिए दी गई है.

इंडिपेंडेंट की खबर के मुताबिक, मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि इस क्षेत्र में तकरीबन 10 मिलियन उइगर मुसलमान रहते हैं. यहां धर्म और संस्कृत की पाबंदियों को लेकर संघर्ष होता रहता है.

बता दें कि पिछले साल भी चीन ने ऐसा ही बैन लगाया था. कम्युनिस्ट पार्टी के नियमों का हवाला देते हुए कम्युनिस्ट ऑफ चीन के सदस्यों के हिदायत दी गई थी कि वे रमजान के दौरान उपवास नहीं रखेंगे.

मर्द ही होते हैं 'मर्दानगी' के सबसे ज्यादा शिकार, आइए ऐसे समझें

क्या आपको पता है कि 'मर्दानगी' के सबसे ज्यादा शिकार खुद मर्द ही होते हैं? आइए समझते हैं...
'मर्द' या 'मर्दानगी' शब्द सुनते ही सबसे पहला शब्द आपके दिमाग में क्या आता है? पिछले दिनों दिल्ली में सेंटर फॉर हेल्थ एंड सोशल जस्टिस (CHSJ) की वर्कशॉप हुई जिसमें एक एक्टिविटी के दौरान प्रतिभागियों से यही सवाल पूछा गया. इसके बाद जो शब्द सामने आए वे इस प्रकार थे- ताकतवर, बुद्धिमान, रक्षक, मूंछों वाला, कमाने वाला, कंट्रोलर, रौबदार, जोशीला, टॉल, हैंडसम, कड़क आवाज आदि.
ये सिर्फ शब्द नहीं बल्कि मर्द को लेकर हिंदुस्तानी समाज का नजरिया है कि मर्द ऐसे होते हैं या मर्दों को ऐसा ही होना चाहिए. वर्कशॉप में इन शब्दों के जरिए समाज के नजरिये को समझने की कोशिश की गई.
CHSJ के रिसोर्स पर्सन सतीश सिंह ने गहराई से समझाया कि भारतीय समाज में कैसे एक पुरुष की मर्दानगी को उसकी सेक्सुअल पॉवर से जोड़कर देखा जाता है. सोशल प्रेशर कुछ ऐसा है कि उसके गे होने, सेक्सुअली बेहतर परफॉर्म नहीं कर पाने या पिता नहीं बन पाने पर सीधे उसे नपुंसक या इस तरह के शब्दों से नवाजा जाता है. इस वजह से एक पुरुष इस बात को लेकर हमेशा कॉन्शियस रहता है और अपनी सेक्सुअलिटी पर किसी भी तरह का सवाल वह बर्दाश्त नहीं कर पाता. सिंह ने लगातार कोशिशों के बाद भी पिता नहीं बन पा रहे अपने मित्र का उदाहरण देते हुए बताया कि जब उनसे पत्नी के साथ-साथ अपना टेस्ट कराने की सलाह दी गई तो कैसे वह आपे से बाहर हो गया.
वर्कशॉप में 'लड़के रोते नहीं हैं', 'कमाएगा नहीं तो परिवार को क्या खिलाएगा', 'इसका तो अपने-बीबी बच्चों पर ही कंट्रोल नहीं है', 'मर्द को दर्द नहीं होता', 'असली मर्द डरता नहीं है' जैसे शब्दों का भी जिक्र आया जिन्हें सुनते और सीखते हुए हमारे देश के ज्यादातर लड़के बड़े होते हैं. सतीश सिंह ने बताया कि इन वाक्यों के जरिए कैसे एक खास तरह के मर्द (समाज के नजरिये के अनुकूल) बनाने की कोशिश की जाती है और जब एक पुरुष इस नजरिये के अनुकूल नहीं बन पाता तो उसे कई तरह के नाम दे दिए जाते हैं.
मस्कुलिनिटी यानी मर्दानगी को समझाते हुए CHSJ के दूसरे रिसोर्स पर्सन और पत्रकार नासिरुद्दीन ने बताया कि हमारे समाज में लड़कों की परवरिश ऐसी होती है कि न उन्हें न सुनना सिखाया जाता है और न ही उन्हें फेल होने के लिए तैयार किया जाता है. उन्होंने बताया कि फिल्मों के जरिए कैसे पुरुषों की इस धारणा को बल मिलता है. उन्होंने पिछले दिनों रोहतक में हुए गैंगरेप और मर्डर मामले का उदाहरण भी दिया कि न नहीं सुन पाने की प्रवृत्ति एक पुरुष पर कितनी हावी होती है.
क्या होते हैं नुकसान?
वर्कशॉप के दौरान सिंह और नसीरुद्दीन ने आगे समझाया कि कैसे इस तरह के नजरिये के साथ बड़े हुए मर्दों पर हमेशा अपनी मर्दानगी साबित करते रहने का प्रेशर रहता है. वे हमेशा समाज द्वारा तय की गई 'मर्द की परिभाषा' में फिट बैठने की कोशिश में रहते हैं. इस परिभाषा में फिट बैठने का दबाव इतना है कि कई बार इसमें फेल होने पर पुरुष आत्महत्या जैसा एक्स्ट्रीम कदम भी उठा लेते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में भारत में 133,623 लोगों ने आत्महत्या की थी, इनमें से 68 प्रतिशत यानी 91,528 पुरुष थे.
उन्होंने आगे बताया कि ज्यादातर पुरुष पारिवारिक कारणों, कर्ज, बेरोजगारी आदी की वजह से सुसाइड करते हैं. इसका कारण है कि लड़कों पर शुरू से नौकरी करने और पैसे कमाने का दबाव होता है. एक पढ़ी लिखी लड़की घर पर बैठे तो चलता है, कहा जाता है कि मां का हाथ बंटाती है. पर एक लड़का चाहे पढ़ा-लिखा हो या न हो, वह घर के काम में चाहे जितना हाथ बंटा ले, उसका घर पर बैठना उचित नहीं माना जाता.
सतीश सिंह ने एक केस डिस्कस किया जिसमें बिहार के व्यक्ति ने अपने तीन बच्चों और पत्नी की हत्या के बाद फांसी लगा ली थी. कारण था कि उसकी बेटी ने प्रेमविवाह कर लिया था. उन्होंने समझाया कि बेटी के घर छोड़ने के बाद उसे लगने लगा कि उसका अपने परिवार पर कंट्रोल नहीं है, लोग क्या कहेंगे.
वर्कशॉप में इस बात पर चर्चा हुई कि इस कथित मर्दानगी के शिकार आम लोग ही नहीं सेलिब्रिटीज भी होते हैं. उन्हें भी इसके तनाव और बुरे प्रभावों से गुजरना पड़ता है.
उदाहरण के लिए करण जौहर के बर्ताव और बात व्यवहार का तरीका मर्दानगी की कथित परिभाषा के अनुकूल नहीं माना जाता. उनकी सेक्सुअलिटी को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं और इस वजह से अक्सर उन्हें ट्रोल भी किया जाता है. ट्रोलर्स उन्हें नपुंसक कहने से भी गुरेज नहीं करते.

