समाजवादी ब्राह्मणवाद :-
दलित भुलक्कड़ होता है। उसे 3 दिन और 3 साल का बात याद हीं रहता है लेकिन वह हजारों साल पहले की बात शंबूक और एकलव्य पर कलम तोड़ता है। बहन जी ने समाजिक परिवर्तन स्थल बनाया। लेकिन संपूर्ण दलित साहित्य को उठा कर देख लिजिये, कहीं आपको समाजिक परिवर्तन स्थल और समाजिक परिवर्तन का जिक्र नहीं मिलेगा। लेकिन विरोधी खेमें में इस समाजिक परिवर्तन स्थल के विरोध में विपुल साहित्य मिलेगा। पत्थर का पार्क, अय्याशी का अड्डा, हाथी पार्क, मायावती पार्क! ये सब विरोधियों की शब्दावली हैं। ये शब्दावली किसने गढ़ी है ?
जाहिर सी बात है समाजवादी पार्टी ने, नहीं तो कांग्रेस और भाजपा में इतनी हिम्मत कहां है कि बहुजन महापुरूषों के लिये इस तरह की अपमानखजनक शब्द गढ़ सके ?
लेकिन कमाल की बात है कि इन बहुजन महापुरूषों का विरोध करने के बावजूद सपाई अपनी जाति के बल पर खुद को बहुजन गिनाते हैं लेकिन बहुजन के लिये क्या काम किया कभी नहीं बताते हैं! काम के नाम पर फ्री लैपटॉप ही है । मेट्रो और हाइवे मायावती सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जिसे समाजवादी राज में पूरा किया गया। खैर, ये सब श्रेय भी उनको दे दिया जाय तो भी बहुजन के लिए क्या किया यह सवाल जिंदा रहता है?
बहुजन के लिये तत्कालीन फायदा वाला चीज है आरक्षण! इसपर सपा का नजरिया साफ नहीं है और वह ब्राह्मण वाद का पोषक है। खास कर दलित और आदिवासी आरक्षण के मामले में।
दलित और आदिवासी का देश भर में प्रोमोशन में आरक्षण खत्म हुआ है उसका एकमात्र कारण समाजवादी पार्टी है।
👉 सन 2012 में बसपा सरकार ने यूपी प्रोमोशन में आरक्षण एक्ट 1997 के अनुसार प्रदेश में प्रोमोशन का GO जारी किया। उसके खिलाफ लोग इलाहाबाद हाइकोर्ट में गये और कोर्ट ने नागराज बनाम संघ सरकार के आदेश के आलोक में सरकार के आदेश पर रोक लगा दी। लाखों लोग जो प्रोमोट हो गये थे उनके भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया!
👉 जब मामला कोर्ट में हो तो सरकार के पास कोई विकल्प नहीं बचता। बसपा सरकार तुरंत सुप्रीम कोर्ट गई इस आशा में कि उसे राहत मिल जायेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अप्रील 2012 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के ऑर्डर को सही ठहराते हुये रोक को जारी रखा।
👉 अब सोचने वाली बात है कि अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन आया और मई में चुनाव हो रहे थे। अचार संहिता लगा चुकी थी। ऐसे में सरकार कुछ नहीं कर सकती थी। कोर्ट ने प्रोमोशन में आरक्षण के पूर्व जो quantifiabléट data इक्कठे करने की बात कही वह इतना बड़ा काम नहीं था कि सरकार नहीं कर सकती थी। लेकिन चुनाव अचार संहिता के बाद वह यह काम भी नहीं कर सकती थी।
👉 मतलब आरक्षण पर बसपा सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने 'ब्रह्मपाश ' में बांध दिया था। आप हिल - डुल नहीं सकते थे।
👉 उस समय गैर दलित और गैर आदिवासी ग्रुप इस प्रोमोशन में आरक्षण का विरोध कर रहे थे। यहां तक कि वे ओबीसी को भी कंविंस कर रहे थे कि इस आरक्षण से तुम से नीची जाति का तुम्हारा बॉस बन जायेगा। उस समय सपा आरक्षण के खिलाफ खड़ी थी और वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह प्रमोशन में आरक्षण खत्म कर देगी।
👉 कोर्ट के पास स्टे का अधिकार और जमानत का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जिसका बेजा इस्तेमाल होता रहता है। चूंकि स्टे फाइनल डिसिजन नहीं होता है इसलिये आप कोर्ट की मंशा पर सवाल उठा नहीं सकते हैं। लेकिन अंतिम निर्णय आने तक आपका बहुत नुकसान हो चुका होता है।
👉 उस समय बसपा के पास कोई रास्ता नहीं था इसके सिवा की वह दुबारा सत्ता में आते और quantifiablé data जमा कर प्रोमोशन में आरक्षण जारी रखे।
👉 मई में मायावती सत्ता से बाहर हो गयी और सपा की सरकार बन गई। तब तक दलित वर्ग के कुछ चिलगोजे यह हल्ला करने लगे कि प्रोमोशन में आरक्षण मायावती के वजह से खत्म हुआ! यहीं हल्ला करते हुये उदित राज भाजपा में चले गये, अंबेडकर महासभा वाले लालजी वर्मा सपा में होते हुये भाजपा में चले गये और दारापुरी कम्युनिष्टों के शरण में।
👉 ये सभी मिलकर मायावती पर वार कर रहे थे। इससे किसको नुकसान था?