गर्मियों में खादी कपड़ों में यूं दिखें फैशनेबल

गर्मियों के मौसम में खादी के कपड़े आपके लिए उपयुक्त साबित हो सकते हैं. खादी के कपड़े से बने स्पेगेटी टॉप, डेनिम से लेकर शॉर्ट ड्रेस तक इस मौसम में न केवल आपके लिए आरामदेह साबित होंगे बल्कि आपको नया और स्मार्ट लुक भी देंगे.
'वूनिक डॉट कॉम' की स्टाइल प्रमुख भाव्या चावला, 'शापओटॉक्स डॉट कॉम' के सह-संस्थापक जिम्मी कौल और 'एलयूआरएपी डॉट कॉम' की प्रमुख (डिजाइन) स्मृति खुराना ने खादी के कपड़ों में फैशनेबल दिखने के संबंध में ये सुझाव दिए हैं :
* खादी की हाथ से बनी साड़ी सबसे बेहतर होती है और ये विभिन्न रंगों और स्टाइल में मिलती हैं. खादी साड़ी को पहनने से कोई समस्या नहीं होती है क्योंकि ये गर्मी में आरामदेह होती है. मॉडर्न लुक के लिए जरदोजी की कढ़ाई और ब्लॉक प्रिंट वाली खादी की साड़ी चुनें. आप रंगीन प्लेन खादी साड़ी को कढ़ाईदार शर्ट ब्लाउज के साथ भी पहन सकती हैं, जो आपको एकदम नया लुक देगा.
* अलग अंदाज और स्टाइल में नजर आने के लिए आप खादी की स्पेगेटी, टॉप को स्कर्ट या ढीले ढाले पैंट के साथ पहन सकती हैं. आप खादी के क्रॉप टॉप को हल्के घेरदार (रैप-अराउंड ) स्कर्ट के साथ पहनकर बेहद आकर्षक नजर आ सकती हैं.
* बच्चों के लिए खादी का कपड़ा सबसे अच्छा होता है. साधारण प्रिंट वाले ड्रेस या विभिन्न डिजाइनों वाले कट फ्लेअर्ड खादी के टॉप लड़कियों के लिए बेहतर होंगे, जबकि लड़के हाथ से तैयार खादी के शर्ट और पैंट पहन सकते हैं. बच्चों के लिए खादी को पहनना आसान और आरामदेह होता है.
* अगर आप गर्मियों के मौसम में और सहज महसूस करना चाहती हैं तो खादी के कुर्ते या शॉर्ट ड्रेस पहन सकती हैं. आप गले पर बढ़िया कढ़ाई वाली कुर्ती के साथ कुछ आभूषण भी पहन सकती हैं, जिसमें आप बेहद खूबसूरत दिखेंगी.
* चटख रंग के खादी के स्कॉर्फ या दुपट्टे को आप प्लेन ड्रेस के साथ पहन सकती हैं. दुपट्टे को हल्के रंग की कुर्ती के ऊपर पहनें, जिससे आप निश्चित रूप से भीड़ से अलग नजर आएंगी.

खून में हीमोग्लोबिन बढ़ेगा अगर आपकी थाली में होंगी ये पांच चीजें

हीमोग्‍लोबिन हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है. हीमोग्लोबिन की कमी से हमारे शरीर को बहुत सारी परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं. जैसे इसकी कमी से शरीर में ऑक्‍सीजन को वहन करने की क्षमता कम हो सकती है. खून में रेड ब्‍लड सेल्‍स की संख्‍या कम हो सकती है. साथ ही एनीमिया की बीमारी लग सकती है.
इसलिए इन सबसे बचने के लिए हमें अपने शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा सही बनाए रखने की सख्त जरूरत होती है. इस जरूरत को भोजन में लिए जाने वाले खाद्य पदार्थों के जरिए पूरा किया जा सकता है. भोजन में ऐसे पोषक तत्व होते हैं, जिनसे हम स्वस्थ्य रहते हैं. ये पोषक तत्व हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं.
इसलिए हमें अपने आहार में उन चीज़ों को शामिल करना होगा, जो हीमोग्लोबिन का समृद्ध स्रोत हैं. आइए जानते हैं क्या हैं वे चीज़ें, जिनको खाने से हमारे शरीर में हिमोग्‍लोबिन की कमी नहीं होगी.

अमरूद : अमरूद खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होती. जितना ज्यादा पका अमरूद होगा, उतना ही ज्यादा वह पौष्टिक भी होगा. इसलिए खूब जमकर अमरूद खाएं और स्वस्थ रहें.

चुकंदर : चुकंदर हीमोग्लोबिन का बहुत अच्छा स्रोत है. इसे आप अपने खाने से साथ सलाद में लेना शुरू कर दें. यह बहुत जल्दी ही शरीर से हीमोग्लोबिन की कमी दूर कर देता है.

अनार : अनार भी हीमोग्लोबिन की कमी दूर करने के लिए जाना जाता है. इसे आप छीलकर खा सकते हैं या फिर अनार का जूस पी सकते हैं.

सेब : सेब एनीमिया जैसी बीमारी को दूर करने में मददगार है. प्रसिद्ध कहावत है कि रोज़ एक सेब खाएं और डॉक्टर को दूर भगाएं. यह शरीर में हीमोग्लोबिन भी बनाता है.

तुलसी : कहते हैं कि तुलसी खून की कमी को कम करने के लिए रामबाण दवाई है. रोज़ाना तुलसी खाने से हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है.

ये करके देखिए, रोज एक बुरी आदत छोडि़ए और एक अच्‍छी आदत अपनाइए

आदतें आपके जीवन में अहम भूमिका निभाती हैं. हम इंसान कैसे हैं, हमारा लक्ष्य क्या है, हम क्या-क्या कर सकने के काबिल हैं, ये सब हमारी आदतों से तय होता है. अच्छी आदतें बनाकर आप सफलता पा सकते हो. खराब आदतें हमें निराशा और असफलता की तरफ ले जाती हैं. इसलिए अच्छी आदतों का होना बहुत जरूरी है.
इसलिए अगर ये आदतें आपकी जिंदगी का हिस्सा नहीं हैं तो आपको ये आदतें अपनानी पड़ेंगी, मेहनत से, लगन से. कोई काम आसान नहीं होता, लेकिन अगर आप ठान लें तो उतना मुश्किल भी नहीं होता. इसलिए पहले जानते हैं उन अच्छी आदतों के बारे में, जिनकी लत हमें लगानी पड़ेगी.

संतुलित रहें : आपका खुद का और बाहर की दुनिया का बैलेंस सही बना रहना बहुत जरूरी है. न सेहत को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ काम को तवज्जो दें और न ही काम को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ सेहत को लेकर बैठे रहें. हर चीज़ के बीच संतुलन बनाना सीखें.
छोटी चीज़ों से शुरुआत करना सीखें : कोई ऐसी अच्‍छी आदत अपनी जिंदगी में शामिल करें, जो अब तक आप नहीं करते रहे हैं. एक छोटी सी शुरुआत करें, जिससे आपको ज्यादा तकलीफ भी न हो. जैसे कोई एक खराब खाना छोड़ने की कोशिश करें. ऐसे ही धीरे-धीरे बुरी आदतों के नंबर कम करते जाएं और अच्छी आदतों के नंबर बढ़ाते जाएं.

अच्छी आदतों का चयन : शुरुआत करने से पहले आप उन आदतों की लिस्ट बना लें, जो आपको लगता है कि आपकी जिंदगी में होनी चाहिए. ये चयन ध्यानपूर्वक करें. दूसरों की देखा-देखी करने से बचें.

जिन्दगी एक फलसफा

मोर को ब्रह्मचारी बताने वाले जज ने कहा, विज्ञान से ऊपर है पुराण

मोर को ब्रह्मचारी बताने के एक दिन बाद राजस्‍थान हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज महेश चंद्र शर्मा ने गुरुवार को कहा कि पौराणिक कथाएं विज्ञान से ऊपर होती हैं. उन्‍होंने CNN-News18 को इंटरव्‍यू में कहा, 'आप किसी भी वैज्ञानिक या पशुपालन से जुड़े लोगों से पूछ सकते हैं. सबसे महत्‍वपूर्ण बात है कि मोर के ब्रह्मचारी होने की बात हमारी पवित्र किताबों में भी लिखी है.'

बता दें कि शर्मा ने बुधवार को कहा था कि मोर ब्रह्मचारी होता है और वह मोरनी से शारीरिक संबंध नहीं बनाता है. मोरनी उसके आंसू पीकर ही गर्भवती बन जाती है.

रिटायर्ड जज से जब उनके फैसले के वैज्ञानिक आधार के बारे में पूछा गया तो उन्‍होंने बताया, 'यह ब्रह्म पुराण में लिखा है जो कि हजारों साल पुराना है.' CNN-News18 के पत्रकार ने जब उनसे कहा कि पुराण तो पौराणिक कथाओं का हिस्‍सा है और ये वैज्ञानिक पत्रिका नहीं है तो शर्मा ने जवाब दिया, 'विज्ञान का स्‍थान पौराणिक कथाओं के नीचे आता है.'

उन्‍होंने अपने 139 पन्‍नों के फैसले को पढ़ने की सलाह देते हुए कहा कि उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है. हालांकि उन्‍होंने तुरंत ही जोड़ा कि गाय को राष्‍ट्रीय पशु बनाना केवल एक सुझाव है और केंद्र सरकार इसके लिए बाध्‍य नहीं है.

गाय को राष्‍ट्रीय पशु बनाए जाने के सुझाव के पीछे के तर्क पर जस्टिस शर्मा ने कहा, 'गाय के दूध के काफी फायदे हैं. यदि हमें दूध नहीं मिलेगा तो कैसे जीएंगे? और दूसरे देश हमारे दूध, मावा और दूध से बनी मिठाइयों जैसे खीर की संस्‍कृति के बारे में क्‍या जानते हैं?'

उन्‍होंने कहा कि गाय का दूध मंदिरों में अभिषेक के काम भी आता है. शर्मा ने कहा, 'हजारों लीटर दूध केवल देवताओं की पूजा में जाता है. हम लोगों को ऐसा करने से रोक नहीं सकते. इसलिए उन्‍हें रोकने के बजाय हमें ज्‍यादा दूध का उत्‍पादन करना चाहिए. हम उनकी भावनाओं को कैसे चोट पहुंचा सकते हैं? और अभिषेक क्‍यों नहीं होना चाहिए?'

वो सितारे जिन्होंने फेल होकर पाया दुनिया का सबसे ऊंचा मुकाम

 सितारे जिन्होंने फेल होकर पाया दुनिया का सबसे ऊंचा मुकाम

वो सितारे जिन्होंने फेल होकर पाया दुनिया का सबसे ऊंचा मुकाम
कम नंबरों के चलते निराश होने वाले छात्रों को दुनिया में देखना चाहिए कि हर क्षेत्र में ऐसे कितने ही सितारे हैं, जो कभी न कभी फेल हुए. लेकिन आज आस्मां के फलक पर चमक रहे हैं. पढ़िए ऐसी शख्सियतों के बारे में, जो फेल होकर भी अपने-अपने क्षेत्र के बादशाह हैं.
पूरे देश में अलग-अलग बोर्ड के 10वीं और 12वीं के रिज़ल्ट जारी हो रहे हैं. कई स्टूडेंट्स के चेहरे अच्छे नंबरों की बदौलत खुशी से खिलखिला रहे हैं, तो कई अपनी नाकामयाबी से निराश हैं. 2012 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है.

सालभर में भारत में 8640 से ज्यादा छात्र अपनी जान गंवाते हैं. कम नंबरों के चलते निराश होने वाले छात्रों को देखना चाहिए कि दुनिया में हर क्षेत्र में ऐसे कितने ही सितारे हैं, जो कभी न कभी फेल हुए. लेकिन आज आस्मां के फलक पर चमक रहे हैं. पढ़िए ऐसी ही दुनिया की उन महान शख्सियतों के बारे में, जो फेल होकर भी अपने-अपने क्षेत्र के बादशाह हैं.