न सपा को, न कोर्ट को, न कांग्रेस को ,न ही भाजपा को । वे तो दूर से ही हंस रहे होंगें कि इन सालों के आई ए एस ,आई आर एस ,पी सी एस का यह हाल है तो हमारा हाल उखाड़ लेंगें ।इनकी बड़ी शक्ति सरकार को तो हटा दिया । अब सारे , मरे पीढ़ियों तक ।
👉 अंत में जो कोर्ट का फाइनल वर्डिक्ट आया
अ) न्यायालय प्रोमोशन में आरक्षण के मामले में दखल नही दे सकती। यह संविधान के आर्टिकल 14 (4अ ) के अनुसार राज्य सरकार का मामला है। राज्य सरकार चाहें तो आरक्षण दे सकती है। सवाल है बसपा भी राज्य सरकार थी, उस समय आपने दखल क्यों दिया?
ब) क्वांटिफियेबल डाटा और क्रिमी लेयर एस सी / एस टी रिजर्वेशन में लागू नहीं होता। सवाल है जब लागू नहीं होता तो आपने रोक लगाकर आरक्षण में व्यवधान क्यों डाला ?
सवाल है -
स) इंद्रा साहनी मामले में स्पष्ट निर्देश था कि प्रोमोशन में आरक्षण जायज है। वह नौ जजों की बेंच थी। फिर नागराज मामले पांच जजों की बेंच ने शर्त क्यों लगाया ?
इसमें सपा का रोल - सपा को येन-केन- प्रकारेण चुनाव जीतना था। उसने आरक्षण और दलितों के खिलाफ जबरदस्त माहौल बनाया। उसी माहौल के बल पर वह सता में आयी ।
* सपा के सत्ता में आने के बाद गैर दलित वर्ग उत्साहित था। सबको लग रहा था कि सबने मिलकर दलितों की औकात बता दी।
* लेकिन दलित के खिलाफ पूरे देश में यूपी जैसा माहौल नहीं था। दलितों को अपीज करने के लिये कांग्रेस ने प्रोमोशन में आरक्षण बिल पेश किया। राज्य सभा में वह बिल 216 के मुकाबले 206 वोट से पास हो गया ।
* लेकिन जैसे ही लोकसभा में यह पेश हुआ समाजवादी पार्टी के सांसदों ने हंगामा करना शुरु कर दिया। पेश करने वाले मंत्री से हाथापाई कर बिल छिन कर फाड़ दिया ।
* उस समय मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष थी, चाहती तो मार्शल से उठवा कर सपा सांसदों को बाहर फेंकवा सकती हैं, संसद से निलंबित कर सकती थी, लेकिन यह करने के बजाय उन्होनें कार्यवाही स्थगित कर दी ।
* इसमें भाजपा और कांग्रेस चाहती तो बिल पास हो जाता, लेकिन सपा और बसपा लड़े। सपा सवर्णों के पक्ष में जी जान से लड़ थी। इतना वफादार कुता तो उन्हें कहीं दाम देकर भी नहीं मिलता। दोनों ने इस बिल को कूड़े में फेंक दिया।
* सपा यहीं नहीं रूकती, बल्कि सरकार के द्वारा 1997 के अधिनियम के बाद जितने लोग प्रमोट हुये थे, उनको 2015 में डिमोट कर देती हैं।
* यूपी से प्रेरणा लेकर पूरे देश के गैर दलित सरकारों ने आरक्षण को लेकर वहीं रवैया अपनाया जो सपा सरकार ने अपनाया। सुप्रीम कोर्ट उनके साथ था।
सोचिए -
अगर सपा ने लोकसभा में विरोध नहीं किया होता तो कांग्रेस और भाजपा को झंक मारकर बिल पास कराना पड़ता। पास करने के सिवा कोई बहाना नहीं था।
यह भी सोचिये कि दलितों ने जो सदियों के संघर्ष से हासिल किया, सपा ने उसे चुटकी में खत्म करवा दिया।
इससे केवल यूपी के चमारों को ही नहीं पासियों, वाल्मिकियों, कोरी सबको नुकसान हुआ, देश भर के दलितों का नुकसान हुआ, दलित हीं क्यों आदिवासी को भी नुकसान हुआ। इस नुकसान की भरपाई कब होगी पता नहीं।
हम ब्राह्मनों को खूब दोष देते हैं लेकिन इन समाजवादी ब्राह्म्णवादियों का क्या करें, उन्होंने बहुजनवाद के खिलाफ जो नफरत फैलाई उसी नफरत पर सवार होकर मोदी सत्ता में आ गये। पांच साल समाजवादी सरकार ने भाजपा के लिये पिच तैयार किया, पांच साल के बाद संघ ने सीधे छक्का मारा।
तो अब क्या करें -
जो भी दलित या आदिवासी इन समाजवादी ब्राह्मणवादियों को जाति के आधार पर बहुजन से जोड़े उन्हें चार जूता पहले मारिये। सवाल बाद में पूछिए। उनको बताइये बहुजन जाति से नहीं काम से होता है।
अगर सपा आरक्षण का विरोध नहीं करती तो आरक्षण बिल असानी से पास हो जाता। उसके बाद ओबीसी का प्रोमोशन का बात होता। सपा ने सब खरमंडल कर दिया। ओबीसी के लिये कुछ भी नहीं किया, दलित और आदिवासी को बर्बाद कर दिया।