1. अल्बर्ट आइंस्टाइन

महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन को आज दुनिया में बुद्धिमानी के मानक के तौर पर देखा जाता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 4 साल की उम्र तक वो बोल नहीं और 7 साल की उम्र तक पढ़ नहीं सकते थे. उनके माता-पिता और टीचर्स सोचते थे कि वो गैर सामाजिक और देर से समझने वाले हैं. इसके चलते उन्हें ज़्यूरिच पॉलिटेक्निक स्कूल में एडमिशन देने से इंकार कर दिया गया था. लेकिन अपनी प्रतिभा और बुद्धिमता के बूते वो मॉर्डन फिज़िक्स का सबसे बड़ा चेहरे बनकर उभरे. उन्हें नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.



2. वॉल्ट डिज़्नी
महान अमेरिकी उद्योगपति, एनिमेटर, वॉयस एक्टर और फिल्म निर्माता वॉल्ट डिज़्नी चाहें कितने सफल हों लेकिन उन्हें भी जिंदगी में असफलता का सामना करना पड़ा था. जब वो एक न्यूज़पेपर के एडिटर थे तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था. उन पर आरोप लगाया गया कि उनके पास कोई नए आइडिया और इमेजिनेशन नहीं है. इसके बाद उन्होंने अपना व्यापार शुरू किया लेकिन वो दिवालिया हो गए. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वो कर दिखाया जो किसी के लिए सपने से कम नहीं है.



3. थॉमस एडिसन
दुनिया को रोशनी से जगमगाने वाले एडिसन को स्कूल से इसलिए निकाल दिया गया था क्योंकि वो कुछ भी नहीं समझ पाते थे. इसके बाद उन्हें दो नौकरियों से भी निकाला गया. बल्ब बनाने के लिए उन्होंने हज़ारों बार प्रयास किए. लेकिन जब वो सफ़ल हुए तो उन्होंने कहा कि वो असफल नहीं हुए थे बल्कि उन्होंने 10 हज़ार उन तरीकों को खोजा जिससे बल्ब नहीं बनाया जा सकता है.



4. विंस्टन चर्चिल
नोबेल पुरस्कार विजेता विंस्टन चर्चिल दो बार यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री रहे थे. एक बार स्कूल में वो 6वीं क्लास में फेल हुए थे. 62 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने से पहले वो कभी कोई चुनाव नहीं जीत सके थे. इतनी असफलता के बाद भी वो निराश नहीं हुए बल्कि इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया.



5. स्टीवन स्पीलबर्ग
अमेरिकी डायरेक्टर, निर्माता और स्क्रीन राइटर स्टीवन स्पीलबर्ग किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है. उन्होंने ज़ुरासिक पार्क, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वॉर ऑफ़ द वर्ल्ड्स जैसी महान फ़िल्मों का निर्देशन उन्होंने किया है. इस मुकाम पर पहुंचने से पहले वो तीन बार सदर्न कैलिफोर्निया स्कूल ऑफ थिएटर, फ़िल्म और टेलीविज़न से रिजेक्ट हुए थे. इसके बाद उन्होंने किसी छोटे कॉलेज में एडमिशन ले लिया. उसे भी बीच में छोड़कर वो अपने प्रोजेक्ट में जुट गए थे. 35 साल बाद वो वापस अपने स्कूल पहुंचे और साल 2002 में अपनी ग्रेजुएशन पूरी की.

एक कैमरे ने बनाया अरबपति

शटरस्टॉक से पहले उन्होंने दस कंपनियां खोलीं लेकिन वो हर बार नाकाम रहे. उन्होंने कहा, "मैं कई बार असफल हो चुका था और एक बार फिर नाकाम होने को तैयार था."अक्तूबर 2012 में स्टॉक मार्केट में सफल पदार्पण करने वाली इस कंपनी के पास अब 2.8 करोड़ से ज़्यादा फ़ोटो, वीडियो और इलस्ट्रेशंस शामिल हैं.
ओरिंगर के पास कंपनी के 55 फ़ीसदी से अधिक शेयर हैं और वो न्यूयॉर्क की सिलिकॉन ऐली के पहले अरबपति हैं. उनकी कुल संपत्ति लगभग 1.05 अरब डॉलर है.

फ़ोटोग्राफ़ी


39 साल के ओरिंगर ने फ़ोटोग्राफ़ी व्यवसाय को लक्ष्य बनाकर इस कंपनी को शुरू नहीं किया था. दरअसल वो 2003 में एक ऐसे सॉफ्टवेयर पर काम कर रहे थे जो इंटरनेट ब्राउज़ करते समय अनचाही विंडो को खुलने से रोकता है.
उन्होंने कहा, "मैं उस समय एक सॉफ्टवेयर बना रहा था और कोशिश में लगा था कि लोग अपने सब्स्क्रिप्शन का नवीकरण करें. मुझे सामान्य चीज़ों की तस्वीरें चाहिए थीं लेकिन इन्हें हासिल कर पाना आसान नहीं था."
उस समय गिनी चुनी कंपनियां ही थीं जिन्हें स्थानों और चीज़ों की जेनेरिक तस्वीरें बनाने में महारत हासिल थी.

इनमें से गैटी इमेजेज़ जैसी कंपनियां न्यूज़ एजेंसियों को ध्यान में रखकर बनाई गई थीं. उनकी सर्विस महंगी थी और छोटी कंपनियों के लिए इतना ख़र्च उठाना आसान नहीं था.

कैमरा

ओरिंगर के पास कुछ ही हज़ार डॉलर थे और फ़ोटोग्राफ़ी का कोई अनुभव नहीं था. उन्होंने एक अच्छा कैमरा ख़रीदा और सामान्य चीज़ों की तस्वीरें खींचनी शुरू कर दी.
उन्होंने न्यूयॉर्क शहर की ख़ाक छानी और फिर दुनियाभर में घूमे. पर्यटक जहां कुछ अलग तरह की तस्वीरें खींचने में रहते, वहीं ओरिंगर मामूली और जेनेरिक माहौल को अपने कैमरे में क़ैद करते.
पहले साल उन्होंने 30,000 तस्वीरें खींची और उन्हें शटरस्टॉक की वेबसाइट पर डाल दिया. अपनी वेबसाइट के प्रचार के लिए उन्होंने गूगल एडवर्ड्स जैसे सस्ते माध्यमों का सहारा लिया.

ओरिंगर ने कहा, "टर्निंग प्वाइंट तब आया जब मैं मांग पूरी नहीं कर सका." ये सब कुछ उन्होंने मैनहट्टन स्थित अपने घर से किया.

सिलिकॉन वैली

उन्होंने कहा, "लोग सोचते थे कि मैंने सिलिकॉन वैली जाकर शुरुआत क्यों नहीं की. मैं सौभाग्यशाली था कि मुझे ये सब शुरू करने के लिए पैसा नहीं जुटाना पड़ा."
तकनीकी कंपनियों की तरह शटरस्टॉक को शुरू करने के लिए पूंजी की ज़रूरत नहीं पड़ी. ओरिंगर ने कुछ हज़ार ख़र्च करके एक कैमरा ख़रीदा और एक छोटा सा दफ़्तर किराए पर लिया.
शुरुआती में सब काम उन्होंने अकेले किया. वो ख़ुद ही तस्वीर खींचते थे और वेबसाइट डिज़ाइन करते थे. यहां तक कि फ़ोन कॉल का जवाब भी वही देते थे.

वो उपभोक्ताओं की शिकायतें सुनते और कमियों को नोट करते. जब उन्हें अपने शुरुआती कर्मचारियों की भर्ती की तो वो फ़ोटोग्राफर नहीं बल्कि इंजीनियर थे.

फायदा

ओरिंगर ने कहा, "मैं इसे अपने तरीक़े से करना चाहता था." उनका लक्ष्य शुरू से ही लाभ कमाना था और इसी सोच का उन्हें फ़ायदा हुआ.
शटरस्टॉक 150 देशों में साढ़े सात लाख उपभोक्ताओं को सेवाएं देती है. बीते साल कंपनी ने 4.75 करोड़ डॉलर का मुनाफ़ा कमाया जो कि उससे पिछले साल की तुलना में 117 प्रतिशत अधिक था.
कंपनी का कहना है कि डिजिटल इमेजेज़ का मौजूदा बाज़ार चार अरब डॉलर का है और इसके साल 2016 में बढ़कर छह अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
40,000 से ज़्यादा फ़ोटोग्राफर शटरस्टॉक पर अपनी तस्वीरें और वीडियो भेजते हैं. कंपनी का कहना है कि वो ऐसे फ़ोटोग्राफरों को 15 करोड़ डॉलर से अधिक का भुगतान कर चुकी है.

अरबपति बनने के बावजूद ओरिंगर बहुत विनम्र हैं और उन्होंने सफलता को सिर नहीं चढ़ने दिया है.
उन्हें एक ही चीज़ का शौक़ है और वो है हेलीकॉप्टर. उन्होंने हाल ही में पायलट का सर्टिफ़िकेट हासिल किया है और एक हेलिकॉप्टर भी ख़रीद लिया है.

सिलिकॉन वैलीः चांद पर धंधा करने का सपना

नवीन जैन ने सिलिकॉन वैली में कई सॉफ़्टवेयर कंपनियां खड़ी कीं और अरबों डॉलर भी कमाए हैं, लेकिन इन दिनों वो धरती से दूर चांद पर व्यापार करने की कोशिश में हैं.
उनका कहना है कि सिर्फ़ एक ग्रह के सहारे रह गए तो इंसानों की हालत डायनासोर जैसी होगी, तो फिर क्यों न नए आसरे तलाश किए जाएं, नए भंडारों की खोज की जाए.
पिछले महीने चांद पर ले जाने वाले उनके विमान ने सफल उड़ान भरी.
उत्तर प्रदेश में मेरठ के सामान्य से परिवार में जन्मे नवीन का इरादा चंद्रमा से हीलियम-3 लाने का है. कहानी का दूसरा हिस्सा.

पढ़ें पूरी कहानी

कैलिफ़ोर्निया के नासा रिसर्च सेंटर के कैंपस में एक उजाड़ से वेयरहाउस से उनकी नई कंपनी मून एक्सप्रेस इस ख़्वाब को हासिल करने की तैयारी में लगी है.
मक़सद है चांद पर एक रोबोटिक मिशन भेजकर ये पता लगाया जाए कि वहां से संसाधनों को ज़मीन तक कैसे लाया जा सकता है.

पिछले महीने पहली बार वो अपना स्पेसक्राफ़्ट उड़ाने में कामयाब रहे.
उनका कहना है, “ये इतिहास में पहली बार था जब कोई प्राइवेट कंपनी ने अपना हार्डवेयर, अपना सॉफ़्टवेयर लगाकर एक स्पेसक्राफ़्ट उड़ाया जो चांद तक जाने की क्षमता रखता है.”
मून एक्सप्रेस चांद तक एक प्राइवेट रोबोटिक मिशन भेजने की रेस में सबसे आगे चल रही कंपनियों में से एक है.

चांद का सपना

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एक मक़सद तो है दो करोड़ डॉलर की इनाम राशि जीतना जो गूगल और एक्स-प्राइज़ की तरफ़ से रखा गया है और विजेता को 2016 से पहले चांद पर अपना स्पेसक्राफ़्ट उतारना होगा.
लेकिन नवीन जैन की नज़र इससे कहीं बड़े इनाम पर है.
उनके अनुसार चांद पर खरबों डॉलर का प्लैटिनम और हीलियम-3 मौजूद है और अगर हीलियम-3 का एक छोटा सा हिस्सा लाने में भी कामयाबी मिल गई तो पीढ़ियों की तो नहीं, लेकिन कई दशकों की ऊर्जा समस्या का हल निकल जाएगा और वो भी प्रदूषण रहित.
कहते हैं, “वो वक़्त ज़्यादा दूर नहीं है जब हनीमून का मतलब सही मायने में होगा कि आप अपनी हनी को मून पर ले जा सकेंगे.”

नई चुनौती

चांद तक की इस रेस में पिट्सबर्ग स्थित ऐस्ट्रोबॉटिक और भारत की एक कंपनी टीम इंडस से उनका कड़ा मुक़ाबला है.
उनके स्पेसक्राफ़्ट के मॉडल को देखकर यक़ीन करना थोड़ा मुश्किल सा लगता है कि वो सचमुच चांद तक जा सकेगा.
उनकी अपनी ट्रेनिंग भी सॉफ़्टवेयर के क्षेत्र में है फिर वो स्पेस के क्षेत्र में इतनी दूर कैसे पहुंच पाए.
उनका जवाब है, “कोई भी व्यक्ति जो अपनी फ़ील्ड का माहिर हो वो उसी दायरे में रहकर शायद कुछ नई चीज़ें सोच सके. लेकिन सही मायने में क्रांतिकारी आइडियाज़ उन्हीं से आते हैं जो उस क्षेत्र के एक्सपर्ट नहीं होते. और मेरा पलड़ा स्पेस के मामले में इसलिए भारी है क्योंकि मुझे स्पेस के बारे में कुछ नहीं पता.”
नवीन जैन का कहना है कि वो मेरठ के एक बेहद साधारण परिवार में पैदा हुए जहां परिवार का भरण-पोषण के लिए पिता की सरकारी नौकरी की आय पूरी नहीं पड़ती थी और इसलिए उनकी मां को छोटे-मोटे काम करने पड़ते थे.

ख़्वाहिश पूरी हुई

वो कहते हैं कि उन दिनों को वो भूले नहीं हैं और इसलिए उनके अंदर की एक ख़्वाहिश ये भी है कि उनकी कामयाबी भारत में लोगों को प्रेरित करेगी.
उन्होंने भारत में नए आविष्कारों और आइडियाज़ को बढ़ावा देने के लिए उद्योगपति रतन टाटा और एक्स-प्राइज़ के संस्थापक के साथ मिलकर एक इंसेटिव फ़ंड की भी शुरुआत की है.
उन्हें पूरा यक़ीन है कि अगला गूगल और फ़ेसबुक भारत से आ सकता है, लेकिन इसके लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होगी.
वो कहते हैं, “एक तो लोगों से कहना होगा कि इतना बड़ा ख़्वाब देखो कि लोग तुम्हें पागल समझें और दूसरा कि नाकामी से मत डरो.”

पाक पर भरोसा कर इस विदेशी ने किया 'चमत्कार

दो मई 2011 को तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने घोषणा की थी कि अमरीकी सैनिकों ने पाकिस्तान में अल क़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार दिया.
ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के करीब एक घर में मारा गया था. इसके साथ ही पाकिस्तान एक बार फिर से ग़लत कारण से सुर्ख़ियों में आया था.
पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक रूप से ग़लत ख़बरों के मामले में अभ्यस्त हो गया है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान आर्थिक रूप में चरमराया हुआ देश है.
यहां विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट आ रही है. पाकिस्तान की करंसी भी कमज़ोर है और विदेशी निवेश का भी पर्याप्त अभाव है.
शायद पाकिस्तान इस ब्रह्मांड की अंतिम जगह है जहां कोई विदेशी निवेशक पैसा निवेश करने के लिए सोचता है. लेकिन मटिअस मार्टिंसन के लिए ऐसा नहीं है.

'वो बहुत मुश्किल वक़्त था'

साल 2011 में 6 महीने बाद मटिअस ने पाकिस्तान में पहला विदेशी इक्विटी फंड लॉन्च किया.
शुरुआत में इस फंड के लिए उन्हें किसी से मदद नहीं मिली. ऐसे में उन्होंने अपना और अपने पार्टनरों के दस लाख डॉलर का नकद निवेश किया.
निवेश और म्युचुअल फंड के बाज़ार में इंटरनेशनल फंड सबसे नए हैं और इनका मुनाफ़ा विदेशी बाज़ार के परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है. माना जाता है कि इंटरनेशनल फंड पर करेंसी के उतार-चढ़ाव का रिस्क ज्यादा होता है.
लेकिन मटिअस ने यह रिस्क लिया और आज की तारीख़ में उनके इस फंड की कीमत 100 मिलियन डॉलर है.
मृदु भाषी और मुश्किल से मुस्कुराते हुए स्वीडन के मटिअस ने स्टॉकहोम से फ़ोन पर कहा, ''वो बहुत मुश्किल वक़्त था.''
मटिअस बहुत बयानबाजी नहीं करते हैं. पाकिस्तान में लादेन के मारे जाने के बाद आर्थिक निवेश को लेकर बहुत बुरा माहौल बन गया था. तब पाकिस्तान में शेयरों की कीमत में भारी गिरावट आने लगी थी.
मार्टिंसन ने बताते हैं, ''अमरीकी सैनिकों ने पाकिस्तान में एक सैन्य ठिकाने को तबाह कर दिया था. इसके बाद पाकिस्तान ने नैटो देशों के सप्लाई रूट को बंद करने का फ़ैसला किया था. तब बाज़ार में 10 फ़ीसदी की गिरावट आई थी.''

मार्टिंसन ने ख़ुद को साबित कर दिया

हालांकि इसके बाद भी मार्टिंसन पाकिस्तानी शेयर बाज़ार से अलग नहीं हुए.
इन गिरावटों के बीच सरकार ने बाज़ार को थामने के लिए कुछ कोशिश की. सरकार ने विदेशों में बसे पाकिस्तानियों से अपने घर पैसे भेजने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए टैक्स माफ़ी की योजना लॉन्च की.
मार्टिंसन याद करते हुए बताते हैं कि इससे बाज़ार में सुधार हुआ और हम लोग तीन महीने में 50 मिलियन डॉलर का फंड कर लिए.
मार्टिंसन ने इस बात को भी रेखांकित किया कि बीते दशकों में पहली बार पाकिस्तान से बाहर पैसे जाने के मुकाबले देश के भीतर ज़्यादा आया.
लगभग एक दशक बाद मार्टिंसन को लगा कि उन्होंने ख़ुद को साबित कर दिया है.
एक जून 2017 को पाकिस्तान एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्स में प्रवेश कर गया.
यह इस बात का संकेत है कि अपने अस्तित्व से जूझती अर्थव्यवस्था में उम्मीद की लकीर चौड़ी हो रही है. निवेशकों ने पहले से ही अर्थव्यवस्था में पैसा डालना शुरू कर दिया है.
एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्स 23 उच्च वृद्धि दर वाली अर्थव्यवस्था भारत, चीन और ब्राज़ील से मिलकर बना है.
एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्स में पाकिस्तान का प्रमुख इंडेक्स केएसई लगातार बढ़िया प्रदर्शन कर रहा है.
अगर आपने पिछले साल जनवरी महीने में केएसई में 100 डॉलर का निवेश किया होता तो आज की तारीख़ में इसकी कीमत 164 डॉलर होती जबकि एमएससीआई में इसकी कीमत महज 137 डॉलर ही होती.
इन्हीं सफलताओं में मार्टिंसन की भी कामयाबी शामिल है.
उभरते बाज़ार सूचकांक में शरीक होना पाकिस्तान की एक उपलब्धि है. इससे निवेशकों में भरोसा जगता है. यह भरोसा वृद्धि दर, पारदर्शिता की कसौटी पर जगता है.
पाकिस्तान इस इंडेक्स का हिस्सा हुआ करता था लेकिन विदेशी बाज़ार में इसकी हैसियत बहुत नीचे थी.
2008 के आख़िर में कीमतों में नाटकीय गिरावट के कारण एक्सचेंज को चार महीनों के लिए बंद करना पड़ा था. इसका मतलब यह हुआ कि विदेशी निवेशक अपना पैसा नहीं निकाल सकते हैं.
कराची स्टॉक एक्सचेंज के मैनेजिंग डायरेक्टर नदीम नक़वी कहते हैं, ''वित्तीय संकट के कारण 2008 में हम इंडेक्स से बाहर हो गए थे. ऐसे में पाकिस्तान को देश से बाहर पूंजी जाने से रोकने में वक़्त लगा. हमने इंडेक्स में फिर से जगह पाने के लिए काफ़ी लॉबीइंग और सुधार किए.''
नदीम अब इस मामले में निवेशको को भरोसा देते हैं कि पाकिस्तान एक लिक्विड मार्केट है.
उन्होंने कहा कि 2012 में पाकिस्तान ने स्टॉक एक्सचेंज्स एक्ट पास किया.
नदीम ने कहा कि 2008 में पाकिस्तान को जिस आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था, उससे बचने के लिए इस एक्ट के ज़रिए कई सुधारों को अंजाम दिया गया.

चीन का प्रभाव

पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) भी ऊंचाई पर है. इसके लिए पाकिस्तान में मध्य वर्ग की तरक्की को शुक्रिया कहना चाहिए.
पाकिस्तान में चीन ने वन रोड वन बेल्ट प्रोजेक्ट को लेकर काफ़ी निवेश किया है.
चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीइसी) के लिए चीन पाकिस्तान में सड़क, बंदरगाह, और राष्ट्रीय राजमार्गों पर 46 बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है.
नक़वी का कहना है यह तो अभी शुरूआत है. उनका कहना है कि आप आने वाले एक और दो साल में इसका असर साफ़ देख सकते हैं. नक़वी का कहना है कि पाकिस्तान तेजी से आर्थिक प्रगति करेगा.
पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज से चीनी निवेशक भी शेयरों की ख़रीद फरोख्त कर रहे हैं. पाकिस्तान के स्टॉक एक्सचेंज में चीनियों का 40 फ़ीसदी हिस्सा है.
नक़वी का कहना है कि पाकिस्तान के मध्य वर्ग में भरोसा बढ़ रहा है और वे ज़्यादा खर्च कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि आने वाले पांच-छह सालों में पाकिस्तान की विकास दर औसत 6 फ़ीसदी से ऊपर होनी चाहिए

महाराष्ट्र में हड़ताल पर किसान, भारी संकट की आशंका

महाराष्ट्र के कम से कम सात ज़िलों के किसान सड़कों पर उतर आए हैं. गुरुवार सुबह से इन किसानों ने कृषि से जुड़े उत्पादों को लेकर जा रही गाड़ियों का चक्का जाम कर दिया है.
इन गाड़ियों के साथ तोड़-फोड़ करने की भी ख़बर है. इस आंदोलन को कई किसान संगठनों का समर्थन हासिल है. किसानों की मांग है कि उनके उत्पादों की अच्छी कीमत मिले और उनके क़र्ज़ माफ़ किए जाएं.

सब्ज़ियां, फल, दूध, पोल्ट्री से जुड़े उत्पाद और मांस लेकर मुंबई, पुणे, नाशिक और औरंगाबाद जा रही गाड़ियों को किसानों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ रहा है.
नाशिक से मुंबई और ठाणे में ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई व्यापक पैमाने पर होती है. पर यहां के किसान भी 800 किलोमीटर से ज़्यादा लंबे मुंबई-नागपुर समृद्धि कॉरिडोर के लिए खेती की ज़मीन अधिग्रहण किए जाने का विरोध कर रहे हैं.
इस आंदोलन में अहमदनगर, नाशिक, कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, नांदेड़ और जलगांव के किसान शामिल हैं. इन्हीं ज़िलों से पश्चिमी महाराष्ट्र, मुंबई, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र में सब्ज़ी, फल, दूध, पोल्ट्री से जुड़े उत्पाद और मांस की आपूर्ति होती है.
अगर यह आंदोलन लंबा खिंचता है तो ज़ाहिर है समस्या गंभीर रूप लेगी और इसकी धमक दिल्ली तक सुनाई दे सकती है.
महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार समर खड़स का कहना है कि इस आंदोलन का राजनीतिक असर दो-तीन दिनों में तो दिखाई नहीं देगा लेकिन मुंबई जैसा शहर प्रभावित होता है तो इसकी गूंज दिल्ली में सुनाई ज़रूर देगी.
उन्होंने कहा, ''मुंबई एक अंतरराष्ट्रीय बिज़नेस हब है. राज्य और केंद्र दोनों में बीजेपी की सरकार है. ऐसे में यह आंदोलन लंबा खिंचता है तो इसकी आवाज़ दिल्ली तक जाएगी.''
महाराष्ट्र से दिल्ली पर दबाव बन सकता है लेकिन यह उस बात पर निर्भर करेगा कि आंदोलन कितने दिनों तक चलता है. अगर आंदोलन 15 से 20 दिनों तक खिंच जाता है तो कई राजनीतिक परिस्थितियां तैयार हो सकती हैं.

आख़िर किसान ग़ुस्से में क्यों हैं?

मॉनसून अच्छा रहता है तो फसल अच्छी होती है. पर फसल अच्छी हुई तो कीमत भी अच्छी मिलनी चाहिए, लेकिन किसानों को कीमत अच्छी नहीं मिलती. अरहर और सोयाबीन के मामले में किसानों को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा है. सब्ज़ियों के मामले में तो किसान बुरी तरह से परेशान हो गए. उनके लिए सब्ज़ियों को निकालना भी मुश्किल हो गया. टमाटर तो कौड़ियों के भाव बिका है.
आज भी महाराष्ट्र प्याज उत्पादन के मामले में सबसे अव्वल है. जिस नाशिक ज़िले में सबसे ज़्यादा प्याज पैदा होता है वहां प्याज़ चार रुपए किलो बिक रहा है. ऐसी स्थिति से किसान नाराज़ हैं.
प्याज़ की कीमत बढ़ती है तो मध्यवर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला मीडिया शोर मचाता है. वहीं किसान जब दो रुपए और तीन रुपए किलो प्याज बेचता है तो कोई आवाज़ नहीं उठती.
यह कई महीनों, दिनों और सालों का ग़ुस्सा है जो आंदोलन का रूप ले रहा है. उन्होंने कहा कि यह स्वतंत्र भारत का पहला मौक़ा है जब किसान हड़ताल पर गया है.
यह बीजेपी के लिए अच्छी स्थिति नहीं है. बीजेपी की सरकार में किसान हड़ताल पर जा रहे हैं और यह पहला मौक़ा है. यह बीजेपी के लिए दुर्भाग्य की बात है.
यहां के किसान स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग कर रहे हैं. उसमें कहा गया है कि किसानों की जितनी लागत लगती है उससे 50 फ़ीसदी ज़्यादा मिलनी चाहिए. इसके साथ ही किसान क़र्ज़ माफ़ी की मांग कर रहे हैं. अगर सरकार इन मांगों को मान लेती है तो किसान आंदोलन से पीछे हट जाएंगे.
सरकार अपने ही किसानों की उपेक्षा कर रही है. उन्होंने कहा कि किसानों को चीनी की अच्छी कीमत मिल सकती थी लेकिन विदेश से चीनी आयात कर लिया गया. ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में चीनी की क़ीमत कम होगी है इसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा.
सरकार को या तो मुक्त बाज़ार की स्थिति को स्वीकार करना चाहिए या नियंत्रित बाज़ार के रास्ते पर चलना चाहिए.
यह डांवाडोल की स्थिति ठीक नहीं है. इस सरकार की कृषि अर्थशास्त्र की समझ बड़ी ओछी है.

जलवायु करार से ट्रंप के पीछे हटने से दुनिया पर पड़ेगा ये 5 असर

अमरीका का यह क़दम जलवायु करार और दुनिया के लिए झटका

इसमें कोई शक नहीं है कि पेरिस जलवायु करार से राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के पीछे हटने के कारण इस समझौते के लक्ष्यों को पाना बाक़ी दुनिया के लिए और मुश्किल हो गया है. पेरिस जलवायु करार का मुख्य लक्ष्य वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी दो डिग्री से नीचे रखना है.
वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में अमरीका का 15 फ़ीसदी योगदान है. इसके साथ ही अमरीका विकासशील देशों में बढ़ते तापमान को रोकने के लिए वित्तीय और तकनीकी मदद मुहैया करना वाला सबसे अहम स्रोत है. ऐसे में अमरीकी नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं. अमरीका के क़दम का असर दूसरे राजनयिक नतीजों के रूप में भी देखा जा सकता है.
अमरीका में सियेरा क्लब के पर्यावरणविद् माइकल ब्रुने ने कहा कि यह क़दम ऐतिहासिक भूल है. उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे इसे पीछे मुड़कर देखेंगे तो उन्हें काफ़ी निराशा होगी कि कैसे एक विश्व नेता ने वास्तविकता और नैतिकता से मुंह चुरा लिया था.

अमरीकी भूल चीन के लिए मौक़ा

पेरिस जलवायु समझौते के दौरान अमरीका और चीन के बीच अहम सहमति बनी थी. अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसमें बड़ी भूमिका अदा की थी. चीन इस बात को दोहरा रहा है वह पेरिस जलवायु करार के साथ खड़ा है.
अमरीका के पीछे हटने और पेरिस जलवायु करार पर प्रतिबद्धता जताने के लिए चीन के साथ यूरोपियन यूनियन शनिवार को बयान जारी करने वाला है. ईयू के क्लाइमेट कमिश्नर मिगल अरिआस ने कहा, ''पेरिस जलवायु करार से किसी को भी पीछे नहीं हटना चाहिए. हमने और चीन ने इसके साथ चलने का संकल्प लिया है.''
बढ़ते तापमान की चुनौती का सामना करने के लिए कनाडा और मेक्सिको भी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं.

वैश्विक बिज़नेस नेता होंगे निराश

अमरीका का कॉर्पोरेट घराना इस बात के साथ मजबूती से खड़ा है कि पेरिस जलवायु करार से पीछे नहीं हटना चाहिए. गूगल, ऐपल और सैकड़ों बड़े जीवाश्म ईंधन उत्पादक कंपनियों ने राष्ट्रपति ट्रंप से आग्रह किया था कि वह पेरिस जलवायु करार के साथ बने रहें.
इस मामले में एक्सन मोबिल ने भी ट्रंप से पीछे नहीं हटने का आग्रह किया था. एक्सन के सीईओ डैरेन वूड्स ने ट्रंप को एक निजी पत्र लिखा था. उन्होंने इस पत्र में पेरिस जलवायु करार के साथ बने रहने का आग्रह किया था.

कोल ईंधन की होगी वापसी

दूसरे विकसित देशों की तरह अमरीका भी कोयले के ईंधन से दूर हट चुका है. ब्रिटेन साल 2025 तक कोयले से बिजली पैदा करना पूरी तरह से बंद कर देगा. अमरीका के कोयला उद्योग में अब नौकरी सौर ऊर्जा के मुकाबले आधी बची है. दूसरी तरफ़ विकासशील देश अब भी बिजली के मामले में कोयले पर निर्भर हैं.
यहां बिजली का प्राथमिक स्रोत कोयला है. ऊर्जा के दूसरे स्रोतों की कीमतों में कमी के कारण उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश उस तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं. भारत में हाल की एक नीलामी में सौर ऊर्जा की कीमत कोयले से उत्पादित होने वाली बिजली के मुकाबले 18 फ़ीसदी कम रही.

ट्रंप के पीछे हटने के बावजूद अमरीकी कार्बन उत्सर्जन में गिरावट

राष्ट्रपति ट्रंप के जलवायु करार से पीछे हटने के बावजूद अमरीका में कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी.
अनुमान है कि ओबमा ने जितनी गिरावट की तैयारी की थी उसकी आधी गिरावट आएगी.
ऐसा इसलिए क्योंकि अमरीकी ऊर्जा उत्पादन अब कोयले के मुकाबले गैस से हो रहा है.